वैमानिक शास्त्र में विमान से सम्बंधित चौकाने वाले रहस्य


वैमानिक शास्त्र एक दुर्लभ ग्रन्थ कैसे ? 

वर्तमान काल में कुछ समय पूर्व वैमानिक कला प्राय: लुप्त सी हो गयी थी । बाद में पाश्चात्य विद्वानों के वुद्धि विकास से विमान फिर इस संसार में दिखाई देने लगे । कहा जाता है कि विमान नाम की वस्तु पहलें नहीं थी, प्रत्युत पक्षियों को आकाश में उड़ते देखकर भारतीयों की यह निरी कपोल-कल्पना थी कि विमान नाम की कोई वस्तु पहले इस देश में थी, जो आकाश में उडती थी एवं जिसका उल्लेख रामायण आदि ग्रंथों में पाया जाता है ।

महर्षि कर्दम के विमान के विषय में भी उनकी यही धारणा है । किन्तु आज भी हमारे समक्ष उदाहरणार्थ एक ऐसा ग्रन्थरत्न उपस्थित है जिससे यह मानना पड़ेगा कि विमान के विषय में हमारे पूर्वजों ने जिस कोटि के वैज्ञानिक तत्त्व और प्रविधि को ढूंढ निकाला था, उसे आज भी पाश्चात्य विज्ञानवेता खोज निकालने में असमर्थ ही हैं । वह ग्रन्थ है-प्राचीनतम महर्षि भरद्वाज की रचना ‘यन्त्रसर्वस्व’ ।

यह ग्रन्थ बड़ौदा राज्य के पुस्तकालय में हस्तलिखित रूप में वर्तमान हैं, जो कुछ खंडित है । उसका ‘वैमानिक प्रकरण’ बोधानंद की बनायीं हुई वृति के साथ छप चूका है । इसके पहले प्रकरण में प्राचीन विज्ञान विषय के पचास ग्रंथों की एक सूची है, जिनमें अगस्त्यकृत ‘शक्तिसूत्र’, ईश्वरकृत ‘सौदामिनी कला’, भरद्वाजकृत ‘अंशुमत्तन्त्र’, ‘आकाश शास्त्र’ तथा ‘यन्त्रसर्वस्व’, शाकटायनकृत ‘वायुतत्वप्रकाश’, नारदकृत ‘वैश्वानरतंत्र’ एवं ‘धूमप्रकरण’ आदि है । विमान की परिभाषा बताते हुए कहा गया है-

पृथिव्यप्स्वन्तरिक्षेषु खगवद्वेगत: स्वयम् । 
य: समर्थो भवेद् गन्तुं स विमान इति स्मृत: ।। 

अर्थात् “जो पृथ्वी, जल और आकाश में पक्षियों के समान वेगपूर्ण चल सके, उसका नाम विमान हैं ।” ‘रहस्यज्ञोऽधिकारी’ (भरद्वाज-सूत्र अ. १, सू. २) वृति-

वैमानिकरहस्यानि यानि प्रोक्तानि शास्त्रत: । 
द्वात्रिंशदिति तान्येव यानयन्तृत्व्कर्माणि ।। 
एतेन यानयन्तृत्वे रहस्यज्ञानमन्तरा । 
सूत्रेऽधिकारसंसिद्धिर्नेति सूत्रेण वर्णितम् ।। 

वैमानिक शास्त्र :- डाउनलोड करें :- वैमानिक शास्त्र (महर्षि भारद्वाज प्रणित):- https://drive.google.com/drive/folders/13eJdxfdFhgwuh_NGMdVl2Z52kN8sx2Bx

विमानरचने व्योमारोहणे चालने तथा ।
स्तंभ्ने गमने चित्रगतिवेगादिनिर्णये ।।
वैमानिकरहस्यार्थज्ञानसाधनमन्तरा ।
यतोऽधिकारसंसिद्धिर्नेति सम्यग्विनिर्णितम् ।।

विमान के रहस्यों को जानने वाला ही उसको चलाने का अधिकारी है । शास्त्रों में हो बत्तीस वैमानिक रहस्य बताये गए है, विमान-चालकों को उनका भलीभांति ज्ञान रखना परम आवश्यक है, तभी सफल चालक कहे जा सकते है । सूत्र के अर्थ से यह सिद्ध हुआ कि रहस्य जाने बिना मनुष्य यान चलाने का अधिकारी नहीं हो सकता, क्योंकि विमान बनाना, उसे भूमि से आकाश में ले जाना, खड़ा करना, आगे बढ़ाना, टेढ़ी-मेढ़ी गीत से चलाना या चक्कर लगाना और विमान के वेग को कम अथवा अधिक करना आदि वैमानिक रहस्यों का पूर्ण अनुभव हुए बिना यान चलाना असंभव है। विमान चलाने के बत्तीस रहस्य कहे गये है ।


इसे वैमानिक प्रकरण में कहे गए ग्रन्थ और ग्रंथकारों के नामो से यह स्पष्ट ज्ञान होता है कि हमारे पूर्वज विमान-शास्त्र में अत्यंत निपुण थे । इसके रहस्यों को देखने से यह पता लगता है कि आजकल वैज्ञानिक विमान द्वारा जिन जिन कलाओं का उपयोग करते हैं, वे सभी कलाएं तो उन लोगों के पास थीं ही, अपितु जिन कलाओं की खोज में आधुनिक वैज्ञानिक व्यस्त है या जिनकी कल्पना भी वे अभी नहीं कर पाए है, उन्हें भी हमारे पूर्वज जानते थे ।

नवें रहस्य से यह पता चलता है कि दूरबीन की भांति कोई दूरदर्शक यंत्र उनके पास थे । पचीसवें रहस्य से यह सिद्ध होता है कि ‘वायरलेस’ रेडियों भी उनके पास था ।

अट्ठाईसवां रहस्य बताता है कि आजकल वैज्ञानिकों के समान दूर से प्रत्येक शत्रु-विमान का पता लगा लेने की कला भी उनके पास थी ।

बत्तीसवें रहस्य से यह स्पष्ट है कि वे लोग गैस, बम आदि द्वारा शत्रु-संहार करते थे ।

छब्बीसवें रहस्य से विदित होता है कि आज के वैज्ञानिकों ने दूरभाष आदि पर बात करते समय आकृति दिखा देने वाले जिस ‘टेलीवीजन’ नामक यन्त्र का आविष्कार किया है, वह इससे अधिक चमत्कारी रूप में हमारे पूर्वजों के पास था ।

इसमें जो विमानों को अदृश्य करने वाला पांचवा रहस्य है तथा उसके सदृश अन्य कई रहस्य है जो विस्तारभय से यहाँ उद्धृत नहीं किये गए है, उन सबके विषय में आज के वैज्ञानिक अब तक सोच नहीं सके है ।                     - आलोक आर्य 

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