भारतीय मुस्लिम लीग की स्थापना क्यों और इसके उद्देश्य

भारतीय मुस्लिम लीग की स्थपाना में अंग्रेजो और मुस्लिम एकमत कैसे

 भारतीय मुस्लिम लीग की स्थपाना

ब्रिटिश और मुस्लिम मिलकर अपने लक्ष्यों की पूर्ति के लिए नई-नई योजनायें तैयार करने लगी। एक बैठक के दौरान लॉर्ड मिनटो ने मुस्लिम नेताओं को आकस्मिक पुरस्कार से नवाजा था । इससे मुसलमानों को विचार बना की यदि अंग्रेजो के साथ मिलकर कोई स्थाई राजनीतिक संस्था बनायीं जाए तो वह आगे चलकर कामधेनु सिद्ध हो सकती है । अचानक नवाब सलिमुल्ला खां के नेतृत्व में ढाका में प्रमुख मुसलमानों का एक सम्मलेन हुआ जिसमें मुसलमानों के हक़ में एक राजनीतिक संस्था बनाने का प्रस्ताव रखा गया जिसमें सभी प्रमुख मुसलमानों ने अपनी सहमती दर्ज कराई ।

30 दिसम्बर 1906 को नवाब सलिमुल्ला खां की अध्यक्षता में अखिल भारतीय मुस्लिम लीग की स्थपाना की गई । इस लीग जो भी लक्ष्य रखे गए उनसे स्पष्ट झलकता था कि इस लीग के पीछे अंग्रेजो और मुसलमानों, दोनों का हाथ है। अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के लक्ष्य इस प्रकार थे :- 

अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के लक्ष्य


  • भारतीय-मुस्लिमों में ब्रिटिश सरकार के प्रति निष्ठा की भावना जाग्रत करना और यदि ब्रिटिश सरकार के किसी कार्य से उनके लक्ष्य के बारे में कोई भी भ्रम पैदा हो तो उसे दूर करना । 
  • ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीय मुस्लिमों के राजनीतिक तथा अन्य अधिकारों की रक्षा करना और उनकी अपेक्षाओं और आशाओं की विन्रम भाषा में सरकार के सामने प्रस्तुत करना । 
  • उपरोक्त दोनों लक्ष्यों के पूर्वाग्रह के बिना, जितना सरकार द्वारा हो सके, मुसलमानों और भारत के अन्य समुदायों के बीच मैत्रीभाव को जगाना । 


भारतीय मुस्लिम लीग की स्थापना के समय से ही इस बात के सनसनीदार संकेत मिलने लगे थे कि आगे क्या होने वाला है । इसी अवसर में प्रतिनिधियों को बांटे गए ‘लाल इश्तहार’ में यह आह्वान किया गया :-

लाल इश्तहार का आह्वान

“ऐ मुसलमान भाइयों जागो! एक ही स्कूल में हिन्दुओं के साथ मत पढो । हिन्दुओं की दुकानों से कोई भी वस्तु न खरीदों । हिन्दुओं द्वारा बनाई गई किसी भी वस्तु को मत छुओं । हिन्दुओं को कोई भी रोजगार मत दो । हिन्दू के अधीन किसी घटिया पद को स्वीकार मत करों।” “आप मुसलमान लोग अनपढ़ हो लेकिन यदि ज्ञान प्राप्त कर लें तो आप तुरंत सभी हिन्दुओं को नरक में भेज सकते हो । इस प्रान्त में आपका बहुमत है । हिन्दुओ की अपनी कोई भी सम्पदा नहीं है वह आपकी बनाई सम्पदा छीन कर धनी हो गया है । यदि आपमें पर्याप्त जागृति पैदा हो जाये तो हिन्दू भूखे मरेंगे और शीघ्र ही मुसलमान बन जायेंगे ।”

‘लाल इश्तहार’ के ऐसे तथा अन्य अंगार उगलने वाले व्याख्यानों ने मुस्लिमों को धर्मान्धता की ज्वाला में ईंधन का कार्य किया, और 4 मार्च, 1907 को कोमिल्ला (बांग्लादेश में) में दंगे भड़क उठे । अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के अध्यक्ष नवाब सलिमुल्ला खां का कार्य सिद्ध हो रहा था । बलात्कार, सम्पति को जलाने और आगजनी जैसी बहुत सी घटनाये घटी ।

अखिल भारतीय मुस्लिम लीग की मांग

मुस्लिम लीग ने 30 दिसम्बर,1908 में अपने वार्षिक अधिवेशन में आगा-खां-मिनटों मार्ग का निष्ठापूर्ण अनुसरण किया । उसने मांग की कि स्थानीय निकायों में साम्प्रदायिक आधार पर व सरकारी सेवाओं में और अधिक प्रतिनिधित्व मिले, और अन्य विशेषाधिकारों की व्याख्या हो । लीग ने अपना प्रस्ताव रखते हुए एक विषैले प्रचार-अभियान भी प्रारंभ किया । इसके साथ-साथ भारतीय मुस्लिम लीग की शाखा स्थापित की गयी । धीरे-धीरे यह एक ऐसा शक्तिशाली प्रकोष्ठ सिद्ध हुआ, जिसने साम्राज्यवादियों से सांठ-गाँठ करके मुसलमानों को विशेष और अधिक प्रतिनिधित्व एवं सरंक्षण दिलाने का प्रयास किया ।

मोहम्मद अली जिन्ना द्वारा विरोध

1911 में बंग-भंग योजना का निरस्त किया जाना लीगी अलगाववादियों के लिए एक आकस्मिक आघात था । इससे नवाब सलिमुल्ला खां को इतना अपमान और कुंठित अनुभव किया कि उसने राजनीति से संन्यास ही ले लिया । उन दिनों कुछ बुद्धिजीवी अलगाववादी से कोसों दूर थे । आगा खां ने संस्मरणों में एक रहस्य का उद्घाटन किया है “1906 में हमारा उग्र प्रतिद्वंदी, बम्बई का एक जाना-माना मुस्लिम बैरिस्टर मोहम्मद अली जिन्ना जो सालों से हमारा मित्रतापूर्ण साथी रहा, किन्तु इस मोड़ पर उन्होंने सबका घोर विरोध किया जो सब हम करने का प्रयास कर रहे थे ।

अखिल भारतीय मुस्लिम लीग आन्दोनल जनांदोलन तो तनिक मात्र भी नहीं था उपरी दर्जे के एक लीगी नेता चौधरी खलिकुज्ज्मा के अनुसार –“मुस्लिम लीग में उपाधि-धारियों, नवाबों, जी-हुजूरों की भरमार थी। यह भी स्वाभाविक है कि मुट्ठी-भर चाटुकार अभिजात वर्ग के लोगों की मुस्लिम लीग का न तो कोई विचार था और न ही उसकी योजना थी कि वह देश के राष्ट्रीय रंगमंच पर कोई बड़ी भूमि निभायेगी । -आलोक प्रभात 

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