ईश्वर सर्वव्यापक होकर सबको देखता है।



सर्वव्यापक ईश्वर Omnipresent God (ईश्वर सर्वव्यापक होकर सबको देखता है।

 Omnipresent God – एक गुरु(guru) के पास दो मनुष्य शिष्य बनने के लिए आए । गुरुजी ने कहा – “हम तुम दोनों को एक-एक खिलौना(toy) देते है । अत: तुम खिलौना लेकर ऐसी जगह पर जाकर जहां कोई न हो , तोड़ लाओ । तब मैं तुमको अपना शिष्य बना लूँगा।” दोनों अपना-अपना खिलौना लेकर चले । एक चेले ने तो गुरुजी के मकान(house) के पीछे जाकर चारों तरफ देखा कि अब कोई नहीं है। और खिलौना तोड़ लाकर रख दिया । 

दूसरे ने खिलौने को लेकर सारा संसार(whole world)। ऊँची-से-ऊँची पहाड़ की चोटियाँ। गहरी-से-गहरी समुन्द्र की सतहें। एकांत-से-एकांत अंधेरी कोठरियाँ तथा बड़े-बड़े भयानक(scary) वन खोज डाले । उसे कहीं ऐसा स्थान न मिला जहां खिलौना तोड़ता ।अत: दूसरे ने खिलौना बिना तोड़े वैसा ही लाकर गुरुजी के सामने रख दिया ।

 https://deshduniyanews.com/%e0%a4%a6%e0%a5%82%e0%a4%b0%e0%a4%b8%e0%a4%82%e0%a4%9a%e0%a4%be%e0%a4%b0-%e0%a4%b5%e0%a4%bf%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%97-%e0%a4%a8%e0%a5%87-%e0%a4%a4%e0%a5%88%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%b0-%e0%a4%95/

गुरुजी(guru ji) ने पहले से प्रश्न किया ।- क्योंजी, आपको कहाँ ऐसा स्थान मिला, जहां से खिलौना तोड़ लाये? 

उसने कहा – गुरुजी, मैं आपके मकान के पीछे गया वहाँ कोई भी न था । बस मैंने खिलौना तोड़ आपके सामने रख दिया । दूसरे से कहा – क्यों भाई तुम्हें ऐसा कोई स्थान न मिला जहाँ कोई न था? उसने उत्तर दिया –“महाराज मैं ऊँची-से-ऊँची पहाड़ की चोटियाँ, गहरी-से-गहरी समुन्द्र की सतहें, एकांत-से-एकांत अंधेरी कोठरियाँ व भयानक जंगल आदि जगह घूमा । मुझे कहीं ऐसा स्थान न मिला जहाँ कोई दूसरा अर्थात परमेश्वर(God) न था । अत: महाराज, इसलिए: मैंने खिलौना नहीं तोड़ा।” महाराज ने इसे ही अपना शिष्य(disciple) बनाया । दूसरे से कहा- “तू इस योग्य(eligible) नहीं।” 

https://deshduniyanews.com/%e0%a4%85%e0%a4%af%e0%a5%8b%e0%a4%a7%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a4%be-%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%a6%e0%a5%80%e0%a4%aa%e0%a5%8b%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%b8%e0%a4%b5-%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%b2/

ईश्वर सर्वव्यापक होकर सबको देखता है। omnipresent god शिक्षा :- परमेश्वर सर्वव्यापक(omnipresent god) है । अत: एकांत (Secluded) समझकर भी पाप(sin) न करें । परमेश्वर को किसी एक स्थान पर मानना इसी प्रकार होगा । जैसे एक चक्रवर्ती राजा (king) को एक छोटी सी झोपड़ी(cottage) का स्वामी(owner) मानना । अत: सृष्टि के रचयिता परमेश्वर को सब जगह मानकर वेद(veda) की आज्ञा का पालन करके सब कोई सुखपूर्वक रहे । तथा परोपकार करने में ही अपना मनुष्य धर्म(dharma) समझे । -आलोक नाथ 

Post a Comment

0 Comments