स्मृति क्या है व मनुस्मृति कौन-से संविधान पर आधारित है ?


 स्मृतियों की आवश्यकता क्यों स्मृति :- 

सृष्टि के आरंभ में ही मनवोत्पत्ति के पशत परमकारुणिक ऋषियों ने व्यक्ति की उन्नति, रहन-सहन, खान, पान, पारस्परिक आदान-प्रदान, और रक्षा आदि कार्यों की व्यवस्था के लिए नियम बनाये वैयक्तिक उन्नति के लिए वेदोक्त आश्रम प्रणाली चालू की गई सब के धर्म-कर्म और गुणों का निर्णय किया गया । राज्य शासन के लिए दण्ड व्यवस्था की गई ।

आदि सृष्टि में सब से पूर्व ब्रह्मा ने मानव संविधान बनाया और सर्व प्रथम इस को शासन रूप में मनु ने कार्य में व्यवह्त किया । उन नियमों का निर्देश करने वाली मनुस्मृति कहलाती है । मनुस्मृति एक प्रकार का सामाजिक और राजकीय विधि-विधान है ।

मनुस्मृति के नियमों को व्यवहार में लाने का समय सृष्टि का आरम्भ ही है । मनुस्मृति संसार भर में सर्वप्रथम कानून का पुस्तक है । इसमें सब नियम वेदोक्त और वेदानुकूल प्रतिपादित है ।

आर्यावर्त में समयानुसार राज्य व्यवस्था बदलती रही है, तदनुकूल ही नियमों में परिवर्तन और परिशोधन होता रहा है । शाश्वतिक नियम एक समान ही आज तक चले आ रहे है । सामयिक आचार व्यवहार में परिवर्तन होता रहा है, जो कि आवश्यक था । इसी कारण मनुस्मृति के पश्चात याज्ञवल्क्य आदि अनेक स्मृतियाँ समय-समय पर प्रवृत हुई ।

मौलिक नियम सब में मनुस्मृति के ही रहे । इस समय 30 स्मृतियाँ उपलब्ध है, जिनके अवलोकन से तत्तत् समय की सामाजिक और राजकीय दशा पर अच्छा प्रकाश पड़ता है । याज्ञवल्क्य स्मृति पर अत्यंत प्रसिद्द टिका “मिताक्षरा” नाम से श्री विज्ञानेश्वर ने लिखी, जिसमें मनु से लेकर अर्वाचीन कांड तक सब धर्म-सूत्रकारों के समस्त राष्ट्र पर लागू रहे है । इसी मिताक्षरा का आधार मान कर अंग्रेजी काल में भारतीय दण्ड विधान तैयार किया गया था । मिताक्षरा में दायभाग पर बड़े व्यापक रूप में विचार किया गया है ।

सामाजिक और राजकीय व्यवस्था के ज्ञानार्थ इन स्मृति ग्रंथों का अवलोकन करना उत्तम है, परन्तु वेदानुकूल होने से मनुस्मृति ही सब में प्रमाणिक है । मनुस्मृति में भी बहुत प्रक्षिप्तांश जो पीछे मिला डाला गया है, वह त्याज्य है । जितना अंश वेदानुकूल है वाही ग्राह्य हैं, शेष नहीं ।

कुछ स्मृति के नाम इस प्रकार है :-

मनु, याज्ञवल्क्य, पराशर, वशिष्ठ, गौतम, बोधायन, लिखित, हारित, विष्णु, और देवल आदि । देवल स्मृति बहुत अर्वाचीन है । मुसलमानी काल की कृति है । इसमें शुद्धि और मत-परिवर्तन किये गए लोगों को पुन: वैदिक धर्म में लाने की व्यवस्था दी गई है । स्मृति को व्यवस्थापक ग्रन्थ भी कहा जा सकता है ।

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