लीवर रोग क्यों होता हैं और सरल चिकित्सा कैसे करें ?



लीवर रोग होने के कारण और बचने के उपाय लीवर समस्या :- 

वर्तमान समय में  शहर और कस्बों के निवासी यकृत रोग से बहुत पीड़ित रहते हैं । बहुत कम लोगों का लीवर, जैसा कार्य करना चाहिए वैसा करता हैं । बहुत कम लोगों को यकृत पूर्ण कार्य करने की क्षमता नहीं रखता । प्राचीन समय में लोग देहातों में परिश्रमी जीवन व्यतीत करते थे । उन्हें शुद्ध आहार, शुद्ध जल और शुद्ध हवा वहां मिलती थी । परन्तु इस वाणिज्य युग में न तो शुद्ध जल हैं, न शुद्ध आहार और न शुद्ध वायु ही ।

अनुमान है की प्राचीन समय में  यह रोग बहुत कम होता था , यही कारण हैं की इसका विवरण अत्यंत अल्प हैं। जिस प्रकार शरीर में बाएं भाग में पसलियों के नीचे तिल्ली होती हैं, उसी प्रकार दाहिने भाग की पसलियों के नीचे यकृत या जिगर हैं । मनुष्य शरीर में लीवर जैसा बड़ा और उपयोगी यन्त्र दूसरा नहीं हैं । 

लीवर रोग के लक्षण :-

यकृत रोग शुरु होते ही कम्प देकर बुखार आता हैं । बाद में नुखार शांत हो जाता हैं, परन्तु लीवर की बीमारी बनी रहती हैं। रोग जब धीरे-धीरे पुराना आकर धारण कर लेता हैं उस समय लीवर कठोर और पहले से बड़ा हो जाता हैं, परन्तु तिल्ली की तरह यह बहुत बड़ा नहीं होता हैं मामूली बड़ा होता हैं । अपने-आप भी बिना परिश्रम के दर्द होता रहता हैं । साथ-साथ मन्द मन्द ज्वर या ज्वर जैसे मामूली गरमी बनती  रहती हैं। रोग जब बढ़ता हैं तो भयानक अकार धारण कर लेता हैं और अंत में लीवर का संकोचन होकर रोगी की मृत्यु हो जाती हैं ।

यकृत रोग के कारण :- 

अमेबिका प्रवाहिका पुराना होने पर अमीबा रोगाणु लीवर में पहुँच जाने से पुराना मलेरिया बुखार, कुनैन या पारे का अव्यवहार, अधिक मद्यपान, गर्म स्थान का निवास, अधिक मिठाई या मलाई, रबड़ी, भैंस का गाढ़ा दूध आदि का अधिक खाना आदि कारणों से लीवर रोग की उत्पत्ति होती हैं । दो तीन वर्ष से लेकर पांच-सात वर्ष की अवस्था के भीतर बहुत-से बच्चों का लीवर खराब हो जाता हैं: जिससे बच्चे पुष्ट नहीं हो पाते । बराबर रोगी बने रहते हैं। शरीर में खून कम हो जाता हैं कि बच्चो का बढ़ा लीवर भी ठीक चिकित्सा से अच्छा हो जाता हैं। परन्तु बढ़ी उम्रवालों को हो जाने से कठिनाई और सुचिकित्सा से अच्छा होता हैं ।

चिकित्सा- 

लीवर रोगी के मल की परीक्षा कराके निश्चय करना चाहिए कि उसके मल में आंव तो नहीं आता हैं? यदि आंव हो तो धयान्यपंचक क्वाथ को पकाकर 12 ग्राम की मात्रा में निरंतर सेवन करना चाहिए। 

लीवर रोगी में नीचे लिखी दवाएं लाभदायी हैं :- 
  • जवाखार 3 ग्राम जल या मट्टे के साथ खाना अति लाभदायक हैं।  
  • रोज खाना पकाने या दूध के साथ हल्दी का प्रयोग करने से लीवर जैसी समस्या में काफी आराम होता हैं । 
  • मुलेठी को पीसकर पाउडर बना लें और चाय बनाते समय गर्म पानी में डाल दें । कुछ देर भीगने के बाद इसे पानी में अच्छी तरह मिला लें और प्रतिदिन दिन में 2 बार सेवन करने से लीवर की समस्या में लाभ होता हैं । 
  • आवले को कच्चा खाने या आवले का जूस पीने से भी लीवर में काफी हद तक फायदा मिलता हैं । 
  • अलसी के बीज को साबुत ही टोस्ट में मिलाकर खाने से आराम मिलता हैं । 
आहारों का सेवन :-

लीवर सम्बन्धी बीमारी को दूर करने में आहार चिकित्सा भी जरुरी हैं । लीवर जैसी  भयंकर बीमारी से आप निम्न आहारों का   सेवन अधिक से अधिक करें :-
  • लीवर रोगी को नारियल का जूस, गन्ने का रस, मूली का रस आदि अपने आहार में लेना चाहिए । हरी सब्जी पालक, मेथी, धनियाँ  आदि का जूस भी आप लें सकते हैं । 
  • यकृत में बनने वाले विषेले पदार्थों को निकलने के लिए आप सेब के सिरके को अपना सकते हैं । इस सिरके का सेवन करें से पेट   की चर्बी दूर होती हैं । एक चम्मच सिरका एक गिलास पानी   और एक गिलास शहद में मिलाकर लेने से लीवर में बहुत  फायदा होता हैं । 
  • पालक, टिंडा, घिया, शलगम, तौरी आदि को आप अपने आहार में शामिल कर सकते हैं जो लीवर जैसे रोगों को रोकथाम के लिए काफी सहायक सिद्ध होती हैं । 
  • गाजर का सूप भी लीवर की बीमारी में बहुत लाभदायक सिद्ध होता हैं । 
  • अगर पालक और गाजर के रस को मिलाकर लिया जाये तो यह लीवर सिरोसिस में बहुत लाभदायक सिद्ध होता हैं ।लीवर जैसी बीमारियों को दूर करने के लिए दिन में कम से कम एक बार प्राकृतिक रस का सेवन लाभदायक हैं । 
  • फलों में जामुन लीवर की बीमारी को दूर करने  में सहायक होता हैं प्रतिदिन 100 ग्राम जामुन का सेवन करें । 
  • यदि लीवर में सूजन तो खरबूजे का सेवन अत्यधिक लाभप्रद सिद्ध होता हैं । 
  • प्रतिदिन दिनचर्या के हिसाब से कार्य करते रहने से लीवर जैसी बहुत सी बीमारियों से निजात मिलती हैं ।
  • हर रोज  योग और प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए । -आलोक प्रभात 

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