चापेकर बंधु (तीन सगे भाई ) जिन्होंने अंग्रेजों से लोहा मनवाया


तीन सगे भाई चापेकर बंधु का साहस 

चापेकर बंधु ‘दामोदर हरी चापेकर, बालकृष्ण हरी चापेकर, तथा वासुदेव हरी चापेकर’ तीनों भाइयों को कहा जाता था। चापेकर बंधु तिलक जी को गुरुवत सम्मान देते थे। चापेकर बंधु महाराष्ट्र के पुणे के पास चिंचवाड़ नमक ग्राम के निवासी थे। सन 1897 का साल था, पुणे नगर प्लेग जैसी भयंकर बीमारी से पीड़ित था। अभी अन्य पाश्चात्य वस्तुओं की भांति भारत के गाँव-गांव में प्लेग का प्रचार न हुआ था। पुणे  में प्लेग फैलने पर सरकार  की और से जब लोगों को घर छोड़ कर बाहर चले जाने की आज्ञा हुई तो उनमे बड़ी अशांति पैदा हो गई । उधर शिवाजी-जयंती तथा गणेश-पूजा आदि उत्सवों के कारण सरकार की वहां के हिन्दुओं पर अच्छी निगाह थी। वे दिन आजकल के समान नहीं थे। उस समय तो स्व-राज्य तथा सुधर का नाम लेना भी अपराध समझा जाता था ! लोगों के मकान न खाली करने पर सरकार को उन्हें दबाने का अच्छा अवसर हाथ आगया। प्लेग कमिश्नर मि० रेन्ड की ओट लेकर कार्यकर्ताओं द्वारा खूब अत्याचार होने लगे। चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई और सरे महाराष्ट्र में असंतोष के बादल छा गए। इसकी बालगंगाधर तिलक व आगरकर जी ने बहुत कड़ी आलोचना की जिससे उन्हें जेल में डाल दिया गया ।

मि० रेन्ड का अंत गवर्नमेन्ट-हाउस पूना में विक्टोरिया का 60 वाँ राजदरबार बड़े समारोह के साथ मनाया गया। जिस समय मि० रेन्ड अपने एक मित्र के साथ उत्सव से वापस आ रहे थे, इसी मौके का फायदा उठाकर दामोदर हरी चापेकर ने देखते-देखते रेन्ड महाशय को गोली मार दी जिससे रेन्ड महाशय ज़मीन पर आ गिरे । उनके मित्र अभी बच निकलने का मार्ग ही तलाश रहे थे कि एक और गोली ने उनका भी काम तमाम कर दिया। चारों ओर हल्ला मच गया और दामोदर चापेकर उसी स्थान पर गिरफ्तार कर लिए गए। यह घटना 22 जून, 1897 की है। भारत की आज़ादी की लड़ाई में प्रथम क्रांतिकारी धमाका करने वाले वीर दामोदर हरी चापेकर का जन्म 24 जून, 1869 को पुणे के ग्राम चिंचवाड़ में प्रसिद्द कीर्तनकार हरिपंत चापेकर के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में हुआ। बचपन से ही सैनिक बनाने की इच्छा दामोदर हरी चापेकर के मन में थी, विराशत में कीर्तन का यश-ज्ञान मिला ही था। महर्षि पटवर्धन और लोकमान्य बालगंगाधर तिलक उनके आदर्श थे।

चापेकर बंधु का बलिदान अदालत में चापेकर बंधु पर, और सबसे छोटे भाई बालकृष्ण चापेकर तथा एक और साथी के साथ अभियोग चलाया गया और सारा भेद खुल गया।

किसी-किसी उपवन में प्राय: सभी फूल एक दुसरे से बढ़कर ही निकालते हैं दो फूल तो देवता के चरणों मे पहुँच चुके थे, अब तीसरे की बारी आई। चापेकर बंधु भाइयों में सबसे छोटे ने आकर माँ के चरणों में प्रणाम किया और कहा-“माँ! दो फूल तो रामा के काम आ गए, अब मैं भी उन्ही के चरणों तक पहुँचने की आज्ञा लेने आया हूँ !” उस समय माता के मुख से एक शब्द भी न निकला। उसने बालक के मस्तक पर हाथ फेरते हुए उसका मुख चूम लिया।     

एक दिन जब अदालत में चापेकर-बंधुओं की पेशी हो रही थी, तो उनके तीसरे भाई ने वहीँ पर उस सरकारी गवाह को मार दिया। उस समय किसी को इस बात का ध्यान तक न था कि वह छोटा-सा लड़का प्रतिहिंसा की आग से इतना पागल हो उठेगा। अंत में उन तीनों चापेकर बंधु भाइयों को एक और साथी के साथ फांसी दे दी गई। इस प्रकार अपने जीवन दान के लिए उन्होंने देश या समाज से कोई भी प्रतिदान की चाह नहीं रखी। वे महान बलिदानी कभी यह कल्पना नहीं कर सकते थे कि ये देश ऐसे गद्दारों से भर जायेगा, जो भारतमाता की वंदना करने  से ही इंकार कर देंगे । -आलोक प्रभात 

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