सवाल ये है कि ये बीमारी आई कहाँ से क्योंकि प्राचीन पुस्तकों में कहीं कोई उल्लेख नही मिलता । रामायण, महाभारत जैसे अतिप्राचीन इतिहास (history) पुस्तकों को तो छोड़िए करीब 1500 साल पुरानी कालिदास (kalidas) की पुस्तकों या कल्हण की राजतरंगिणी (rajtarangini) आदि में भी इनका उल्लेख नही मिलता है। तो फिर ये कुप्रथा कब और कैसे शुरू हुई ? इसका कोई सही अनुमान नही है फिर भी कई विद्वानों और इतिहासकारों का मत है कि ये बीमारी मुस्लिम आक्रांताओं के साथ भारत आई होगी क्योंकि स्त्री को पर्दे में रखना अरबी बद्दुओं की परंपरा है । चूंकि आज का हरयाणा, पंजाब, राजस्थान इस्लामी हमलों के पहले शिकार होते थे और यहां के जाट राजपूत गुज्जर अहीर आदि वीर क्षत्रिय लोग मुस्लिमों से लड़ते थे। जलियांवाला बाग हत्याकांड इतिहास Jallianwala bagh history
युद्ध में हार जाने के बाद डर रहता कि अब मुस्लिम सेना शहर और गावों में लूटमार करेगी तो अपना सम्मान बचाने के लिए लोग स्वयं ही घर की लड़की आदि को मार देते कालांतर में विचार बनने लग गया कि लड़की को पैदा होते ही मार दिया जावे तो अच्छा रहे ताकि विधर्मियों के हाथों बलात होने की संभावना ही खत्म हो जाए अब क्षत्रियों की देखा देखी सामान्य वर्ग ने भी यही करना शुरू कर दिया क्योंकि मुस्लिम तो सबके साथ बलात करते थे अकेली क्षत्रिय कन्याओं के साथ नहीं इसलिए जल्द ही ये रक्षात्मक रवैया सारे देश मे अपना लिया गया । दक्षिण भारत जहां इस्लाम देर से पहुंचा और थोड़े ही दिन रह पाया वहां ये रक्षात्मक रवैया आया तो होगा लेकिन परम्परा न बन पाया होगा लेकिन दिल्ली के आसपास के इलाकों में जहां मुस्लिमो का प्रभाव अंत तक रहा । ज्ञान के अभाव में नवजात कन्या भ्रूणहत्या एक परम्परा बन गई । यह कन्या भ्रूणहत्या आज तक भी चली आ रही है । 20 राज्यों में हो रहा है लागू ‘वन नेशन, वन राशन कार्ड’
यहीं पर्दा डालने की प्रथा का बीज पड़ा सम्भवतः जब मुस्लिम राज कायम हो गया । तो मुस्लिम औरते बुर्का पहन कर रहती थी। लेकिन वैदिक धर्मी औरते साड़ी ही पहनती थी क्योंकि भारत का सांस्कृतिक पहनावा साड़ी ही है सलवार कमीज नही। ऐसे में जब हमारे घरों की औरते बाहर निकलती तो मुस्लिम सिपाहियों की अश्लील नजर उन पर रहती। अब जाएं तो कहां जाएं ऐसे में मुंह को छुपाकर घर से निकलने का रक्षात्मक रवैया अपनाया गया होगा क्योंकि हमारे यहां मुंह वो नही दिखाता जो गलत काम करता है। हांसी-हिसार का अमर बलिदानी – वीर हुकमचन्द
इससे पता चलता है कि ये हमारी परंपरा नही है और रक्षात्मक रूप में अपनाई गई है। लेकिन अब भी बात नही बनी क्योंकि साड़ी में पेट आदि दिखता रहता है । उसका डिजाइन ही ऐसा है लेकिन जब बाहर जाती तो मुस्लिम सिपाहियों ओर अमीरों की नजरें उनके पेट पर होती। ऐसी स्थिति से बचने के लिए साड़ी का विकल्प खोजा जाने लगा और दामण, महिला कुर्ता, सलवार कमीज अपनाए जाने लगे । जिससे कोई अंग न दिखे इसी कारण आज क्षत्रिय जातियों में साड़ी का नामो निशान मिट गया । पुनर्जन्म एक रहस्य Mystery of Reincarnation
कालांतर में ये परम्परा बन गई और आज भी समाज मे कन्या भ्रूणहत्या और पर्दाप्रथा जैसी बुराइयां बड़ी आम हैं। बाद में पर्दाप्रथा को इज्जत ओर सम्मान से जोड़ दिया गया और समाज के पितृसत्तात्मक होने की वजह से बेटे की चाह व बेटी को दहेज रूपी बोझ समझने के कारण आज कन्या भ्रूणहत्या प्रचलित है । हिन्दुओं की प्राचीन उत्तम वैदिक परम्पराओं, स्वर्णिम इतिहास व वेद के ज्ञान के लिए सत्यार्थ-प्रकाश (satyarth prakash) ताकि पता चल जाये कि क्या अपना है और क्या पराया । जो बोले सो अभय वैदिक धर्म की जय ! -Alok Prabhat
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