Teachers Day 2020 हम सब समय के साथ संयम से रहना-चलना सीख रहे हैं। भौतिक और मनोवैज्ञानिक अभावों के बीच सामंजस्य बनाने के उपाय तलाश रहे हैं। रोज के मेल-मिलाप से दूर रहने की ऐसी पीड़ा पहले कभी नहीं देखी, पर इसे भी हमने स्वीकारना सीखा। यही तो है ग्रहण करने वाला मन, जो निरंतर सीखने की प्रक्रिया में होता है। ऐसे मन के लिए जीवन खुद में शिक्षक होता है। पुराणों में महर्षि अत्रि और उनकी सहधर्मिणी अनुसूया का उल्लेख है। उनके पुत्र ऋषि दत्तात्रेय के 24 गुरु थे, जिनमें सर्प, अजगर, मकड़ी, मछली, हिरण, हाथी और मधुमक्खी भी शामिल थे! टाइम पत्रिका के वर्ष 2000 के एक अंक के अनुसार बीती सदी के पांच प्रमुख संतों में जिद्दू कृष्णमूर्ति शामिल हैं। महापुरुषों के कथन क्यों होते हैं प्रभावी, किस कारण से लोग करते हैं अनुसरण
कृष्णमूर्ति ने चेन्नई में अपनी एक सार्वजनिक वार्ता के दौरान दिलचस्प कहानी सुनाई थी। उन्होंने श्रोताओं को बताया कि कैसे एक बड़े उपदेशक हर सुबह अपने शिष्यों के साथ संवाद किया करते थे। एक सुबह जैसे ही वे अपने कमरे से निकल कर अपने आसन की तरफ जा रहे थे, एक नन्ही चिड़िया ने अपनी सुरीली आवाज में गाना शुरू कर दिया। सुनते ही उपदेशक महोदय वहीं रुक गए। पर जब वह चिड़िया गाना पूरा करके उड़ गई, तो उन्होंने वहां बैठे श्रोताओं से कहा, ‘आज की देशना यहीं समाप्त होती है।’ बात यहीं खत्म नहीं होती। एक्हार्ट टोले जर्मनी के एक नामचीन आधुनिक दार्शनिक और वक्ता हैं। टोले का कहना है कि उनके कई शिक्षक रहे हैं और उनमें से अधिकतर बिल्लियां हैं!किसी के लिए हेल्थ तो किसी के लिए बनी वेल्थ, पान व चाय के उद्योग में बढ़ी मांग :तुलसी की
सीखने वाला मन : भले ही उक्त उदाहरण आध्यात्मिक शिक्षकों के जीवन से जुड़े हों, पर हर किसी को उनसे प्रेरणा लेनी की जरूरत है। बस सार यही है कि सीखने वाला मन कभी रुकता नहीं। वह हर स्थूल और बारीक अभिव्यक्ति से कुछ न कुछ सीख ही लेता है। ऐसे मन के लिए कोई शिशु, राह चलता अजनबी, वृक्ष और नदी, पशु-पक्षी, जीवन का हर अनुभव उतना ही सम्माननीय होता है, जितना कि एक परंपरागत, औपचारिक शिक्षक। सीखने वाला मन तो रिश्तों की कड़वाहट में भी सीखने की गुंजाइश तलाश लेता है। ऐसा मन संयमित और मजबूत संकल्प वाला होता है। उसमें विनम्रता होती है और इसीलिए वह पुरानी बातों और पूर्वाग्रहों को छोड़ कर नई बातें सीख पाता है। उसमें खुलापन होता है क्योंकि खुले मन में ही नई समझ की नई कोपलें फूटती हैं। खुलापन मन को उर्वर बनाता है। उसे खिलने की जगह देता है। संस्कृत में रचे गए हमारे प्राचीन ग्रंथों में गणित-विज्ञान की समृद्ध विरासत है, मगर वर्तमान पीढ़ी इस ज्ञान से अनभिज्ञ
जीवन की सीख : हमारी जीवनशैली में ऐसी कुछ दुखदायी त्रुटियां हैं, जिनकी वजह से हम इतने बड़े संकट में पड़ गए हैं। इन दिनों यह एहसास बखूबी हुआ है। यही कारण है कि हम लगातार खुद में सुधार की कोशिश में भी जुटे हैं। नया हुनर सीखा है। लॉकडाउन के कारण जन्मे एकांत ने अंतस के छिपे हुए हिस्सों को उघाड़ा है और अपने मन के ही अनजाने पहलुओं को हमारे सामने रख दिया है। हम सृष्टि का केंद्र नहीं हैं। इसलिए हमें अपने साथ रहने वाले अनगिनत मूक सहचरों की परवाह करनी है, उनसे जुड़ाव बनाना है। यदि हम ऐसा नहीं करते तो इसका खामियाजा समूची मानव जाति को भुगतना पड़ेगा। ये सारी बातें वे सीख हैं जो हमें कोई शिक्षक नहीं सिखा रहा बल्कि सीधेसीधे जीवन से आ रही हैं। वास्तव में जीवन से बड़ा शिक्षक कोई नहीं, बस हमें बेहतरीन छात्र होना है। ऐसा छात्र, जो प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाए रखने का संकल्प लिए हुए हो। चीनी वर्चस्व वाली SCO बैठक में शामिल होगा भारत तनाव के बावजूद
वास्तव में शिक्षित है कौन? : इस आपदा ने यह भी सिखाया कि जीवन एक विराट कैनवस है। इसमें सुख-दु:ख के रंग हैं, सौंदर्य है तो कुरूपता और अनगढ़पन के रंग भी हैं। इंसान की अंतहीन पीड़ाओं के रंग हैं। इसमें कविता है, कुदरत है और अपने-अपने कलह भी हैं। पर इन दिनों जो नया अनुभव हो रहा है, उसका भी एक रंग है। वास्तव में हमें यह समझ लेना चाहिए कि आखिर में शिक्षित वही कहलाएगा जो अकादमिक उत्कृष्टता प्राप्त करने के साथ-साथ जीवन के साथ निरंतर ढलना सीख जाए। पर सहजता से वही ढल सकता है जो खुद को समझे, अनावश्यक आक्रामकता से दूर रहे, कुदरत से प्रेम करे और जरूरत पड़ते ही अपने पूर्वनिर्मित मतों को तह करके एक तरफ रख सके। दरअसल, उनके लिए तमाम शिक्षा और अनुभव के बाद प्रेम कितना बचा, कितनी सजगता, कितनी संवेदनशीलता, कितनी गंभीरता बची, कितना संयम और सीखने का संकल्प बचा रह गया, ये सवाल ही महत्वपूर्ण रह जाते हैं। संस्कृत में रचे गए हमारे प्राचीन ग्रंथों में गणित-विज्ञान की समृद्ध विरासत है, मगर वर्तमान पीढ़ी इस ज्ञान से अनभिज्ञ
जिंदगी का प्रिय छात्र बनने के लिए विनम्र एवं आत्मसजग बनना होगा।
आप किसी भी क्षेत्र या पेशे में हों, कुछ नया सीखने की चाह आपको नई राह और नए विकल्प देती है।
हर मन में एक छात्र रहता है। कुछ लोग जीवन में कामयाबी पाने के बाद इसे नजरअंदाज करते हैं तो कुछ लोग इसे सदा मन में बनाए रखते हैं।
सीखने वाला मन कल्पनाओं के पंख खुले रखता है। उस बालमन की तरह जो हर पल का भरपूर आनंद लेता है। मन को अतीत के बंधन से आजाद रखता है।
कहीं आप अपने हुनर को नजरअंदाज तो नहीं कर रहे, यदि हां तो आज ही सोचें कि ऐसा क्यों हुआ। इसके बाद आपको पता चलेगा कि आपने सीखना बंद किया है, इसलिए आपमें उत्साह की कमी आई है। SC ने कहा- मामले के निपटारे तक अकाउंट्स को NPA न घोषित करें बैंक
फोब्र्स पत्रिका में छपे एक अध्ययन के मुताबिक, दुनिया के 1200 कामयाब सीईओ से साक्षात्कार के बाद ज्ञात हुआ कि सफल लोग ‘कंफर्ट जोन’ में जाने से खुद को बचा लेते हैं। वे कभी सफलता के बाद भी शांत नहीं होते, नया सीखने की ओर अग्रसर रहते हैं। आज कुछ सीखा, कल कुछ। सदैव नया सीखने-गढ़ने को तैयार।
हरदम उत्सुक रहने वाला मन : महान वैज्ञानिक आइंस्टाइन कहते थे कि वह स्मार्ट नहीं, बस सवाल करने के लिए उत्सुक रहते हैं। वह किसी समस्या को देखते हुए उसके साथ धैर्यपूर्वक ठहरना जानते हैं। सृजनशीलता और प्रश्न पूछने वाले मन का गहरा संबंध है। मशहूर शायर मिर्जा गालिब भी खूब सवाल करते थे और अपनी इस आदत के बारे में उनका मशहूर शेर भी है, ‘हुई मुद्दत कि गालिब मर गया पर याद आता है, वो हर इक बात पर कहना कि यूं होता तो क्या होता।’ सही शिक्षा हर बात को लेकर सवाल करना सिखाती है। सवाल करना हमारी स्वाभाविक प्रवृत्ति है।महापुरुषों के कथन क्यों होते हैं प्रभावी, किस कारण से लोग करते हैं अनुसरण -Alok Anand
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