सुखदेव थापर की अनकही कहानी


क्रान्तिकारी सुखदेव 

श्री सुखदेव खास लायलपुर (पंजाब) के रहने वाले थे। आपका जन्म तिथि फ़ाल्गुन् सुदि 6 संवत 1964 को दिन के पौने ग्यारह बजे हुआ था। आपके पिता का देहांत आपके जन्म से तीन मास पहले हो चुका था। इसलिए सेवा और शिक्षा का प्रबंध आपके चाचा अचिन्तराम ने किया था। आपका जन्म आर्यसमाजी घराने में होने से होने के कारण आप पर आर्यसमाज का विशेष प्रभाव पड़ा। जहाँ भी आर्यसमाज का सत्संग होता था वहां पर आप अवश्य जाते थे और आपको हवन सन्ध्या योगाभ्यास का भी शौक था।  महाकुंभ सप्ताह : लखनऊ समेत सभी जिलों में शुरू हुआ पौधारोपण अभियान

सन 1919 में पंजाब के अनेक शहरों में मार्शल ला जारी था। उस समय आपकी आयु बारह वर्ष की थी और सांतवी श्रेणी में पढ़ते थे। आपके चाचा इसी मार्शल ला में गिरफ्तार कर लिए गये। बालक सुखदेव पर इस घटना का विशेष प्रभाव पड़ा। आपके चाचा अचिन्तराम का कहना है कि जब मैं जेल में था, तब सुखदेव मुझ से मिलने आता था। तब पूछता था की मैं तो किसी को भी नमस्ते तक नहीं करूँगा।

महात्मा गंधही के असहयोग आन्दोलन ने सुखदेव के जीवन को बदल डाला। उधर माता उनका विवाह करना चाहती थी, परन्तु चाचा जी विरुद्ध थे। क्यूंकि वे आर्य थे, अत: आर्य सिद्धांत के अनुसार विवाह करना चाहते थे। आपकी माता जी जब-जब कहती थी कि सुखदेव मैं तुम्हारी शादी करुँगी तो घोड़ी पर चढ़ोगे? तब सुखदेव सदा यही उत्तर देता था घोड़ी पर चढ़ने के बदले फांसी पर चढ़ लूँगा।……… नेशनल कॉलेज लाहौर में आपका परिचय भगतसिंह से हुआ था। मन क्या है ? क्या मन आत्मा का साधन है ?

साइमन कमीशन के आने पर आप सब ने निश्चय किया कि समारोहपूर्वक प्रदर्शन करना चाहिए। समारोह के लिए झंडियाँ बना रहे थे। इस समय केदारनाथ भी थे। परन्तु उन्हें नींद आ गई तो वे सो गये। उधर सुखदेव भी सरदार भगतसिंह के घर सो रहे थे। भगतसिंह ने भी कहा कि मैं भी सोता हूं परन्तु साथी मित्रों ने न सोने दिया। उसी समय भगतसिंह के अन्दर विचार आया कि यदि पुलिस हमारे पर घेरा डालेगी तो सुखदेव पकड़ा जायेगा। इसलिए सुखदेव को सावधान करने के लिए एक मित्र भेजा। उसने थोड़े समय में आकर कहा कि भगतसिंह के घर पुलिस पहुंच गई है। 

पुलिस ने श्री सुखदेव को पकड़ लिए और बहुत प्रश्न किये परन्तु उन्होंने किसी प्रश्न का भी उत्तर नहीं दिया। आपको बारह घंटे जेल में रखा गया। इसके पश्चात् कुछ लोगों ने जाकर आपको छुड़वा दिया। इसके पश्चात् कुछ लोगों में पार्टी का विचार हुआ तो भगतसिंह और सुखदेव ने यह प्रस्ताव रखा कि नवयुवकों को राजनीतिक शिक्षा देनी चाहिए। सरदार भगतसिंह ने प्रचार कार्य प्रारम्भ किया। इनके पश्चात् यह कार्य श्री सुखदेव को सौंपा गया। आप इस प्रचार के कार्य को बहुत दिनों तक बड़ी सफलता के साथ करते रहे। आपका सिद्धान्त था कि मैं केवल कार्य करना चाहता हूं, प्रशंसा नहीं। ब्रह्म चेलानी बोले, भारत के पलटवार की दृढ़ता दर्शाता है PM का लद्दाख दौरा

इसके पश्चात् 15 अप्रैल सन 1919  को श्री किशोरीलाल और प्रेमनाथ के साथ आपकी भी गिरफ्तारी हो गई। अंत में सात अक्टूबर सन 1930 को फांसी का दण्ड सुनाया और 23 मार्च सन 1931 को चौबीस वर्ष की आयु में आप को भगतसिंह और राजगुरु के साथ फांसी पर लटका दिया और लाश को तेल छिड़क कर जला, नदी में बहा दिया। 

बलिदानियों ( भगतसिंह , राजगुरु , सुखदेव ) का ऐतिहासिक पत्र- 

हम  युद्ध बंदी हैं 

अंग्रेजी कुकृत्यों की घृणित दास्तान 
20 मार्च 1931 प्रति गवर्नर पंजाब, 
शिमला महोदय, 

उचित सम्मान  के साथ हम नीचे लिखी बातें आपकी सेवा में रख रहे हैं- 

भारत की ब्रिटिश सर्कार के सर्वोच्च अधिकारी वाइसराय ने एक विशेष अध्यादेश जरी करके लाहौर षड़यंत्र अभियोग की सुनवायी के लिए एक विशेष न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) स्थापित किया था जिसने 7 अक्टूबर 1930  को हमें फांसी का दण्ड सुनाया। हमारे विरुद्ध सब से बड़ा आरोप यह लगाया गया कि हमने  सम्राट जार्ज पंचम के विरुद्ध युद्ध किया है। न्यायालय के इस निर्णय से दो बातें स्पष्ट हो जाती हैं। शहद के आश्चर्यजनक फायदे जानकर हैरान रह जाओगे

पहली यह कि अंग्रेज जाती और भारतीय जनता के मध्य एक युद्ध चल रहा है। दुसरे यह कि हमने निश्चित रूप में इस युद्ध में भाग लिया है, अत: हम युद्धबंदी हैं। देश बदलेंगे देसी पौधे ही, लेकिन इसके लिए जरूरी है सही पेड़ और पौधों की जानकारी

यद्यपि इनकी व्याख्या में बहत सीमा तक अतिशयोक्ति से काम लिया गया है तथापि हम यह कहे बिना नहीं रह सकते कि ऐसा करके हमे सम्मानित किया गया है। पहली बात के सम्बन्ध में हम तनिक विस्तार से प्रकाश डालना चाहते हैं। हम नहीं समझते कि प्रत्यक्ष रूप से ऐसी कोई लड़ाई छिड़ी हुई है। हम नहीं जानते कि युद्ध छिड़ने से न्यायालय का आशय क्या है? परन्तु हम इस व्याख्या को स्वीकार करते हैं और साथ ही इसे इसे ठीक सन्दर्भ में समझना चाहते हैं। -Alok Prabhat

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