मन
मन आत्मा का साधन है। इसके द्वारा ही आत्मा की इच्छित क्रियाएं होती है। आत्मा का मन से, मन का इन्द्रियो से ओर इन्द्रियो का विषयो से (बाहरी संसार से) सम्पर्क होने पर ही आत्मा को ज्ञान तथा उसकी इच्छित क्रियाएं होती है।ज्ञान आत्मा का गुण है, मन का नही। कोरोना संकट काल में भारत बना वैश्विक दवा का केंद्र- SCO
यस्मान् न ऋते किच्चन कर्म क्रियते। (यजुर्वेद )
अर्थात् — यह मन ऐसा है जिसके बिना कोई भी काम नही होता। यही कारण है कि इसके सम्पर्क न होने पर हम देखते हुए भी नही देखते तथा सुनते हुए भी नही सुनते। यह आत्मा के पास ह्रदय मे रहता है। वेद मे इसे (ह्रदय मे निवास वाला ) कहा गया है। यह जड़ पदार्थ है। इसीलिए आत्मा से पृथक होकर कोई भी क्रिया नही कर सकता। यह आत्मा के साथ जन्म जन्मानतर मे रहता है। अगर इन 5 क्लेशों से बच गए तो मिलेगी सम्पूर्ण शांति
मृत्यु पर भी आत्मा के साथ दूसरे शरीर मे जाता है। इसके पश्चात् आत्मा को नया मन मिलता है। इसे अमृत इसलिए कहा गया है कि यह शरीर के नाश होने पर नष्ट नही होता। क्योकि यह एक जड पदार्थ है। इसलिये इस पर भोजन का प्रभाव पडता है। जैसा खावे अन वैसा होवे मन। यह संस्कारो का कोष है। सभी संस्कार इस पर पड़ते है तथा वही जमा होते है। जो संस्कार प्रबल होते है वे ही उभर कर सामने आते है। जो दुर्बल होते है वे दबे पड़े रहते है। जैसे किसी गढ्ढे मे बहुत प्रकार के अनाज डाले जाये पहले गेंहू, फिर चने, फिर चावल उसके उपर जौ, उसके उपर मूंग, उड़द आदि। देखने वाले को वही दिखाई देगा जो सबसे उपर होगा, नीचे का कुछ भी दिखाई नही देगा । आपको शायद ही पता होगा Credit Card की इन खासियतों के बारे में…
वैधक शास्त्र सुश्रुत के अनुसार– इसमें मे सात्विक गुण प्रधान होने पर मनुष्य की स्थिति -अक्रूरता, अनादि वस्तु का ठीक ठीक वितरण,सुख, दु:ख मे एक सम,पवित्रा, सत्य, न्याय प्रयता शान्त प्राकृति ज्ञान ओर धैर्य Religious Story अध्यात्मिक कहानी Story Writing
मन
रजोगुण प्रधान होने पर :-
1. घूमने का स्वभाव 2. अधीरता 3. अभिमान 4. असत्य भाषण 5. क्रूरता 6. ईष्या 7. द्वेष 8. दम्भ 9. क्रोध 10. विषय सम्बन्धी इच्छा। अर्थव्यवस्था को एक ट्रिलियन डॉलर बनाने के लिए कंसल्टेंट रखेगी योगी सरकार
तामस मन के गुण :-
1. बुध्दि का उपयोग न करना 2. आलस्य- काम करने की इच्छा न होना 3. प्रमाद — अधिक नींद लेने की इच्छा 4. ज्ञान न होना 5. दुष्ट बुद्धि रहना। हिंदू शब्द की प्रासंगिकता कब, क्यों और कैसे बड़ी क्या है अर्थ...
महाऋषि मनु लिखते है— यदि कोई मनुष्य किसी दुष्कर्म से छुटकारा चाहता है तो मन से उस दुष्कर्म को खूब भर्त्सना (सराहना का उलट) किया करे। जैसे-जैसे वह दुष्कर्म की निन्दा करेगा वैसे वैसे उस दुष्कर्म से छूटता चला जायेगा। -Alok Nath
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