भरद्वाज ऋषि :- आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान के प्रणेता
आयुर्वेद जगत में अश्वनीकुमार और धन्वन्तरी को देव पुरुष और अवतार माना जाता है । इस दृष्टि से भरद्वाज प्रथम मानव व्यक्ति थे। इन्होने आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान का विधिवत् अध्ययन कर संसार के अन्य लोगों को उसकी शिक्षा प्रदान की । पौराणिक कथाओं के अनुसार सबसे पहले आयुर्वेद का ज्ञान दक्ष प्रजापति को प्रदान किया । अश्विनकुमारों ने, उनसे इंद्र ने और इंद्र से भरद्वाज ने ज्ञान को पाया । ऑनलाइन चेक आउट फाइनेंस क्या होता है, ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के लिए कैसे है वरदान…भरद्वाज के इंद्रा से आयुर्वेद का ज्ञान पाने की कथा ‘चरक संहिता’ में वर्णित हैं । कहते हैं, संसार में रोगों के बढ़ने पर लोग अस्वस्थ रहने लगे और उनके लिए जप, तप, पूजा-पाठ करना कठिन हो गया तब इस कठिन स्थिति से मुक्ति हेतु विचार करने के लिए ऋषि मुनि हिमालय पर एकत्र हुए और उन्होंने अनेक शुभ कामनाओं के साथ भरद्वाज को देवराज इंद्र के पास आयुर्वेद का ज्ञान प्राप्त करने के लिए भेजा ।
अनेक बाधाओं को पार कर भरद्वाज इंद्र के पास पहुंचें और उनकी जय जयकार करके उनसे संसार के कल्याण के लिए आयुर्वेद विज्ञान का ज्ञान प्रदान करने के लिए निवेदन किया । भरद्वाज ने ज्ञानप्राप्ति की प्रतिभा देखकर इंद्र ने उन्हें कुछ शब्दों में आयुर्वेद के मूल सिद्ध्नत बताएं, जिनके आधार पर उन्होंने आयुर्वेद विज्ञान का ज्ञान प्राप्त किया और लौटकर अन्य ऋषि मुनियों को इसकी शिक्षा दी । महाभारत में दी गयी कथा के अनुसार भरद्वाज के पिता देवताओं के गुरु थे और उनकी माता का नाम ममता था ।बचपन में अपने बड़े भाई दीर्घतमस से अनबन के कारण वे दुखी रहते थे, किन्तु वे सभी अयोग्य और अकर्मण्य थे ।आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों के साथ कोरोना संक्रमण को मात
कुशाग्रबुद्धि और शिक्षित पुत्र भरद्वाज को पाकर पौरव नरेश बड़े प्रसन्न हुए और उनकी शिक्षा का सर्वोत्तम प्रबंध कर दिया । संभवतः देवराज इंद्र की देख रेख में शिक्षा प्राप्त कर भरद्वाज आयुर्वेद विशारद हुए तदंतर उन्होंने अपना ज्ञान सम्पूर्ण जगत में फैलाया । अपने औषधी विज्ञान के ज्ञान के कारण वे सदैव स्वस्थ रहे और तीन पीढ़ियों को दीर्घ आयु उन्होंने पायी । भरद्वाज द्वारा बताई गई अनेक औषधियों और उपचार आज भी वैद्यों द्वारा प्रयोग किये जाते हैं ।
भरद्वाज विमान शास्त्र के प्रणेता के रूप में माने जाते हैं । इनके द्वारा रचित ग्रन्थ ‘यन्त्र सर्वस्व’ बडौदा राज्य के पुस्तकालय में हस्तलिखित रूप में वर्तमान हैं, जो कुछ खंडित हैं । उसका ‘वैमानिक प्रकरण’ बोधानन्द की बनायीं हुई वृति के साथ छप चूका है । इसके पहले प्रकरण में प्राचीन विज्ञान विषय के पचास ग्रंथों की एक सूचि हैं, जिनमें अगस्त्यकृत ‘शक्तिसूत्र’, ईश्वरकृत ‘सौदामिनी कला’, भरद्वाजकृत ‘अन्शुमत्तन्त्र’, ‘आकाश-शास्त्र’ तथा ‘यन्त्रसर्वस्व’, शाकटायनकृत ‘वायुतत्त्वप्रकरण’, नारदकृत ‘वैश्वानरतंत्र’ एवं ‘धूमप्रकरण’ आदि हैं विमान की परिभाषा बताते हुए कहा गया है- SIP क्या है, निवेश कैसे करे? (SIP meaning in Hindi)
पृथिव्यप्स्वन्तरिक्षेषु खगवद्वेगत: स्वयम् ।
य: समर्थो भवेद् गन्तुं स विमान इति स्मृत: ।।
अर्थात जो पृथ्वी, जल और आकाश में पक्षियों के समान वेगपूर्वक चल सके, उसका नाम विमान है ।
वैमानिकरहस्यानि यानि प्रोक्तानि शास्त्रत: ।
द्वात्रिंशदिति तान्येव यानयन्तृत्व्कर्माणि ।।
एतेन यानयन्तृत्वे रहस्यज्ञानमन्तरा ।
सूत्रेऽधिकारसंसिद्धिर्नेति सूत्रेण वर्णितम् ।।
वैमानिक शास्त्र :- डाउनलोड करें :- वैमानिक शास्त्र (महर्षि भारद्वाज प्रणित):- https://drive.google.com/drive/folders/13eJdxfdFhgwuh_NGMdVl2Z52kN8sx2Bx
शिव की नगरी कसपुर को कहते है, यहां खेत-खलिहानों में भी मिलते हैं शिवलिंग
विमान के रहस्यों को जानने वाला ही उसको चलाने का अधिकारी हैं । शास्त्रों में जो बत्तीस वैमानिक रहस्य बताये गए हैं । विमान चालकों को उनका भलीभांति ज्ञान परम आवश्यक है और तभी वे सफल चालक कहे जा सकते हैं । सूत्र के अर्थ से यह सिद्ध हुआ की रहस्य जाने बिना मनुष्य यान चलाने का अधिकारी नहीं हो सकता । क्योंकि विमान बनाना, उसे भूमि से आकाश में ले जाना, खड़ा करना, आगे बढ़ाना, टेढ़ी-मेढ़ी गति से चलाना या चक्कर लगाना और विमान के वेग को कम अथवा अधिक करना आदि वैमानिक रहस्यों का पूर्ण अनुभव हुए बिना यान चलाना असंभव है विमान चलाने के बत्तीस रहस्य कहे गये हैं । ब्रिक्स देशों की आतंकवाद के खिलाफ गोलबंदी पाक के लिए बड़ा झटका है…भरद्वाज का वर्णित वाल्मीकि-रामायण में भी मिलता है । इनका आश्रम त्रिवेणी के संगम पर प्रयाग में स्थित था । वन गमन के समय श्रीराम ने सीताजी और भ्राता लक्ष्मण के साथ कुछ समय इस आश्रम में निवास किया था । ऋषि भरद्वाज मंत्र दृष्टा दार्शनिक होने के साथ साथ धर्मशास्त्रकार, शिल्पकार, आयुर्वेदाचार्य एवं वैज्ञानिक भी थे । -Alok Arya
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