क्या मूर्तिपूजा वेद-विरुद्ध है? IDOL WORSHIP RIGHT OR WRONG IN VEDAS

Idol Worship right or wrong मूर्तिपूजा सही या गलत 
         (Is idol worship right in hinduism)

दुनिया में एक प्रश्न का उत्तर लगभग सब जानना चाहते है कि मूर्ति पूजा (idol worship) का आरम्भ कब से माना जाता है ? मूर्तिपूजा सर्वप्रथम किसने चलाई ? मूर्तिपूजा से सम्बंधित सम्पूर्ण जानकारी । मूर्तिपूजा का इतिहास ।विभिन्न मान्यताओं में इसका महत्व व इसकी आवश्यकता । आदि के विषय में गहन चिंतन तथ्यों पर आधारित इस लेख में आपको मिलेगा । इसके बाद मूर्तिपूजा (murti puja) पर आपके जानने योग्य कोई बात नहीं बचेगी ।एक आर्य बहू की सीख Signs of Slavery

भारत में मूर्ति-पूजा जैनियों ने लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व से अपनी मूर्खता से चलाई । जिससे उस समय तो आदि शंकराचार्य (shankaracharya) ने निजात दिला दी । परंतु उनके मरते ही उनको भी शिव का अवतार (Shiva’s Avatar) ठहरा कर पेट-पूजा होने लगी ।

इसी मूर्ति-पूजा के कारण ही भारत में क्रूर इस्लाम  (islam) की स्थापना हुई । तथा भारत को परतंत्रता का मुँह देखकर अवनति के गर्त में गिरना पड़ा । अब भी यदि इस्लाम से बचना चाहते हो ।मुसलमानों , इसाइयों से दुनिया को बचाना चाहते हो । तो श्री राम , श्री कृष्ण के समान आर्य (श्रेष्ठ) बनों ।

सृष्टि की सबसे पुरानी पुस्तक वेद (veda) में एक निराकार ईश्वर (Formless god) की उपासना का ही विधान है ।चारों वेदों के 20589 मंत्रों में कोई ऐसा मंत्र नहीं है । जो मूर्ति पूजा (idol worship) का पक्षधर हो ।

महर्षि दयानन्द के शब्दों में – मूर्ति-पूजा वैसे है । जैसे एक चक्रवर्ती राजा को पूरे राज्य का स्वामी न मानकर एक छोटी सी झोपड़ी का स्वामी मानना । महाकुंभ सप्ताह : लखनऊ समेत सभी जिलों में शुरू हुआ पौधारोपण अभियान

वेदों में परमात्मा का स्वरूप यथा प्रमाण – 

* न तस्य प्रतिमाsअस्ति यस्य नाम महद्यस: । – ( यजुर्वेद अध्याय 32 , मंत्र 3 ) उस ईश्वर की कोई मूर्ति अर्थात् – प्रतिमा नहीं जिसका महान यश है ।

* वेनस्त पश्यम् निहितम् गुहायाम । – ( यजुर्वेद अध्याय 32 , मंत्र 8 ) विद्वान पुरुष ईश्वर को अपने हृदय में देखते है ।

* अन्धन्तम: प्र विशन्ति येsसम्भूति मुपासते । ततो भूयsइव ते तमो यs उसम्भूत्या-रता: ।। – ( यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 9 ) अर्थ – जो लोग ईश्वर के स्थान पर जड़ प्रकृति या उससे बनी मूर्तियों की पूजा उपासना करते हैं । वह लोग घोर अंधकार ( दुख ) को प्राप्त होते हैं । हालांकि वेदों के प्रमाण देने के बाद किसी और प्रमाण की जरूरत नहीं । परंतु आदि शंकराचार्य , आचार्य चाणक्य (acharya chanakya) से लेकर महर्षि दयानन्द (maharishi dayanand) ।हिंदू शब्द की प्रासंगिकता कब, क्यों और कैसे बढ़ी क्या है अर्थ...

सब महान विद्वानों ने इस बुराई की हानियों को देखते हुए इसका सत्य आम जन को बताया । बाल्मीकि रामायण (balmiki ramayan) में आपको सत्य का पता चल जाएगा । राम ने शिवलिंग (shivling) की पूजा नहीं की थी । वैदिक मंत्रों (vedic mantra) द्वारा संध्या (sandhya) हवन-यज्ञ करके सच्चे शिव की उपासना की थी ।

* यच्चक्षुषा न पश्यति येन चक्षूंषि पश्यन्ति । तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते ॥ – केनोपनि० ॥ – सत्यार्थ प्र० २५४ अर्थात जो आंख से नहीं दीख पड़ता और जिस से सब आंखें देखती है । उसी को तू ब्रह्म जान और उसी की उपासना कर । और जो उस से भिन्न सूर्य , विद्युत और अग्नि आदि जड़ पदार्थ (Root stuff) है उन की उपासना मत कर ॥ आज है सावन का पहला सोमवार, जगत के पालनकर्ता हैं देवाधिदेव महादेव

* अधमा प्रतिमा पूजा । अर्थात् – मूर्ति-पूजा सबसे निकृष्ट है । Idol worship is the worst.

* यष्यात्म बुद्धि कुणपेत्रिधातुके । स्वधि … स: एव गोखर: ॥ – ( ब्रह्मवैवर्त्त ) अर्थात् – जो लोग धातु , पत्थर , मिट्टी आदि की मूर्तियों में परमात्मा को पाने का विश्वास तथा जल वाले स्थानों को तीर्थ समझते हैं । वे सभी मनुष्यों में बैलों का चारा ढोने वाले गधे के समान हैं ।

* जो जन परमेश्वर को छोड़कर किसी अन्य की उपासना करता है । वह विद्वानों की दृष्टि में पशु ही है । –  ( शतपथ ब्राह्मण 14/4/2/22 )

क्या मूर्तिपूजा वेद-विरुद्ध है? Is idol worship against the Vedas ?

मूर्ति-पूजा (idol-worship) पर विद्वानों के विचारभय का नाम ही भूत

* नास्तिको वेदनिन्दक: ॥ – मनु० अ० १२ मनु जी (manu) कहते है कि जो वेदों की निन्दा अर्थात अपमान , त्याग , विरुद्धाचरण करता है। वह नास्तिक (Atheistic) कहाता है ।

* या वेदबाह्या: स्मृतयो याश्च काश्च कुदृष्टय: । सर्वास्ता निष्फला: प्रेत्य तमोनिष्ठा हि ता: स्मृता: ॥  – मनु० अ० १२ अर्थात जो ग्रंथ वेदबाह्य कुत्सित पुरुषों के बनाए संसार को दु:खसागर में डुबोने वाले है। वे सब निष्फल , असत्य , अंधकाररूप , इस लोक और परलोक में दु:खदायक है ।

* प्रतिमा स्वअल्पबुद्धिनाम ।   – आचार्य चाणक्य (chanakya) ( चाणक्य नीति अध्याय 4 श्लोक 19 ) अर्थात् – मूर्ति-पूजा मूर्खो के लिए है । Idol worship is for fools.

* नहीं नहीं मूर्ति-पूजा कोई सीढी या माध्यम नहीं बल्कि एक गहरी खाई है। जिसमें गिरकर मनुष्य चकनाचूर हो जाता है। जो पुन: उस खाई से निकल नहीं सकता । – ( दयानन्द सरस्वती स.प्र. समु. 11 में )

वेदों में मूर्ति–पूजा निषिद्ध है अर्थात् जो मूर्ति पूजता है वह वेदों को नहीं मानता । तथा “ नास्तिको वेद निन्दक: ” अर्थात् मूर्ति-पूजक नास्तिक हैं । कुछ लोग कहते है भावना में भगवान होते है । यदि ऐसा है तो मिट्टी में चीनी की भावना करके खाये तो क्या मिट्टी में मिठास का स्वाद मिलेगा ? बिलकुल नहीं !

* वेद ज्ञान बिन इन रोगों का होगा नहीं कभी निदान । कोरे  भावों  से  दोस्तों  कभी  न  मिलता  भगवान ॥ एक पक्षी को भी पता होता है कि कोई मूरत उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती है । वह किसी मनुष्य की मूर्ति पर पेशाब कर देता है। बीट कर देता है उससे डरता नहीं है । कोई मूर्ति का शेर हमें खा नहीं सकता । कोई मूर्ति का कुत्ता काट नहीं सकता तो मनुष्य की मूर्ति मनोकामना कैसे पूरी करती है ? लक्ष्मी बाई केलकर नारी को नारायणी बनाने वाली मौसी जी के नाम से प्रसिद्ध थीं

इसी कारण हिन्दू (hindu) जाति को हजारों वर्षो से थपेड़े खाने पड़ रहे है । मूर्ति-पूजा के कारण ही देश को लगभग एक सहस्र वर्ष की दासता भोगनी पड़ी । रूढ़िवादी , राष्ट्रद्रोह , धर्मांधता , सांप्रदायिकता , गलत को सहना , पाप , दुराचार व समस्त बुराइयों का मूल कारण यह वेद-विरुद्ध कर्म पाषाण-पूजा (idol worship) ही है।

मूर्ति-पूजा (idol worship) के पक्ष में कुछ लोग थोथी दलीलें देते है। वे घोर स्वार्थी अज्ञानी व नास्तिक हैं तथा अनीति के पक्षधर व मानवता (humanity) के कट्टर दुश्मन है । जिस प्रकार उल्लू को दिन पसंद नहीं होता , चोरों को उजेली रात पसंद नहीं होती। इसी प्रकार स्वार्थियों को मूर्ति-पूजा का खंडन पसंद नहीं होता ।

कुछ धर्म प्रिय सच्चे लोग भी सत्य बताने वालों को धर्म खत्म करने वाला तक कह देते है और कहते है जो चल रहा है चलने दो । अत: हमें उन भूलों से बचना होगा जिनके कारण हमारा देश गुलाम हुआ । हमारे मंदिरों (Temples) को तोड़ा गया , हमारा धन छीना गया , हमारे मंदिरों की मूर्तियों (Statues) को मस्जिदों की सीढ़ियों में चुनवाया गया । गुरुकुल की शिक्षा कहाँ गई ?

हिन्दू जाग पंक्तियां (Wake up Hindu)

* भोली जाती तुझे बचाने दयानन्द गर आते न । 
    सिर पर चोटी गले जनेऊ हिन्दू ढूँढे पाते ना  ॥ 

* एक ईश्वर को तजकर के यहाँ लाखों ईश बताते थे । 
    पानी , मिट्टी , ईंटें , पत्थर कब्रें तक पुजवाते थे  ॥ (idol worship) 

* अन्धा गिरे जो कूप में ताको दोष न होय । 
   नौजवान यदि गिरे पड़े तो उसकी चर्चा होय ॥ 


मूर्तिपूजा की हानियाँ Disadvantages of Idol Worship

* पहली – दुष्ट पूजारियों को धन देते है वे उस धन को वेश्या , परस्त्रीगमन , शराब-मांसाहार , लड़ाई बखेड़ों में व्यय करते है जिस से दाता का सुख का मूल नष्ट होकर दु:ख होता है ।

* दूसरी – स्त्री-पुरुषों का मंदिरों में मेला होने से व्याभिचार , लड़ाई आदि व रोगादि उत्पन्न होते है ।

* तीसरी – उसी को धर्म , अर्थ , काम और मुक्ति का साधन मानके पुरुषार्थरहित होकर मनुष्यजन्म व्यर्थ गवाता है ।देश बदलेंगे देसी पौधे ही, लेकिन इसके लिए जरूरी है सही पेड़ और पौधों की जानकारी * चौथी – नाना प्रकार की विरुद्धस्वरूप नाम चरित्रयुक्त मूर्तियों के पूजारियों का ऐक्यमत नष्ट होके विरुद्धमत में चल कर आपस में फूट बढ़ा के देश का नाश करते है।

* पांचवी – उसी के भरोसे में शत्रु का पराजय और अपना विजय मान बैठते है । उन का पराजय होकर राज्य , स्वातंत्र्य और धन का सुख उनके शत्रुओं के स्वाधीन होता है । और आप पराधीन भठियारे के टट्टू और कुम्हार के गदहे के समान शत्रुओं के वश में होकर अनेकविधि दु:ख पाते है ।

* छठी – भ्रान्त होकर मन्दिर-मन्दिर देशदेशान्तर में घूमते-घूमते दु:ख पाते , धर्म , संसार और परमार्थ का काम नष्ट करते , चोर आदि से पीड़ित होते , ठगों से ठगाते रहते है । 

* सातवी – जब कोई किसी को कहे कि हम तेरे बैठने के स्थान व नाम पर पत्थर धरें तो जैसे वह उस पर क्रोधित होकर मारता वा गाली देता है वैसे ही जो परमेश्वर (God) की उपासना (Worship) के स्थान हृदय और नाम पर पाषाणादि मूर्तियां धरते है उन दुष्टबुद्धिवालों का सत्यानाश परमेश्वर क्यों न करे ?

* आठवी – माता-पिता आदि माननीयों का अपमान कर पाषाणादि मूर्तियों का मान करके कृतघ्न हो जाते है।

* नवमी – भ्रांत होकर मंदिर-मंदिर देशदेशांतर में घूमते-घूमते दु:ख पाते, धर्म, संसार और परमार्थ (Charity) का काम नष्ट करते, चोर आदि से पीड़ित होते, ठगों से ठगाते रहते है।

* दशवी – दुष्ट पुजारियों को धन देते है वे उस धन को वेश्या, परस्त्रीगमन, मांस-मदिरा, लड़ाई-बखेड़ों में व्यय करते है जिस से दाता का सुख का मूल (अच्छे कर्म) नष्ट होकर दु:ख होता है।

* ग्यारहवाँ – उन मूर्तियों को कोई तोड़ डालता व चोर ले जाता है हा-हा करके रोते है। 

* बारहवाँ – पुजारी परस्त्रीगमन के संग और पुजारिन परपुरुषों के संग से प्राय: दूषित होकर स्त्री-पुरुष के प्रेम के आनन्द को हाथ से खो बैठते है।

* तेरहवाँ – स्वामी सेवक की आज्ञा का पालन यथावत न होने से परस्पर विरुद्धभाव होकर नष्ट-भ्रष्ट हो जाते हैं।

* चौदहवां – जड़ का ध्यान करने वाले का आत्मा भी जड़-बुद्धि हो जाता है क्योंकि ध्येय का जड़त्व धर्म अन्त:करण द्वारा आत्मा में अवश्य आता है।Religious Story अध्यात्मिक कहानी Story Writing

* पन्द्रहवां – परमेश्वर ने सुगन्धियुक्त पुष्पादि पदार्थ वायु जल के दुर्गन्ध निवारण और आरोग्यता के लिए बनाये हैं। उन को पुजारी जी तोड़ताड़ कर न जाने उन पुष्पों कितने दिन तक सुगन्धि आकाश में चढ़ कर वायु जल की शुद्धि करता और पूर्ण सुगन्धि के समय तक उस का सुगंध होता है; उस का नाश करके मध्य में ही कर देते हैं। पुष्पादि कीच के साथ मिल-सड़ कर उल्टा दुर्गन्ध उत्पन्न करते है। क्या परमात्मा ने पत्थर पर चढ़ाने के लिए पुष्पादि सुगन्धियुक्त पदार्थ रचे है।

* सोलहवां – पत्थर पर चढ़े हुए पुष्प, चन्दन और अक्षत आदि सब का जल और मृतिका (मिट्टी) के संयोग होने से मोरी या कुंड में आकर सड़ के इतना उस से दुर्गन्ध आकाश में चढ़ता है । कि जितना मनुष्य के मल का। और सैकड़ों जीव उसमें पड़ते उसी में मरते और सड़ते है। स्पैम मैसेज की बाढ़ आई जीमेल में, कई यूजर ने की शिकायत

ऐसे-ऐसे अनेक मूर्तिपूजा के करने में दोष आते हैं। इसलिए सर्वथा पाषाणादि मूर्तिपूजा  सज्जन लोगों को त्याग देनी योग्य है। और जिन्होंने पाषाणमय मूर्ति की पुजा की है , करते है , और करेंगे। वे पूर्वोक्त दोषों से न बचें;  न बचते है, और न बचेंगे। Is idol worship in islam _Yes_ Is idol worship in Bible _Yes_ Is idol worship in Vedas _No_ अत: वेद-विरुद्ध idol worship को छोड़कर वैदिक ईश्वर (supreme god as per the vedas)

जो निराकार, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, सर्वशक्तिशाली व एक है उसकी मिलकर सभी लोग प्रीतिपूर्वक योगाभ्यास के द्वारा उपासना/पूजा करें । जब हमारा एक ईश्वर होगा, एक भाषा, एक लक्ष्य होगा तभी उन्नति संभव है अन्यथा    कुछ हाथ नहीं लगेगा ।  -आलोक आर्य 

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