रावी नदी के चोड़े पाट में नाव तेजी से बह रही थी । भगतसिंह(bhagat singh) और उनका मित्र यशपाल नौकायन का अभ्यास(practice) कर रहे थे । उन्होने जिस मार्ग को चुना था , उसपर चलने के लिए सबकुछ जानना आवश्यक था । सूर्यबिंब ने अब क्षितिज का स्पर्श किया था । पश्चिम दिशा लाल-केसरिया रंगों से रंग गई थी । रावी का जल भी उस रंग से सराबोर हो गया था । नौकायन करते हुए दोनों मित्रों को बहुत देर हो गई थी । लेकिन वे परस्पर बातों में इतना डूबे हुए थे कि उन्हें कुछ सुध-बुध नहीं थी । सदैव की भांति उनके बीच बातचीत का विषय ‘देशभक्ति और आजादी’ थी । दोनों देश की वर्तमान स्थिति की समीक्षा कर रहे थे । वेद भाष्य कौन से है और किस भाष्यकार के उत्तम भाष्य है ?
सहसा यशपाल ने अपना चप्पू रोका और विचारों में डूबे भगतसिंह के कंधे पर हाथ रखकर बोला, “आओ, हम प्रतिज्ञा(pledge) करें कि हम अपना जीवन देश को समर्पित कर देंगे।” कार्ति की याचिका खारिज मामला स्थानांतरित करने को…
भगतसिंह मुस्कराए । उन्होने यह निर्णय 12 वर्ष की उम्र में ही कर लिया था। यशपाल का हाथ अपने हाथों में लेकर , उसकी आँखों में आंखें डालकर गंभीरता से बोले, “मैं आज फिर से प्रतिज्ञा करता हूँ कि यह भगतसिंह सिर्फ देश के लिए जिएगा और देश के लिए ही मरेगा।” Origin of Thought and Language by Pt. Gurudatt
हाथ-मे-हाथ लिए दोनों मित्र(friend) अभिभूत-से खड़े थे । चप्पू रुक गए थे ; नौका खड़ी थी । रावी की लहरें उछल-उछलकर मानो आशीर्वाद(Blessings) दे रही थीं । सूर्य की किरणें सहलाते हुए कह रही थीं, ‘तथास्तु ! ऐसा ही होगा । हे देश के सच्चे सपूतो ! तुम्हारी यह नाशवान(mortal) काया देश के लिए प्रज्वलित यज्ञ(yajna) में समर्पित होगी।’ भगतसिंह की प्रतिज्ञा -आलोक प्रभात मैंगो बाबा और बागवान मित्र आम के लिए ‘आरोग्य सेतु’ होंगे
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