दशरथ के पुत्र श्री राम को आज सारा विश्व मर्यादापुरूषोतम आदर्श महापुरुष के रूप में आदर के साथ स्मरण करता है । और उनके आदर्श राज्य को ‘राम राज्य’ के नाम से पुकारा जाता है इसका कारण यही है की उन्होंने आदर्शो की स्थापना करने के लिए अनेक कष्ट उठाए थे । आदर्शो को अपनाने के कारण रामायण में वर्णित पिता, माता, भाई, बहन, सभी आदर्श रूप है ।
रामचंद्र एक आदर्श पुत्र थे । पिता दशरथ द्वारा कैकेयी को दिए दो वरदानो के अनुरार कैकेयी ने श्री राम को आदेश दिया की श्री राम के स्थान पर भरत राजसिंहासन पर बैठेगा और श्री राम चौदह वर्ष के लिए वनवास करेेगें । आज्ञाकारी श्री राम ने आदेशो को पिता का वचन मानकर नतमस्तक होकर स्वीकार कर लिया और महलों के सारे ठाठ-बाट छोड़कर चौदह वर्ष वन में बिताए आदर्श पत्नी सीता भी साथ गई, आदर्श भाई लक्ष्मण भी भाई के साथ गया । रामचंद्र जी बड़े पुत्र थे बड़े को राज्य का अधिकार था, वो चाहते तो पिता को जेल में डालकर सिंहासन पर बैठ सकते थे राजसभा भी पक्ष में थी आयोध्या की जनता उनके समर्थन में थी किन्तु उन्होंनेे ऐसा नहीं किया ।
यदि वो करते तो समाज और राष्ट्र से आदर्श नष्ट हो जाता । संतानों द्वारा माता-पिताओं के आज्ञा की अवहेलना और उनका तिरस्कार करने की परम्परा बन जाती । इसलिए श्री रामचंद्र ने स्वार्थ और सुख की नहीं, सामाजिक आदर्श की रक्षा की, पिता के वचन की रक्षा की इसलिए रघुकुल की प्रथा आज भी गौरव के साथ स्मरण की जाती है –
रघुकुल रीत सदा चली आई |
प्राण जाये पर वचन न जाई ||
शिक्षा – प्रत्येक कष्ट उठाकर भी माता-पिता की आज्ञा का पालन करना संतान का धर्म है । माता पिता की सेवा न करने वाले बालक कुल-कलंकी होते है । - आलोक नाथ
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