दोष दूर करना – नैतिक शिक्षा पर आधारित कहानी


माता पिता और गुरुजन यह चाहते है कि उनके बालक का चरित्र सुंदर बने, इसलिए वे उनपर कई प्रकार के प्रतिबन्ध लगाते हैं । कभी वे कहते हैं कि अमुक-अमुक बालकों के साथ न खेलना, गाली न देना, बातों में व्यर्थ समय नष्ट न करना, भाई-बहिनों से न लड़ना इत्यादि । समय समय पर अनेक काम न करने को कहते हैं । बालक यह समझता है कि वे उसे व्यर्थ कष्ट देना चाहते है, परन्तु वे गुरुजनों की भावनाओं और अपने लाभ को नहीं समझते । अज्ञानता के कारण उन्हें ये बातें बुरी लगती है ।

विद्यार्थी को यह भली-भांति समझ लेना चाहिए कि गुरुजन सदा उसके हित की बात कहते है और उनकी आज्ञा का पालन करने से ही उसका भावी जीवन सफल हो सकता है ।
अंगेजी के एक विद्वान् लेखक ने एक आदमी का एक चित्र इस प्रकार खिंचा है- एक गठरी के अन्दर उस मनुष्य के सरे दोष बाँध कर उस गठरी को उसकी पीठ पर बांध दिया । एक-दूसरी गठरी में दूसरे लोगों के दोष बाँध कर उसके गले में आगे बाँध दिए । जब यह मनुष्य नहीं चलता तो उसे दूसरों के ही दोष बहुत दिखाई देते है क्योंकि वे आगे बंधे थे । अपनी पीठ पर लादे हुए दोषों की गठरी का तो उसे बिलकुल ध्यान ही नहीं होता था, क्योंकि वह उसकी पीठ पर बंधी हुई थी । ऐसा मनुष्य जीवन में कभी सफल नहीं हो सकता है ।

विद्यार्थी को चाहिए कि वह मनुष्य का ह्रदय से बार-बार धन्यवाद कर जो उसके दोष बतावें । गुरूजी की पूजा इसीलिए महत्व रखती है कि वे बालकों के हर प्रकार के दोष बताया करते हैं । यदि गुरु ऐसा न करे तो शिक्षा के पश्चात के दोष बताया करते हैं । यदि गुरु ऐसा न करे तो शिक्षा के पश्चात जहाँ पर वह कार्य करेगा और उसमें कौई दोष पाया जावेगा तो उससे लोग पूंछेंगे-‘किस गुरु के पास पढ़े हो ?’ इससे गुरु का अपमान होगा । शिक्षाकाल में विद्यार्थी को दोषों से मुक्त कर गुरु उसे विश्व में भेजना चाहता है, जिससे वह गुरु अथवा माता-पिता के लिए अपमान का कारण न बने ।

इस सम्बन्ध में एक बहुत बड़े विद्वान् की बात याद रखनी चाहिए । उनका कहना है- “अपना दोष स्वीकार करना ही महत्व का लक्षण है,” अर्थात् जो अपना दोष स्वीकार करेगा, वह उस दोष को छोड़ देगा और इसी प्रकार वह निर्दोष बनकर एक महान व्यक्ति बन जायेगा ।

शिक्षा- बहुत से बालक इस बात को बुरा मानते है वे समझते है कि उनके दोष दिखना, उनकी मानहानि करना है । यह उनकी भारी भूल है । गुरुजनों का उपदेश शिष्यों के दोष बताकर उन्हें दिर करके, उनको उन्नति के मार्ग पर ले जाना है । -स्वामी आलोकानन्द 

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