चरित्रबल ही मनुष्य होने का सबसे बड़ा प्रमाण हैं कैसे ?


मनुष्य का चरित्रबल 

गुरूजी कल हमने नेपोलियन का पाठ पढाया था, बताओ उसको कौन-सी बात आपको अच्छी लगी ?
सुरेश– गुरूजी, मुझे तो नेपोलियन का यह कहना अच्छा लगा की- “The word impossible is found in the Dictionary of fools.” अर्थात् असंभव शब्द तो मूर्खों के शब्दकोष में मिलेगा  इस संसार में कोई भी कार्य ऐसा नहीं, जिसे हम असंभव कह सकें

गुरूजी– ठीक है सुरेश, नेपोलियन के इस कथन ने संसार में एक क्रांति पैदा की है और क्या बात याद है ?
सुरेश– गुरूजी मुझे नेपोलियन का यह कहना भी अच्छा लगा कि-  ईश्वर कौन है, कैसा है, कहाँ हैं ? “Even in war, the moral is to the physical as ten to one”. अर्थात् लड़ाई के मैदान में शारीरिक बल से दस गुना चरित्र बल चाहिए ।

गुरूजी– महेश, क्या तुम बता सकते हो कि इसका क्या अभिप्राय हैं?
महेश– गुरूजी, यह तो कुछ उल्टी-सी बात लगती है । लड़ाई के मैदान में तो जितना मोटा-ताजा और बलवान मनुष्य होगा, उतना ही अच्छा लड़ पाएगा ।

गुरूजी– तुम समझे नहीं, महेश ! एक बड़ा बलवान व्यक्ति है, परन्तु उसके पास चरित्रबल नहीं है तो वह सारी फ़ौज को हराने का कारण बन जावेगा ।
महेश– वह कैसे गुरूजी ?

गुरूजी– एक बलवान सिपाही है पर चरित्र बल से हिन है, तो वह शत्रु के हाथ में पड़कर अपनी सेना के सब भेद बता देगा और हार का कारण बन जावेगा। कितना भी दुबला-पतला और कमजोर सिपाही हो, पर चरित्ररूपी बल यदि उसके पास हो तो वह कभी किसी के आगे झुकेगा नहीं और लोग उसकी पूजा करेगे । वास्तव में चरित्ररूपी बल जिसके पास होता है, उसे ही सत्पुरुष कहते हैं । अभिमन्यु की चक्रव्यूह रचना का पर्दाफाश कैसे ?
सुरेश– गुरूजी, चरित्ररूपी बल से आपका क्या अभिप्राय हैं ?

गुरूजी– सुरेश! चरित्रबल अमूल्य सम्पत्ति है- धन उसके सामने हेय है । ईमानदारी, पुण्य, धर्म करने की प्रवृति, दयापूर्ण प्रेम व्यवहार, स्वार्थ-त्याग, सौम्यता, सरलता, निर्वैरता, पवित्रता, सत्यपरायण, ये चरित्ररूपी बल के अंग है । जो व्यक्ति लज्जाशील, प्रियवादी, स्वार्थ-त्यागी, सद्गुण सदाचार का भण्डार, धीर, वीर, गंभीर स्वभाव वाला, निर्लोभी, दानशील, उदार, धर्मात्मा और प्रत्येक का कल्याण चाहने वाला है, उसे ही सज्जन कह सकते हैं ।
सुरेश– गुरूजी, जिनमें यह गुण नहीं है उनको आप क्या कहेंगे ?

गुरूजी– उन्हें हम गिद्ध कह सकते हैं ।
सुरेश– वह कैसे गुरूजी ?  निठल्ला व्यक्ति गलत सोच को ही जन्म देता हैं ?

गुरूजी– सुरेश, गिद्ध की यह प्रकृति होती है कि वह दुसरे जीवों के मांस को खाकर अपने उदार की पूर्ति करता है । इसी प्रकार जो व्यक्ति दूसरों के हितों की परवाह न करके अपने स्वार्थ के लिए प्रत्येक प्रकार से इनको नोच-नोच कर खाने का प्रयत्न करता है, उसे भी गिद्ध कह सकते हैं ।
सुरेश– गुरूजी ! इस कसौटी पर परखें तो मनुष्यों की संख्या बहुत कम रह जाएगी, फिर संसार का काम कैसे चलता हैं ?

गुरूजी– संसार का काम तो मनुष्य-संख्या से नहीं, चरित्रबल से चल रहा है । संसार की मानव जाती का सहारा चरित्रबल है । जिस जाती के पास जितना चरित्रबल है, वह उतनी ही सुखी और सम्पन्न हैं उससे अधिक नहीं । महेश– गुरूजी ! हम चरित्रबल को कैसे पहचानें ?

गुरूजी– महेश, जिसके पास चरित्रबल होता हैं, उसकी बातें निराली होती हैं । चरित्रवान नीच कार्य से घृणा करता है । दूसरों को अपने समान समझकर उनके साथ बरतता हैं । जो उसके मन में है वही कहता है और जो कहता है, वही करता है । चरित्रवान को कोई घूस नहीं दे सकता है और वह स्वयं किसी को धोखा नहीं देता है । भिन्न हों तो भी सत्य के आगे सिर झुकता है । चरित्रवान दुसरे के विचारों को सह्रदयता से सुनता है । उसके विचार भिन्न हों तो भी सत्ये के आगे सिर झुकाता है ।

चरित्रवान अपनी शक्ति को दूसरों की भलाई करने के काम में लाता है । वह अपनी शक्ति से बुराई दूर करता है और आपदा को सहन करता है । दुःख के होने पर, सत्य और साहस से सामना करता हैं । भारी आपत्ति के समय में भी कभी पथभ्रष्ट नहीं होता । चरित्रवान अपने माता-पिता और गुरुजनों का अनन्य भक्त होता है और इन्हीं गुणों के कारण चरित्रवान आदर पाता है ।
महेश– गुरूजी, हम आपके बड़े आभारी है । हमें आशीर्वाद दीजिये कि हम भी सज्जन बनने का यत्न करें ।

गुरूजी– मैं ह्रदय से आशीर्वाद देता हूँ कि आप सफलमनोरथ हों । -आलोक प्रभात 

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