1857 का इतिहास और भगोड़े मौलवी


1857  का इतिहास – क्रांति में भगोड़े मौलवी 
लार्ड कैंनिंग की आज्ञा से जरनल नील एक विशाल सेना जिसमें अधिकतर गोरे कुछ सिक्ख और कुछ मद्रासी थे लेकर बनारस पहुंचा। बनारस का नगर अंग्रेजों के हाथ में था। बनारस में भी गिरफ्तारियां की गई। फिर जरनल नील की आज्ञा से उसकी सेना के अनेक दल फिर से ग्रामीण प्रान्त को विजय करने के लिए ग्रामों पर चढ़ाई करने लगे। जिस ग्राम में सैनिक घुसते थे, जितने मनुष्य उन्हें मार्ग में मिलते थे वे उन्हें बिना किसी भेदभाव के तलवार से व गोली से उड़ा देते थे, अथवा फांसी पर लटका देते थे। चौबीस घंटे यह कत्ल कार्य चालू रहता था। सर्वत्र वृक्षों पर लाशें लटकी दिखाई देती थीं। फांसी का कार्य वृक्षों से ही लिया जाता था। इतने पर भी अंग्रेज संतुष्ट नहीं हुए, उन्होंने गांव जलाने प्रारम्भ कर दिए गांव के बाहर तोपें लगा दी जाती थी और समस्त आबाल, वृद्ध, वनिता यहाँ तक कि एक भी गांव वाला न सके। Asian Paints ने किया PM Cares Fund को सपोर्ट

चार्ल्सबाल लिखता है-“कि माताएं अपने दूध मुंहें बच्चों सहित और अगणित पुरुष और स्त्रियां जो अपने स्थान से हिल न सकते थे, बिछौनों के अन्दर ही जला दिये गये।एक अंग्रेज लिखता है कि-“जो लोग आग की लपटों से चौराहों और बाज़ारों में जो लाशें टंगी हुई थीं, उनके उतारने में सूर्योदय से सूर्यास्त तक मुर्दे धोने-वाली आठ-आठ गाड़ियां बराबर तीन-तीन मास लगी रहीं। इस प्रकार केवल एक स्थान पर छ: हजार मनुष्यों को झटपट समाप्त कर परलोक भेज दिया।” सत्संग से मनुष्य जीवन कैसे बदल सकता है ?

नील के एक दल का व्यक्ति अपने एक दिन के अत्याचार के विषय में अपने अंग्रेज मित्र को अभिमान से लिखता है कि- आप यह जान-कर संतुष्ट होंगे कि मैंने 20 ग्रामों को ग्रामवासियों सहित जलाकर भस्मसात् कर डाला। वह 11 जून को इलाहाबाद पहुंच गया। उसने किले के सिक्खों को पास के गांव को जलाने के लिए भेज दिया। उन नीच सिक्खों ने यह कार्य सहर्ष किया (१८५७ की क्रांति में सिखों ने अंग्रेजों का साथ दिया था) । 17 जून को अंग्रेजी सेना ने खुसरो बाग पर चढ़ाई की। मौलवी लियाकत अली ने युद्ध किया किन्तु नील की विशाल सेना के सम्मुख ठहरना असम्भव देख 17 जून की रात को मौलवी लियाकत अली 30 लाख के भरी खजाने को लेकर अपने परिवार सहित कानपुर की ओर निकल गया। कानपुर के पतन के पीछे मौलवी लियाकत अली दक्षिण के ओर चला गया। वहीँ से गिरफ्तार करके वह अन्डेमान काला पानी भेज दिया गया। कई वर्ष पीछे उसकी वहीँ मृत्यु हो गई। (लियाकत अली की भांति जितने भी मौलवी इस्लामी राज्य पुन: स्थापित करने की फ़िराक में क्रांति में शामिल थे वे, वे इसी प्रकार कायरों की भांति पीठ दिखाकर भागते रहे) भगत सिंह का नामकरण बिना किसी पंडित के हुआ था ?

जनरल नील ने खूब अत्याचार किए। जहाँ वह पहुंचता था, कत्लेआम करता, अग्नि लगवाता और लूटमार करवाता था। प्रयाग में उसने छोटे-छोटे बच्चों को केवल इस अपराध पर कि वे हरे झंडे लेकर जलूस निकालते थे, फांसी पर लटका दिया । वृक्षों पर लटका-लटका कर सहस्त्रों व्यक्तियों को प्रयाग में फांसी दी गई। भागते हुए व्यक्तियों को तोप के गोले और गोलियों से उड़ा दिया जाता था। इलाहाबाद में केवल एक स्थान पर ही छ: हजार मनुष्य मौत के घाट उतार दिए । सरकार की नजर इंटरनेट आधारित मनोरंजन के नए प्लेटफॉर्म ओटीटी पर

सर जार्ज केम्पबेल लिखता है कि “मैं जानता हूँ कि इलाहाबाद में बिल्कुल किस तमजिके कत्लेआम किया गया था, इसके पीछे नील ने वे कार्य किये जो कत्लेआम से भी बढ़कर थे । उसने लोगों को जान बुझकर इस प्रकार की यातनाएं दी और इतना सता सता कर मारा कि इस प्रकार की यातनायें भारतवासियों ने कभी किसी को नहीं दी। इसके पश्चात् कानपुर में जो हुआ उसके विषय में  नाना साहिब प्रकरण में लिखा गया है। इन्हीं दिनों भगवान् ने अंग्रेजो को दण्ड दिया। उनके कैम्प में हैजा फ़ैल गया था जिसमें सेकड़ों इसाई अंग्रेज बीमार होकर मर गए थे । -Alok Prabhat

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