भगत सिंह का नामकरण बिना किसी पंडित के हुआ था ?


भगत सिंह का नामकरण भगत सिंह का नामकरण – 27 सितम्बर, 1907 : दिन शनिवार : पंजाब के लायलपुर जिले का बंगा गाँव : प्रात: लगभग 9 बजे ।  बंद  कमरे में दर्द से छटपटाती विद्यावती का क्रन्दन गूँज रहा  था।  पास  बैठी सास जयकौर माथे को सहलाते हुए उन्हें धीरज बंधा रही थीं। दाई तेज से अपने कार्य में व्यस्त थी।  कमरे के बाहर सरदार अर्जुन सिंह बड़ी बेचैनी से इधर-उधर टहलते हुए किसी  शुभ समाचार की प्रतीक्षा कर रहे थे।  बुदबुदाते होठों से ‘वाहेगुरु’  का जाप करते हुए कभी-कभी वे बंद दरवाजे की ओर देख लेते । तभी नवजात शिशु की किलकारियों से आँगन गूँज उठा।  फांसी का जन्म और विकास कब और कैसे हुआ ?

अर्जुन सिंह ने शांति की सांस ली और हाथ उठाकर वाहेगुरु का शुक्रिया अदा किया। थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला और दाई ने खुशखबरी दी, “बधाई हो, सरदार साहब! पोता हुआ है। ” सूर्य की तप्त किरणों से चेहरा जगमगा उठा: बूढी हड्डियों में जैसे जवानी की लहर दौड़ गई। सरदार अर्जुनसिंह पुन: उस समय में लौट आए, जब उनके घर किशनसिंह का जन्म हुआ था।   वे हँसते हुए दाई से बोले,”यह मेरा पोता नहीं बल्कि  मेरा पुनर्जन्म है । मुझे विश्वास है  कि मेरा यह जीवन पूरी तरह से देशसेवा में समर्पित होगा। ” कुछ ही समय में बधाई देने वालो का ताँता टूट गया।  दान देने वालों को मिलेगी इनकम टैक्स में छूट…

भगत सिंह का नामकरण जिस समय नवजात शिशु का रुदन से उनका आँगन गूँज रहा था, उस समय उसके पुत्र देशभक्ति का जज्बा लिए कठोर कारावास की सजा भोग रहे थे।  किशनसिंह, अजीतसिंह, स्वर्णसिंह-तीनों भाई शिव के त्रिशूल की भांति  ब्रिटिश  सरकार पर निरंतर आघात कर रहे थे।  वे सरकार की आँखों की किरकिरी बन चुके थे।  इसलिए उनसे छुटकारा पाने के लिए बिना मुकदमा चलाए ही उन्हें कारावास में डाल  दिया था।  यद्यपि वकील सरकार के विरुद्ध उनके पक्ष को अदालत में रख चुके थे, तथापि जेल से रिहा होना असंभव प्रतीत हो रहा था।Chanakya Niti (चाणक्य नीति श्लोक) भाग-4; 61 से 80

शिशु के जन्म के तीसरे दिन ही किशनसिंह एवं स्वर्णसिंह जमानत पर छोड़ दिए गए। अभी उन्होंने घर में प्रवेश किया ही था कि पीछे- पीछे अजितसिंह के रिहा होने का समाचार भी आ  पहुंचा । घर में  उत्सव का वातावरण बन गया।  शिशु अवश्य एक पुण्यात्मा था, जिसने परिवार के सभी दुखों को नष्ट कर उसमें खुशियाँ  संचार कर दिया । शिशु को  गोद में उठाकर जयकौर भावावेग में  बोलीं,”मेरा पुत्तर कितना भागांवाला हैं।  इसके आते ही बिछड़ा हुआ परिवार फिर से मिल  गया। मेरा मन कहता है की पिछले जन्म में यह जरुर कोई  बड़ा भगत रहा होगा।  इस जन्म में हमारे कुल का उद्धार करने के  लिए आया है। MSME की परिभाषा जल्द बदल जाएगी- गडकरी

 “ठीक है बेबे, आज से हम इसे ‘भगत’ ही कहेंगे।  भागोंवाला भगत, भगत सिंह।” किशनसिंह ने माँ के ह्रदय से निकले शब्दों पर अपने समर्थन की मुहर लगा दी। इस प्रकार अनजाने ही शिशु का नामकरण हो गया। ‘भगतसिंह’-एक ऐसा नाम, जो आनेवाले वर्षों में सदा-सदा के लिए अमित हो जाने वाला था: इतिहास ने जिसे सुनहरे अक्षरों में संजोना था;  जिसे देशभक्ति और बलिदान का परिचायक बनाना था। -आलोक प्रभात 

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