एक-दूसरे से बातें करना और सुनना उतना ही जरूरी है जितना जीने के लिए हवा-पानी...

किसी भी बात को ध्‍यान से सुनना सुनते समय संयम बनाए रखना और फिर समझ कर अपनी प्रतिक्रिया देना बहुत ही महत्‍वपूर्ण है।

किसी भी बात को ध्‍यान से सुनना, सुनते समय संयम बनाए रखना और फिर समझ कर अपनी प्रतिक्रिया देना बहुत ही महत्‍वपूर्ण है। लेकिन अगर आपने किसी बात को ध्‍यान से सुना ही नहीं तो आप समझ क्‍या पाएंगे और किसी नतीजे पर पहुंचेंगे कैसे? सबसे पहली कड़ी तो सुनना ही है। दोस्‍तो, इन दिनों ज्‍यादातर बच्‍चों, किशोरों में ‘लिस्‍निंग स्किल’ की काफी कमी नजर आ रही है, जबकि इस समय इसकी सबसे ज्‍यादा जरूरत है… एक दिन अभिजीत मेट्रो ट्रेन का इंतजार कर रहे थे, तभी पास में बैठी एक अनजान लड़की को परेशान देखा, जो अपने फोन में मैसेज टाइप करते हुए व्यस्त थी और साथ ही उसकी आंखों से आंसुओं की धार भी बह रही थी। अभिजीत ने चुपके से उसके मैसेज पढ़े, जिसमें लिखा था कि अगर सामने वाला बंदा फोन नहीं उठाता है, तो वह ट्रेन के सामने कूद जाएगी। अभिजीत ने हिम्मत करके उस लड़की से बात की और कहा कि वह कुछ शेयर करना चाहता है, क्योंकि उससे कोई बात करने वाला नहीं है। क्या है Mutual Fund, इसमें कैसे करें निवेश?

लड़की सुनने को तैयार हो गई और बातों-बातों में अभिजीत ने अपनी कहानी सुनाई कि कैसे एक समय वह जिंदगी से ऊब चुका था। लेकिन फिर दोस्तों और परिवार वालों ने मदद की। आज वह अपने जीवन से बहुत खुश है। इसका असर हुआ, लड़की ने हंसते हुए अलविदा कहा और ट्रेन में बैठकर चली गई। दरअसल, उस लड़की ने अभिजीत की बातों को गौर से सुना और उसके मन का गुबार निकल गया।

सुनना और ध्‍यान से सुनना दोस्‍तो, सुनना सबके लिए ही जरूरी है। लेकिन सिर्फ सुनने व ध्‍यान से सुनने में भी फर्क होता है। सुनने के समय आपके कानों में कुछ आवाजें आ रही हाती हैं, लेकिन ध्‍यान से सुनने का अर्थ है कि आवाजें आपके कान में आईं, आपने उस पर अच्‍छी तरह गौर किया और फिर जवाब दिया। एक सफल स्‍टार्टअप से जुड़े युवा मैनेजर अक्षत कहते हैं, ‘आजकल लोग ‘हेयर’ तो करते हैं पर ‘लिसन’ कम कर रहे हैं जबकि लिस्‍निंग एक स्किल है जिससे आप दूसरे को समझते हैं। जीवन में सादगी क्यों जरूरी है जानिए क्या हैं इसके फायदे...

अगर आप किसी के चेहरे के हावभाव देख रहे हैं या सिर्फ उसके शब्‍दों को सुन रहे हो तो आप किसी भी समस्‍या के मूल में नहीं पहुंच पाऐंगे। आप हमेशा से ऊपर-ऊपर ही देखकर जवाब देते रहेंगे। गहराई से बात नहीं समझ पाएंगे। दूसरों की भावनाओं से नहीं जुड़ पाऐंगे।‘ अक्षत यह भी कहते हैं कि यहां जरूरी है कि परिजनों और दोस्‍तों की बात सुनकर उन्‍हें जज न करें। क्‍योंकि जजमेंटल होना उन्‍हें अपनी बात कहने से रोकता है। किसी को जजमेंट नहीं चाहिए। लोगों को चाहिए कि उन्‍हें ध्‍यान से सुनें ओर समझें। तीन चीजें बहुत महत्‍वपूर्ण हैं। पहली, ध्‍यान से सुनें, खुद को उसके समकक्ष रखकर समझें। दूसरी, फिर इनपुट दें कि आप अपनी तरफ से क्‍या बेहतर कर सकते हैं और तीसरी, सोच-विचार कर समाधान दें।

क्‍या समय नहीं है सुनने का? दुनिया के मशहूर उद्योगपति रिचर्ड ब्रैनसन ने अपनी एक लिंक्डइन पोस्ट में लिखा था कि ध्यान से सुनने की उनकी कला उन्हें अपनी जिंदगी और बिजनेस में काफी काम आई है। रिचर्ड के अनुसार, सुनना इसलिए जरूरी है क्योंकि इससे नया सीखने की गुंजाइश कभी खत्म नहीं होती। इसके साथ ही सुनना आपको सतर्क भी बनाता है। थियेटर आर्टिस्ट दर्शन कहते हैं, ‘आज सुनने वाले लोग कम हो गए हैं, जिससे अकेलापन जल्दी घेर लेता है। इसलिए वे अक्सर ट्रेन या मेट्रो में सफर करते हुए अनजाने लोगों से बातें करते हैं। उन्हें सुनते हैं। एक-दूसरे से बातें करना और सुनना उतना ही जरूरी है जितना जीने के लिए हवा-पानी।  नीम-नीबू से बना स्प्रे फ्रिज, मोबाइल, कंप्यूटर और कमरे को वायरस मुक्त बनाएगा

बारहवीं पास करने वाले अर्चित का भी मानना है, ‘आजकल देखने वाले ज्‍यादा है। सोशल मीडिया पर हर कोई आपकी हर चीज देख रहा है। आपको ऑब्‍जर्व कर रहा है। आप कोई पोस्‍ट डालते हैं तो बहुत से कमेंट आते हैं लेकिन यह एकतरफा कम्‍युनिकेशन है। कोई कुछ गलत लिख दे तो वह आपको खराब लग सकता है और आपके मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य को प्रभावित कर सकता है। कभी आप दूसरे लोगों की पोस्‍ट देख रहे हैं तो आपको लगता है कि दूसरे लोग मजे कर रहे हैं और मैं नहीं। इससे भी मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य आहत हो सकता है। सोशल मीडिया पर समय बर्बाद करने वाले बच्‍चों के पास समय नहीं है सुनने का। हमें परिवार व दोस्‍तों के बीच अपनी बातें शेयर करना और बताना जरूरी है क्‍योंकि वे मजबूत सपोर्ट होते हैं।‘

सिर्फ बात करना ही कम्‍युनिकेशन नहीं कोई आपसे अच्‍छी बात करे तो आप उसे जरूर ध्‍यान से सुनें। हो सकता है वे बातें आपकी मुश्‍किल से बचा दें।अभिजीत ने एक अनजान लड़की को न सिर्फ आत्महत्या करने से बचाया, बल्कि दोस्तों के लिए एक मिसाल भी बने। दरअसल, इस समय जो माहौल चल रहा है, इसमें आप फिजिकली अपने दोस्‍तों से मिल नहीं पा रहे हैं तो ऐसे में बातें सुनना, सुनाना बहुत महत्‍वपूर्ण हो गया है।  Hridaya – Heart in the Vedas

हमें लगता है कि हम जो बात कर रहे हैं वही कम्‍युनिकेशन है लेकिन अगर आप उसे समझ नहीं पा रहे हैं तो वह भी कम्‍युनिकेशन गैप है। आठवीं में पढ़ रहे सात्विक इस बात को स्‍वीकार करते हुए कहते हैं, ‘आधी बात तो हम दोस्‍तों की बॉडी लैंग्‍वेज से ही समझ जाते हैं लेकिन इस समय आमने-सामने नहीं हैं तो उन्‍हें ध्‍यान से सुनना बहुत जरूरी हो जाता है।‘परिश्रमी किसान की बुद्धिमता

बदल गई है परिवार की संस्‍कृति डॉ. राजी अहमद (रांची क्रिटिकल केयर स्‍पेशलिस्‍ट, स्‍टोरीटेलर, ऑथर) कहती हैं कि पहले बच्‍चे दादा-दादी की लंबी बातें ध्‍यान से सुनते थे। कहानियों, किस्‍सों में उन्‍हें मजा आता था और उनकी सुनने की क्षमता बढ़ जाती थी। लेकिन अब हमारे परिवारों की संस्‍कृति में काफी बदलाव आया है। एक तो बच्‍चे अब सोशल मीडिया और टीवी में बिजी रहते हैं तो उनके पास कोई बात ध्‍यान से सुनने का न समय होता है न ही मन। दूसरे, जब बच्‍चे हमसे कुछ छोटी बात भी कहते हैं तो हम उसे टाल देते हैं फिर वे कोई बड़ी बात बताने और सुनने से कतराने लगते हैं। वैसे भी बच्‍चे जो देखते हैं वही करते हैं। पैरेंट्स भी काम से आने के बाद फोन देखने लगते हैं। खाने की टेबल पर भी घरवाले हाथ में फोन रखते हैं। लिविंग रूम में बैठे हों तो भी सबके हाथ में फोन रहता है। बच्‍चों में सुनने की संस्‍कृति को विकसित करने के लिए परिवार के लोग साथ बैठें और आपस में बातें करें। कुछ कहें और सुनें तो बच्‍चों में भी सुनने की आदत पड़ेगी। सब जानें कि एक-दूसरे की जिंदगी में क्‍या चल रहा है।  रामनगरी में राममंदिर के साथ आकार लेगा राष्ट्रमंदिर, 5 को PM करेंगे भूमि पूजन

कविता नारंग (होममेकर ) कहती हैं कि सुनेंगे तो ही जानेंगे मेरा बेटा भरत पबजी खेलता है। ज्‍यादा नहीं खेलने के लिए बोलो तो खीज जाता है। उसे समझ नहीं आता कि पैरेंट्स ऐसा क्‍यों बोल रहे हैं। हम चाहते हैं कि किसी भी चीज को एक सीमा तक इस्‍तेमाल करें। उसकी आदत न बनाएं। हमने उसे समझाने की कोशिश की है। कहता है कि इस समय ही कर रहा हूं आगे नहीं करूंगा। बच्‍चे सुनते नहीं तो उन्‍हें समझ में ही नहीं आता कि जिंदगी में करना क्‍या है। बच्‍चे अपने पैरेंट्स को दोस्‍त समझें और अपनी समस्‍याओं को शेयर करें। अब तो माता-पिता भी दोस्‍ताना व्‍यवहार रखते हैं। हम अनुभवी हैं सही गलत का फर्क ही बताएंगे उन्‍हें। पर मुश्किल है कि वे हमें सुनते नहीं। 

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- एक अध्ययन में पाया गया कि ध्‍यान से सुनने वाले बच्‍चे अटेंटिव होते हैं। वे वर्बल व नॉन-वर्बल एक्सप्रेशंस का इस्तेमाल करते हुए प्रतिक्रिया देने में भी सक्षम होते हैं। साथ ही वे लॉजिकल फीडबैक भी दे पाते हैं। ओपन माइंडेड होने के साथ-साथ सवाल पूछने की खूबी भी उनमें विकसित होती है। क्रिटिसाइज करने के बजाय वे तार्किक तरीके से अपनी बात रख पाते हैं। इस चाय के सेवन से इम्युनिटी मजबूत करने में मिलेगी मदद

- जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में हुए एक अध्ययन के मुताबिक, सक्रियता से सुनकर आप नए नजरिए, नॉलेज और सूचनाओं के बारे में जान सकते हैं और ऐसा करना प्रोफेशनल लाइफ में आपके काफी काम आएगा।

- ध्‍यान से सुनने वाले बच्‍चे… .

-अपने काम की बात समझ जाते हैं।

-वे बातों में निहित संदेश और उसके अर्थ पर ध्यान देते हैं।

-पुरानी जानकारियों से जोड़ने का प्रयास करते हैं। जटायु संरक्षण केंद्र यूपी में जल्द बनेगा, बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के सहयोग से…

- यदि आप सिर्फ बोलना जानते हैं, तो कभी सफल नहीं हो सकते।’- विंस्टन चर्चिल -Alokananad

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