महारानी पद्मावती Padmawati का जौहर
सन 1303 में अलाऊद्दीन खिलजी दिल्ली Delhi का बादशाह बना। उन दिनों चित्तोड़ Chittod में राणा रत्नसिंह का राज्य था। उनकी रानी पद्मिनी Rani Padmini अपने मनोहर और अनुपम सौन्दर्य के लिए प्रसिद्ध थी। अलाऊद्दीन खिलजी को जब उसके दैवी सौन्दर्य का पता चला तो उसने उसे हांसिल करने का फैसला कर लिया। खिलजी एक विशाल सेना लेकर चितौड़ को ओर बढ़ा। उसने राणा रत्नसिंह को सन्देश भेजा “रानी पद्मिनी Rani Padmawati को मेरे हवाले कर दो वरना चितौड़ को ध्वस्त कर दिया जायेगा”। Hawan से वायु प्रदूषण का 100% सफाया
महाराजा रत्नसिंह Raja Ratnsingh ने युद्ध करने का निर्णय ले लिया। जब खिलजी ने यह फैसला सुना उसने पैंतरा बदल लिया और राणा के पास सन्देश भेजा “दिल्ली Delhi के बादशाह अलाऊद्दीन खिलजी चितौड़ Chittod को रूपवती रानी पद्मिनी Rani Padmini का दीदार चाहते हैं। अगर उसके चहरे को शीशे में से ही दिखा दिया जाये तो वे धन्य होकर वापस लौंट जाएंगे, अन्यथा चितौड़ chittod को दुनिया के नक़्शे से मिटा देंगे।” चितौड़ को खून खराबे से बचाने के लिए रानी पद्मिनी Rani Padmini के कहने पर रत्नसिंह ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।
एक विशेष व्यवस्था के अनुसार खिलजी ने महाराणा के साथ आकर शीशे में रानी पद्मिनी Rani Padmawati का प्रतिबिम्ब देखा। उसके बाद महाराणा अपनी निष्कपटता के कारण खिलजी को छोड़ने उसके खेमे तक चले गए। वहां उसने रत्नसिंह को बंदी बना लिया और रानी पद्मिनी Rani Padmawati को सन्देश भेज दिया “अगर अपने पति की जान चाहती हो तो अपने आपको मेरे हवाले कर दो”। रानी ने सरदारों के साथ बातचीत करके यह योजना बनाई तथा बादशाह को सन्देश भेज दिया कि महारानी पद्मिनी Rani Padmawati अपनी एक हजार सखियों के साथ पालकी में बैठकर बादशाह के हरम में पहुँच रही है। Birth of Gold and Minerals in vedas
खिलजी तथा उसके सरदार राजपुताने की एक हजार सुन्दर युवतिओं की खबर सुनकर खुशियां मनाने लगे। हथियार परे रख दिए, शराब के दौर चलने लगे। इन्तजार की घड़ियाँ समाप्त हुई। सभी पालकियां सामने आ गई। एक- एक पालकी को चार-चार कहार उठाकर लाए थे। प्रत्येक पालकी में दो-दो राजपूत सरदार शास्त्रों से लैस होकर बैठे थे। चार-चार कहार भी चुने हुए सैनिक थे। पलक झपकते ही छ: हजार राजपूतों ने खिलजी के सैनिकों को गाजर-मूली की तरह काटा और राजा रत्नसिंह को आजाद करवा लिया। फिर खिलजी ने अपनी सेना बढाकर बीस गुना कर ली और चितौड़ पर हमला कर दिया। इस बार के आक्रमण के आगे राजपूत सेना का टिकना कठिन था। समर्पण और बलिदान में से बलिदान को चुन लिया गया। निर्णय हुआ की सभी राजपूत सैनिक रक्त की आखरी बूँद तक युद्ध करेंगे।
जब रानी पद्मिनी Rani Padmawati को इस बात का पता लगा उसने भी सभी सैनिकों की चौदह हजार रानियों को बुलाकर जौहर की योजना बना ली। जीते जी युवतियों को कोई आक्रमणकारी छू न सके इसलिए यह फैसला लिया गया। जौहर के लिए एक अति विशाल हवन कुंड बनाकर तैयार किया गया। महाराजा रत्नसिंह ने स्वयं अपने हाथों से अग्नि प्रज्वलित की। आग की ज्वालाएं आकाश को छूने लगी। सर्वप्रथम रानी पद्मिनी Rani Padmawati आगे आकर आग में कूद गई। उसके पीछे एक-एक करके चौदह हजार रानियों ने जौहर की आग में कूद कर अपने प्राण दे दिए। ईश्वर सर्वव्यापक होकर सबको देखता है। Omnipresent God
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अपनी आँखों के सामने अपनी माताओं, बहनों, बेटियों और पत्नियों को आग की लपटों में धू-धू कर जलता देखकर राजपूत सैनकों के खून खौल उठे और वे भूखे शेरों की तरह खिलजी के सेना पर टूट पड़े। वे सभी शहीद हो गये पर खिलजी की सेना इतनी अधिक थी कि उनमे फिर भी बहुत सरे बच गए। अलाऊद्दीन खिलजी कुछ सरदारों के साथ पद्मिनी को प्राप्त करने के इरादे से किले के अन्दर पहुंचा तो अपना सिर पटक कर रह गया। धुआं, लपटें, राख-बस यही कुछ बचा था उसके स्वागत के लिए। -Alok Prabhat
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