सुरक्षित शारीरिक दूरी के इस दौर में सुकून के दो पल बहुत हैं। पर हम चाहें भी तो यह संकल्प बार-बार टूटता है। विशेषज्ञों के मुताबिक, ऐसी स्थिति में ‘इस्केपिज्म’ यानी पलायनवाद का फामरूला मददगार हो सकता है। यह मुश्किलों की तीखी धूप से दूर ले जाकर सुकून की छांव तलाशने के लिए प्रेरित करेगा। यहां पलायनवाद का अर्थ सच से भागना नहीं, बल्कि सच के साथ रहकर कुछ ठोस प्रयासों के जरिए मन को सकारात्मकता की ओर ले जाना है।
ऐसे ठोस उपाय क्या हो सकते हैं, विशेषज्ञों से बातचीत के आधार पर उस रोज मन में उमंग भरी थी। पहले भी मैंने बहुत-सी प्रस्तुतियां दी थीं, पर इस बार दिल्ली के तिहाड़ जेल में बंद कैदियों के बीच प्रस्तुति देनी थी। मुझे याद है मैंने उस दिन बांसुरी पर राग अहिरभैरव पेश किया था। दो घंटे के वादन के बाद वहां परिवेश पहले से बिल्कुल बदल गया था। हर आंख जैसे नम हो गई थी। सब कृतज्ञ थे। भावविभोर हो रहे थे। उपस्थित सभी कैदी मेरे पांव छूने निकट आ गए। मैं खुद में और संगीत के करिश्माई प्रभावों को लेकर और अधिक भरोसे से भर गया। उस दिन प्रत्यक्ष देखा कि अच्छी संगति या रचनात्मक कार्यो के बीच कुछ ही देर में मन की परतें कैसे खुलती जाती हैं। आर्थिक वृद्धि और सामाजिक सुरक्षा के लिए योजनाओं को ढंग से अमल में लाना जरूरी
मन की दशा हमारे प्रयासों से कैसे बदल सकती है? इस सवाल पर उपरोक्त वाकया जाने-माने बांसुरी वादक रोनू मजुमदार ने सुनाया। उनके मुताबिक, उस दिन सबको समझ में आ गया होगा कि कोई जन्म से अपराधी नहीं होता। पहले हर कोई एक इंसान है, जिसका मन एक खास सकारात्मक परिस्थिति में बदल सकता है। वर्तमान संकट में हमें इसी बात पर अमल करना है। रोनू कहते हैं, ‘आपके मन की दशा यदि नकारात्मक हो रही है तो यह स्वाभाविक है पर यह न मानें कि यह आगे भी ऐसी ही रहेगी। मन एक-सा नहीं रह सकता, हम चाहें तो अपने संयमित प्रयासों और इच्छाशक्ति से इसे बदल सकते हैं।’
कोलाहल से शांति की ओर ‘इस्केपिज्म’ कोई रॉकेट साइंस नहीं, जिसके लिए आपको कोई जटिल प्रक्रिया अपनानी पड़े। बस जब आपको लगे कि परेशान करने वाली मनोदशा पर आपसे नियंत्रण नहीं हो पा रहा तो उस वक्त ‘दिमाग की बत्ती’ बंद कर लें यानी उस बात से दिमाग हटा लेने का प्रयास करें। नियमित रूप से उस काम में जुटने का अभ्यास करें, जिसमें आपकी रुचि हो। कैलिफोर्निया की क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट कार्ला मेरी मेनली के अनुसार, मनोविज्ञान की भाषा में इस्केपिज्म यानी पलायनवाद एक इच्छा और व्यवहार है जिसके बाद आप अनचाहे भावों को अनदेखा कर सकते हैं। इस्केपिज्म आपको जानबूझकर ऐसी तरीके अपनाने के लिए प्रेरित करता है जो इस कोलाहल भरे समय में भी शांति और सुकून दे सके। 11 लाख से ज्यादा भारतीयों की हुई वापसी: वंदे भारत मिशन के तहत
गांधी मेडिकल कॉलेज, भोपाल के मनोचिकित्सा विभाग के पूर्व अध्यक्ष और जाने-माने मनोचिकित्सक आरएन साहू कहते हैं, ‘हमारा दिमाग आमतौर पर रक्षात्मक रहता है। मुश्किलों को तुरंत स्वीकार नहीं करता। हालांकि सबके साथ ऐसा नहीं होता पर कुछ लोग अपनी कोशिशों से मनोदशा को अपने काबू में रखते हैं।..यह समय एक युद्ध भी है, जिसमें आपके आत्मविश्वास की परीक्षा होनी है।’ तो क्या करें? इस सवाल के जवाब में डॉ. साहू का कहना है कि, अपने पसंदीदा कार्यो में डूबने का नियमित अभ्यास करें, ताकि दिमाग को धीरे-धीरे एक ऐसी दुनिया की ओर शिफ्ट किया जा सके , जहां आपको बाहरी नियंत्रण से मुक्ति का एहसास हो।
मन डराता है तो राह भी दिखाता है अनुग्रह पांड्या उन कोरोना योद्धाओं में से हैं, जो संकट के शुरुआती दौर में अपने हौसले से बाहर आए। कोरोना का कोई लक्षण नहीं था, पर जब एहतियातन जांच कराई तो रिपोर्ट पॉजिटिव थी। उन्हें तुरंत अस्पताल में आइसोलेट होना पड़ा। उनके मुताबिक, मन आपको डराता है तो वह राह भी दिखाता है। अनुग्रह कहते हैं, ‘मैंने 14 दिन के आइसोलेशन के दौरान कुछ नई चीजें कीं। जैसे टीवी, मोबाइल बंद कर वहां मौजूद दो-तीन लोगों से दोस्ती की। हम देश-दुनिया की घटनाओं की नहीं, बल्कि अपने-अपने क्षेत्रों की जानकारियों को साझा किया करते थे। बाकी समय में मेडिटेशन।’अनुग्रह एक जानी-मानी कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। भारत में युद्ध और शांति के समय अदम्य साहस दिखाने के लिए दिए जाते हैं पदक...
खुद को दें एक अवसर गृहिणी अंजु गुप्ता बदली दिनचर्या के कारण कुंठित महसूस करती थीं। सबकी देखभाल में अपने लिए वक्त नहीं मिलता था। कुछ दिन तनाव में रहीं, पर एक दिन अचानक छोटी-सी बॉलकनी में दो-चार गमले लगा लिए। जब उन पौधों में फूल आए तो मन जैसे सारी हलचलों से दूर हो गया। ऐसे ही कई मनपसंद कार्यो के जरिए बाहर की दुनिया से कट जाने जैसे इस्केपिज्म के प्रभाव आप भी आजमा सकते हैं। दिमाग को आप ‘रिसेट’ कर सकते हैं। दबाव में भावुक हो जाना आसान है, पर मन में बदलाव जगाना ज्यादा मुश्किल काम नहीं है। कुछ गलत नहीं है, खुद को एक नया अवसर देने में।
इस्केपिज्म के कुछ बहाने, कुछ तरीके अपने प्रिय टीवी शो या डॉक्यूमेंट्री देखें। ये पसंद आ रहे हैं तो आपके पास दूसरी दुनिया की खिड़की खुलती जाएगी। बस चुनाव हमारा है कि हम किसे चुनें, क्या देखें जो बाहर के नकारात्मक प्रभावों से दूर करके सुकून दे सके।
अपने कमरे के किसी कोने को सजाएं या चित्रकारी करें। रंगों से करें अटखेलियां। इसके लिए कलाकार होना जरूरी नहीं। बस यह याद रखना है कि हम सबके भीतर बसता है एक कलाकार, जो कला के जरिए हमें खुद से जोड़ देता है।
हर दिन नियमपूर्वक टहलने निकलें और खुली हवा में सांस लें। इस बंद लगती दुनिया में एक खुला आकाश है, जहां आप उड़ान भरने के लिए आजाद हैं।
कुकिंग हो या किताब पढ़ना या लेखन , यह न केवल खुद में आत्मविश्वास जगाने का जरिया हो सकता है बल्कि बाहर की उलझन भरी दुनिया से एक सुकून भरी दुनिया में प्रवेश करने का भी तरीका है यह। भारत और चीन में फिर हुई बात लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात
जतन बिना जब मिल जाए आनंद बाहर की दुनिया से ध्यान हटा लेना आपको तुरंत आराम देता है। इसके लिए आपको अधिक जतन नहीं करना पड़ता। जरा सोचिए, सिनेमा देखने, गाना गाने या सुनने, वीडियो गेम खेलने या किसी भी ऐसी ही पसंदीदा चीज के लिए क्या जतन करते हैं आप?
जल्दी परिणाम मिलता है इसलिए आनंद मिलता है। नाटकीय रूप से मूड बदल जाता है या मस्त हो जाता है। डोपामाइन यानी खुशी पैदा करने वाले हार्मोन के स्नाव का यह कमाल है।
शारीरिक दूरी का दर्द भले हो पर वचरुअल साथ के कारण अकेलेपन का एहसास नहीं होता। वीडियो चैट, फोन और वीडियो गेम भी साथ खेलने का आनंद ले सकते हैं।
इस्केपिज्म संतोष देता है। नकारात्मकता के जाल में फंसकर खुद निकल पाने का संतोष। तमाम उलझनों के बाद भी खुद को खुश करने का समय निकाल सकते हैं। आर्य निर्मात्री सभा का इतिहास Arya Nirmatri Sabha
रुचियां जगाएं, उन्हें दबाएं नहीं हम संगीत साधकों को ईश्वर ने प्रेम का उपहार दिया है। सुबह जब रियाज करता हूं तो रागों का असर मन पर पड़ता है और मन जागृत रहता है। इसलिए हताशा नहीं आती मन में। पर तकलीफ होती है जब लोग भयभीत होकर अपने बहुमूल्य जीवन को मुश्किल में डाल लेते हैं। हर व्यक्ति के अंदर हुनर है, हर किसी को किसी न किसी काम में मजा आता है। उन्हें ऐसे समय में अपनी रुचियों को प्रकाश में लाना चाहिए। उन्हें दबाएं नहीं। यह न सोचें कि इस वक्त यह सब आसान नहीं या आपके पास समय नहीं। संगीत पसंद तो होगा ही, यदि गा नहीं सकते तो संगीत सुनकर भी मन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। किसान क्रेडिट कार्ड हुए स्वीकृत 1 लाख करोड़ क्रेडिट लिमिट से अधिक के
रोनू मजुमदार- मशहूर बांसुरीवादक हम शांत बने रहेंगे हम बाहरी दुनिया में मौजूद समस्याओं को अपनी इच्छाओं से खत्म नहीं कर सकते। पर हम अपने भीतर की दुनिया में सहनशीलता, क्षमा और संतोष का विकास जरूर कर सकते हैं। यदि हमने मन की शक्ति का निर्माण कर लिया तो बाहरी प्रभावों से बचे रहेंगे, हम शांत बने रहेंगे। दलाई लामा, आध्यात्मिक गुरु वित्त मंत्रालय, आरबीआइ और नीति आयोग के बीच विमर्श शुरु हुआ मध्यावधि आर्थिक लक्ष्य के लिए… -Sabhar Alok
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