Arya Nirmatri Sabha सम्पूर्ण इतिहास (कब, क्यों, किसने, कैसे) 

Arya Nirmatri Sabha ने दिसंबर 2003 से आर्यसमाज की गतिविधियों को प्रारंभ किया था । इस संगठन ने आर्यनिर्माण प्रक्रिया का अराभ करते हुए शुरू में चार-चार दिन के शिविर (कैम्प) लगाये । शिविर में आर्यसमाज की विद्या को संक्षेप में बताकर अंत में जो शिविरार्थी वैदिक धर्म को अपनाना चाहता था उसका यज्ञोपवीत संस्कार करवा दिया जाता है । इस प्रकार लोगों आर्यसमाज में सम्मिलित करने का प्रकल्प शुरू हुआ । राममय हुआ सोशल मीडिया भी, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छाया ‘पधारोराम अयोध्या धाम’

कुछ शिविरों के पश्चात् arya nirmatri sabha ने शिविर को 4 दिन के बजाय 3 दिन का कर दिया गया । उसी समय कैम्प को सत्र का नाम दे दिया गया । परन्तु वर्तमान विपरीत परिस्थितियों के कारण कुछ समय पश्चात् सत्र को 3 दिन की बजाय 2 दिन तक सीमित कर दिया गया जो आज तक चल रहा है । Arya nirmatri sabha का प्रभावी कार्यक्षेत्र हरियाणा है परन्तु उत्तरप्रदेश तथा दिल्ली में भी arya nirmatri sabha ने हजारों आर्यों को तैयार करके अपना कार्यक्षेत्र विस्तृत कर दिया । आर्य निर्मात्री सभा को विधिवत् रूप से पंडित लोकनाथ आर्य (करनाल, हरियाणा) ने 18 अप्रैल, 2007 को दिल्ली में पंजीकृत करवाया । पंडित लोकनाथ आर्य इसके संस्थापक तथा पश्चात् में अध्यक्ष भी बने । 

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वर्तमान में आर्य निर्मात्री सभा का कार्यालय आचार्य महाविद्यालय, चित्तौड़ाझाल, मुजफ्फरनगर में है । परन्तु मूल रूप से आज तक इसका कार्यालय आर्यसमाज भवन, शिवाजी कॉलोनी, रोहतक, हरियाणा में ही है । Arya Nirmatri Sabha के विभिन्न कार्यक्रम व रुपरेखा यही से प्रारंभ होती रही है । राष्ट्रीय आर्य निर्मात्री सभा, जुलाई 2017 तक लगभग 1000 सत्र लगा चुकी है । 50 हजार से अधिक लोग आर्य निर्मात्री सभा के शिविरों में भाग ले चुके है । राष्ट्र के नायक हैं राम संज्ञा के रूप में और विशेषण के रूप में इच्छित आदर्श

राष्ट्रीय आर्य निर्मात्री सभा के लगभग 3000 से 5000 तक सक्रीय कार्यकर्ता पुरे देश में फैले हुए है । इनमें से अधिकतर हरियाणा प्रान्त में सक्रीय है । Arya nirmatri sabha ने हाल ही में महासत्रों का प्रकल्प चलाया है जिसमें एक साथ 500 से अधिक लोगों के भाग लेने का प्रबंध किया जाता है । इन सत्रों को arya nirmatri sabha के द्वारा तैयार किये गए आचार्य लेते है । 

निर्मात्री सभा के प्रमुख आचार्यों की सूचि इस प्रकार है :- 

आचार्य परमदेव मीमांसक :- मूल रूप से आर्य निर्मात्री सभा रूपी यज्ञ आचार्य परमदेव ने ही शुरू किया था बाद में पंडित लोकनाथ आर्य ने यज्ञ में अपनी अमूल्य आहुति दी । आचार्य परमदेव मीमांसक को संगठन में “मुख्य आचार्य” तथा “बड़े-आचार्य” भी कहा जाता है । संगठन की सभी गतिविधियाँ आचार्य महाविद्यालय, मुजफ्फरनगर से ही संचालित करते है । arya nirmatri sabah acharya paramdev mimansak इनका मूल निवास स्थान है :- ग्राम महागूपुर , नवाबगंज , जिला गोंडा, उ० प्रदेश । इनके गुरु व धर्म के पिता जो आचार्य परमदेव ने स्वीकार किये है वे है : – स्वामी जगदीश्वरानन्द जी (इनका स्वर्गारोहण हो चूका है) । इनके आरंभिक गुरु थे :- आचार्य बलदेव जी महाराज (इनका भी स्वर्गारोहण हो चूका है) । बहुत इलाज करवाने के पश्चात् भी इनकी एक आंख खराब हो गयी परन्तु अपने देखने के लिए हजारों आँखों को तैयार कर चुके है । 

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आचार्य हनुमत प्रसाद :- इनको संगठन में दूसरा स्थान प्राप्त है । वर्तमान में ये दिल्ली के टटेसर गांव में स्थित गुरुकुल में प्रधानाचार्य है । ये अथर्ववेद के आचार्य है । इनका पैतृक गांव भेटियारा, धौन्तरी, उत्तरांचल में स्थित है । व्यक्तिगत जीवन की अपेक्षा सामाजिक जीवन में आते ही गंभीरता, भीरुता में अचानक से वृद्धि हो जाती है । 

जितेन्द्र आर्य :- आर्य लोकनाथ के बाद संगठन का भार इनके कंधो पर ही है । ये arya nirmatri sabha के राष्ट्रिय महामंत्री है । पेशे से जितेन्द्र जी वकील है । इनका त्यागमय जीवन प्रेरणादायक है । लगभग डेढ़ साल पहले इन्होने अपना एकमात्र फौजी बेटा खो दिया ।नकटों का ढोंग Follow the Crowd

यशवीर आर्य :- आर्य निर्मात्री सभा को यशवीर आर्य ने खून-पसीना एक करके सिंचा था। आज से लगभग 3 साल पहले तक यशवीर आर्य को संगठन में वो मान-सम्मान तथा स्थान हासिल था जो आज तक किसी को हासिल नहीं हुआ । आचार्य परमदेव के बाद यशवीर आर्य की चर्चा रहती थी । यशवीर आर्य जब सत्र लगाते थे तो उसका प्रभाव अधिक माना जाता था । परन्तु संगठन के साथ मनमुटाव के चलते इन्होने आर्य निर्मात्री सभा को छोड़ दिया या यूँ कहे कि इनको निकाल दिया गया । यशवीर आर्य मूल रूप से रोहतक के अस्थल बोहर गांव के निवासी है । आजकल घुम्मनहेड़ा दिल्ली में गायों के पालन में तथा वैदिक क्रांति दल के साथ मिलकर आर्यनिर्माण का कार्य कर रहे है । 

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संजीव आर्य (मुजफ्फरनगर उ० प्र०) :- निर्मात्री सभा में आजकल सांगठनिक कार्यों की अधिकता तथा स्वास्थ्य कारणों को ध्यान में रखते हुए इनके सत्र अत्यंत कम कर दिए गए है । संजीव आर्य कैंसर से झूझकर भी निरंतर निर्मात्री सभा का कार्य कर रहे है । राम संज्ञा के रूप में राष्ट्र के नायक हैं और विशेषण के रूप में इच्छित आदर्श

योगेश आर्य (मुजफ्फरनगर उ० प्र०) :- Arya nirmatri sabha के सत्रों में योगेश आर्य की बहुत मांग रहती है । राष्ट्रीय आर्य क्षत्रिय सभा (rashtriya arya kshatriya sabha) उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष भी है । उदार हृदय व्यक्ति है । इन्होने पहले राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता रह चुके है । अब पुरे भारत में आर्यनिर्माण का कार्य कर रहे है । व्यक्तिगत जीवन की अपेक्षा सामाजिक जीवन में आते ही गंभीरता, भीरुता में अचानक से वृद्धि हो जाती है । 

बलजीत आर्य :- इनका निवास स्थान गांव कानौंदा, बहादुरगढ़, झज्जर में है । आर्यसमाज में आने से पहले ये कबीरपंथी थे । हरयाणवी भाषा पर अत्यंत पकड़ होने के कारण इनका हरियाणा के कुछ क्षेत्रों में बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है । इनकी स्वाध्याय में अत्यंत रूचि है तथा कई बार अच्छे-अच्छे विद्वानों को पानी पिला देते है । एक बार सोनीपत के आत्म-सत्र में इन्होंने जीवात्मा के स्वाभाविक/नैमितिक गुणों पर आचार्य परमदेव की भूल को हजारों आर्यों के समक्ष बता दिया था । 

मुख्य आचार्य परमदेव मीमांसक ने अपना बड़प्पन दिखाते हुए इस भूल पर आत्मिक स्वीकृति दी थी । आजकल बलजीत आर्य जी की सत्रों में उपस्थिति नगण्य हो गयी है । कुछ विषयों पर वैचारिक मतभेद तथा पारिवारिक स्थिति के कारण arya nirmatri sabha के कार्यक्रमों में अनुपस्थित रहते है । परन्तु फिर भी निर्मात्री सभा के बुलावे पर ये मैदान में कूदने को तैयार हो जाते है । 

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सतीश आर्य (रोहिणी, दिल्ली) :- दिल्ली में अध्यापक के पद पर कार्यरत है । वक्तृत्व क्षमता अन्य आर्यों की अपेक्षा कम है किन्तु सांगठनिक समझ व पकड़ बहुत अधिक है । शांत, गंभीर तथा सरल प्रवृत्ति के आर्य है । 

अशोकपाल आर्य (जींद, हरियाणा) :- बिजली विभाग में SDO के पद पर कार्यरत है । इनकी आवाज ओजपूर्ण तथा प्रभावी है । सत्रों के अतिरिक्त हरियाणा प्रान्त में संगठन को सुदृढ़ करने व आर्यों में वैचारिक मतभेद दूर करने का महत्वपूर्ण दायित्व भी इनके कंधो पर ही है । 

राजेश आर्य :- राजेश आर्य गांव कुतुबगढ़, दिल्ली निवासी है तथा दिल्ली में ही अध्यापक पद पर कार्यरत है । इन्होने पहले दिल्ली पुलिस में भी नौकरी की है । संगठन के प्रति इनकी निष्ठा अतुलनीय है । सत्रों के अतिरिक्त दिल्ली प्रान्त में छात्रनिर्माण का कार्य भी इनका दायित्व है । इनके अतिरिक्त डॉ सुशीला आर्या , चन्द्रकान्ता आर्या , इन्द्रा आर्या तथा सुमन आर्या आदि महिला सत्रों को लेती है । 

विवाद :- इसमें कोई संदेह नहीं कि कोई भी व्यक्ति, संगठन आदि आगे बढ़ता है तो उसपर आरोप लगने स्वाभाविक ही है । ऐसे ही कुछ आरोप निर्मात्री पर भी लगे है :- आचार्य परमदेव मीमांसक ने गुरुकुल जौंती में रहते हुए 2003 में एक बच्चे के साथ अश्लील हरकतें की । बच्चे का नाम मलकीत तथा उसके पिता का नाम बच्चन सिंह आर्य (गांव खेड़ा कलां दिल्ली) है । कोर्ट में 15 साल से केस चल रहा है । आचार्य परमदेव मीमांसक को 1 रात की जेल भी इस मामले में हो चुकी है । CBI की सुशांत मामले में जांच के मुद्दे पर पवार परिवार में कलह

परन्तु अब तक आरोप सिद्ध नहीं हुआ है । यह विरोधी लोगों की चाल भी हो सकती है । परन्तु सबूतों व गवाहों को देखते हुए कहा जा सकता है कि यह केस अत्यंत पेचीदा है नहीं तो कोई भी निराधार केस इतना लम्बा व सशक्त नहीं चल सकता है । आर्य निर्मात्री सभा का जौंती गुरुकुल आर्यसमाज की विरोधी संस्था व विरोधी शिक्षा से जुड़ा हुआ है । गांव के लोगों व कुछ अन्य बाहरी आर्यों ने इस मुद्दे को आधार बनाकर निर्मात्री सभा को घेरा था परन्तु विरोधी गुट कागजी करवाई के कारण कुछ न बिगाड़ पाया । इस मामले में कुछ युवकों पर FIR भी हुई थी । जिनमें राहुल आर्य, सोमबीर आर्य (पूर्व अध्यापक जौंती गुरुकुल), आशीष, सोनू सिंह आदि समेत 3-4 आर्य ओर भी थे ।

आर्य निर्मात्री सभा ने धनार्जन करने हेतु घी का प्लांट लगाने का निर्णय लिया था । इस प्लांट में हजारों आर्यों के पैसे लगे थे । 

आर्य निर्मात्री सभा का इतिहास Arya Nirmatri Sabha - Vedic Press

दो व्यक्तियों यशवीर आर्य (संगठन की ओर से) तथा सुशील बनिया (मुख्य आचार्य की ओर से) को आर्य घी का सारा कार्यभार सौंपा गया । इस घी के प्लांट ने एक बार हरियाणा में संगठन को तहस नहस कर दिया था । 

आरोप निम्न है :-     

घी का प्लांट उत्तराखंड में क्यों लगाया जबकि उसके लिए कच्चा माल (दूध आदि) हरियाणा, पंजाब से अधिक जा रहा था । उसके बाद तैयार माल वापिस हरियाणा, पंजाब आदि में आर्यों के यहाँ खप रहा था । ट्रांसपोर्ट की लागत दोगुनी बढ़ रही थी । आरोप है कि उत्तराखंड में इसलिए लगाया ताकि प्लांट में होने वाली मनमानी आर्यों को पता न लगे क्योंकि आर्य केवल हरियाणे से जुड़े थे । 

आर्य विद्या में योग्य न होने पर भी केवल आचार्य परमदेव के करीबी होने के कारण सुशील बनिया को बागडौर क्यों सौंपी ? इम्‍यूनिटी बढ़ाने में सहायक हल्‍दी, मिर्च और अदरक सेहत के लिए है भी खास

“ग्राम बसा नहीं, लुटेरे आ गये” वाली कहावत के अनुरूप आरोप लगा कि लाभ का 10% हिस्सा सभा के अकाउंट में क्यों जाता था जबकि यह आर्यों का पैसा था ? अनेकों आर्यों के तो धरती में हाथ टिक गए । 

अंत तक यही क्यों कहा गया कि प्लांट अच्छा चल रहा है ? क्यों अंतिम समय तक भी आर्यों के पैसे लिए जाते रहे ? ऐसा क्या हुआ कि अचानक प्लांट कंगाल दिखा दिया गया ? 

ऐसे ही अनेकों आरोप आर्य निर्मात्री सभा पर प्लांट के मामले में मात खाये आर्य लगाते रहे है। 

प्लांट में करोड़ों रूपये लगाने वाले व संगठन के लिए जान की बाजी लगाने वाले यशवीर आर्य अचानक से संगठन के दुश्मन कैसे घोषित कर दिए ? जबकि उनपर कोई आरोप सिद्ध नहीं हुआ ?

दयानन्द मठ पर आक्रमण करके वहां से जरुरी कागजात चोरी करना क्यों जरुरी था? आर्यसमाज के संस्कारों व शिक्षाओं तथा भारत के कानून के विरुद्ध जाकर यह कार्य करके सारे हरियाणा क्षेत्र में आर्यसमाज की किरकिरी क्यों करवाई ? पथरी का इलाज Pathri Ka Ilaaj

आचार्य परमदेव द्वारा जिन त्याग-तप की मूर्ति आचार्य बलदेव जी से पढ़े उनके प्रति ही नव आर्यों में जहर भरना तथा संस्कृति बचाव आन्दोलन में गुरु बलदेव का साथ देने की बजाय उनको धमकवाना कहाँ तक उचित था ? इस प्रकार हम कह सकते है कि आर्य निर्मात्री सभा का निर्माण होने से पहले ही विवादों का निर्माण होने लग गया था । कुछ जानकर लोग यह भी आरोप लगाते है कि निर्मात्री सभा परमदेव आचार्य ने अपने कोर्ट केस के चलते बचाव हेतु बनाई थी । इसलिए अपने साथ भोले आर्यों को 2 दिन के सिद्धांतो के अलावा कुछ नहीं सिखाया पढाया जाता है । उनको व्यर्थ के क्रियाकलापों में लगाकर व्यस्त रखने का प्रयत्न किया जाता है तथा अपने आगे-पीछे बन्दुक पकड़ाकर घुमाया जाता है । 

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इस आरोप में दम नहीं लगता क्योंकि बच्चे का केस 08-05-2005 को सामने आया था जबकि परमदेव आचार्य 2007 से ही कह रहे है कि आर्यनिर्माण का कार्य मैंने दिसंबर 2003 अथवा यूँ कहे कि 2004 से शुरू किया है । वैसे arya nirmatri sabha बच्चे के केस के पेचीदा होने के पश्चात् 18 अप्रैल, 2007 को दिल्ली में पंजीकृत करवाई । 2003 को शुरू करने वाली बात केवल यहाँ तक सीमित थी कि आर्यसमाज के गुरुकुल के आचार्य होने के कारण सामान्य आर्यसमाज की गतिविधियाँ करनी ही पड़ती है लेकिन उनको संगठन का नाम नहीं दे सकते । संगठन तो 2007 में बना है। 

बिना ताकत व लोक सहानुभूति के हरियाणा में चुनाव में अनेकों आर्य उम्मीदवार उतारे गए जिसमें अपार धनराशी आर्यों की लगी । हर जगह जमानत जब्त हो गयी तथा आर्यों की आर्थिक स्थिति ख़राब होकर उनके घरों में पारिवारिक कलह बढ़ गए । परन्तु मेरी राय में आर्यों का चुनाव लड़ना बिलकुल गलत नहीं था । कृष्‍ण के जीवन की वो बातें जिस पर आज भी झूमता है विश्‍व

वैसे आज तक इन आरोपों को सही सिद्ध नहीं किया गया है । किसी ने गहराई में जाने का प्रयत्न भी नहीं किया । इतनी बातों को कहने के पश्चात् यह कहा जा सकता है कि आर्यसमाज का दुर्भाग्य है कि कार्य करने के बजाय एक-दुसरे पर आरोप लगाने में समय व्यतीत कर रहे है। जो भी हो आज आर्य निर्मात्री सभा सक्रीय रूप धारण करके तेजी से आगे बढ़ रही है । सभा की इस अच्छाई को अपनाकर सभी को आर्य निर्माण का कार्य अपने अपने स्तर पर करना चाहिए । प्रक्रिया चाहे सत्र वाली हो या ऋषि दयानंद की प्रवचन तथा शास्त्रार्थ वाली कार्य होना अनिवार्य है । 

आज आरोप केवल निर्मात्री सभा पर ही नहीं सभी सभाओं पर लग रहे है । निर्मात्री सभा भी आरोप लगाती आई है (अनेकों सिद्ध हो चुके है) । आर्य प्रतिनिधि सभा, हरियाणा की स्थिति आचार्य बलदेव के जाने के बाद अत्यंत दयनीय हो चुकी है । आचार्य विजयपाल गुट अलग तथा रामपाल गुट अलग हो चुके है । अभी रामपाल गुट में भी दो फाड़ हो चुकी है । योगेन्द्र आर्य को मंत्री पद से हटा दिया गया है । आरोप उन पर भी गंभीर लगे है । इस पर फिर कभी चर्चा करेंगे ।

आर्य प्रशिक्षण सत्र at Saini Dharamshala Jind, Jindइतना कह सकता हूँ कि आर्यसमाज के सामने घोर अंधकारमय तथा संकट की स्थिति है जिससे पार पाना लगभग असंभव सा लग रहा है क्योंकि जो अपने को विभिन्न सभाओं के सम्मानित आर्य, आचार्य कहलवाते है वे निरंतर रूप से संध्या-उपासना नहीं करते । 100 में से 80 को (संभवतः इससे भी ज्यादा) आर्यसमाज के 10 नियम कंठस्थ नहीं है । आर्य अपनी विद्या को बढ़ाये तथा व्यक्तिवाद, से ऊपर उठकर स्वार्थ, हठ, दुराग्रह को छोड़कर मानवमात्र की भलाई के लिए आगे आये और यह तब होगा जब हम आर्यसमाज के नियमों को समझकर उनका पालन करेंगे नहीं तो स्वार्थ वश ऐसे ही आर्यों के नाम पर परहानि करते रहेंगे । ITR दाखिल करने में अब ना करें और देरी, FY19 के लिए क्या कहते हैं एक्सपर्ट

आशा और विश्वास है कि आर्यसमाजी अपने मनमुटाव भुलाकर गलतियों को त्यागकर अच्छाई को धारण करके मिलकर बुराई, दुष्टों से लड़ने में अपना सामर्थ्य लगायेंगे । मैं तैयार हूँ और आप ? ।। 

ओउम शांति: शांति: शांति: ।। -Alok Aarya