प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अयोध्या में भूमि पूजन पर कुछ लोगों ने आपत्ति प्रकट की है। आपत्ति का आधार भारतीय संविधान के सेक्युलर चरित्र को बनाया गया है। ऐसी आपत्तियों और आलोचनाओं से असहज नहीं होना चाहिए। राष्ट्र के जीवन में ऐसे अवसर आते हैं, जब कुछ बुनियादी प्रश्नों पर लंबी बहस चलती है और वही तार्किक रूप से हमें सही स्थिति तक ले जाने का काम करती है। रक्षा सूत्र में छिपी है कई सनातन परंपरा
प्रधानमंत्री द्वारा भूमि पूजन ने नए सवाल को जन्म दिया है। क्या राम भारतीय समाज के एक हिस्से के ही प्रतिनिधि पुरुष या आदर्श हैं या वे भारत की लंबी सभ्यता एवं संस्कृति में सर्वस्पर्शी आदर्श राष्ट्रीय या सभ्यताई चरित्र के प्रतीक और प्रेरणा दोनों थे, हैं और रहेंगे? सभ्यता व संस्कृति को अवचेतन से चेतन मन में लाने के लिए विमर्श की आवश्यता होती है। यह विमर्श बौद्धिक शिथिलता को समाप्त करता है और सांस्कृतिक इतिहास को समझने का अवसर देता है। उक्त आपत्ति का एक आधार है। मुगलों और अंग्रेजों ने भारत की सांस्कृतिक चेतना को मारने का प्रयास किया। अंग्रेजों के काल खंड में जो एक बड़ा कुलीन वर्ग पैदा हुआ और जो राजनीति से लेकर महानगरीय जीवन पर आधिपत्य बनाने में सफल रहा उसका चिंतन, उसकी बुद्धि, उसकी अभिव्यक्ति यूरोप की राजनीतिक समझ और विचारों से तय होती रही।सावन पूर्णिमा और रक्षा बंधन पर भेजें अपने प्रियजनों को शुभकामनाएं…
इसीलिए यह बात सत्य है कि भारत की वैचारिक संप्रभुता यूरोप के विचारकों के अधीन आजादी के बाद भी बनी रही। उनके अनुभवों को हमारे विचारकों ने उधार लेकर भारत को वैचारिक नेतृत्व देना चाहा। पर उनकी कई पीढ़ियां इसमें खप गई, भारत का मूल चरित्र अपरिर्वितत रहा। इस मूल चरित्र का प्रतिनिधित्व करोड़ों लोग करते हैं, जिनका जीवन मूल्य, जीवन दर्शन और जीवन की आकांक्षा अपनी परंपराओं, आदर्शों और नायकों से निर्धारित होता रहा है। तभी तो सेकुलरवाद की रट लगाने वाले विचारक आज खारिज किए गए महसूस कर रहे हैं। जब राज्य की ताकत से छद्म विचारक सामान्य लोगों के विवेक, जीवन आदर्श, प्रगतिशील परंपराओं और नायकों पर सवाल खड़ा करते हैं तब आम लोग उसका प्रतिउत्तर देने सड़कों पर उतरते हैं। अयोध्या आंदोलन इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। यह आंदोलन एक मंदिर निर्माण की ही कहानी नहीं है, बल्कि संस्कृति के स्वराज की आधारशिला रखने वाला एक ऐतिहासिक विमर्श है। जो ‘भारत क्या है?’ प्रश्न का समाधान ढू़ढता है। PM: नौकरी करने वाला बनने के बजाए नौकरी देने वाला बनाने पर है जोर
भारत का संविधान जिस विविधता, बहुलतावाद, धर्म की स्वतंत्रता की बात करता है, वह भारत की विरासत पर ही आधारित है। उस सभ्यता या संस्कृति की विरासत से अलग हटकर संविधान की पृष्ठभूमि और परिणामकारी मूल भाव को नहीं समझ सकते हैं। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा भूमि पूजन पर आपत्ति करने वाले संविधान को अक्षरों में पढ़ रहे हैं। कोई भी समाज अपने आदर्श चरित्र के बिना आगे नहीं बढ़ता है। वह चरित्र जितना ही सार्वभौमिक मूल्यों वाला, उदार और उदात्त होता है, उसमें उसी अनुपात में प्रभावी क्षमता विद्यमान होती है। राम भारतीय समाज के उसी आदर्श के प्रतीक और प्रेरणा दोनों हैं। उनका चरित्र उन प्रश्नों को संबोधित करता है, जो व्यक्ति, परिवार, समाज और राजकार्य से जुड़ा है।ईश्वर God कौन है ? कैसा है ? कहाँ है ?
वाल्मीकि और तुलसी के साथ-साथ सैंकड़ों स्थापित लेखकों कवियों ने राम चरित्र के राष्ट्रीय, सभ्यताई और मानवीय आदर्शों को परोसा है। सवाल करने वालों का समाधान दो बुनियादी बातों में निहित है। पहला, वामपंथी संस्कृति के भारतीय पक्ष से अपनी हार मानते हैं अत: सच जानते हुए भी वे सच का दमन करते रहे हैं। उनका भौतिकवाद आदर्श का शत्रु है। राम से उपजी सामाजिक चेतना उनके दर्शन को अनुपजाऊ बना देती है। इसलिए वे राम से जुड़े सभी पक्षों को अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक आइने में देखते हैं। उनके सार्वभौमिक आदर्श की कोई जाति या धर्म नहीं है। इस आदर्श से वे भयभीत हैं और भारतीयता के भीतर उप भारतीयताओं को बनाए रखना चाहते हैं।
सत्य, अहिंसा, प्रेम और करुणा का रामराज
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण में सहयोग के लिए तुलसी दल के रूप में पांच करोड़ रुपए की वित्त सेवा के लिए मेरी व्यासपीठ ने इच्छा जाहिर की और चार दिन में करीब 17 करोड़ रुपए बैंक में जमा हो गए। एक चिट्ठी मिली कि बापू, मुझे राम मंदिर के लिए कुछ देना है लेकिन मैं जानता हूं मेरी कमाई नीति की नहीं है। इसलिए हाथ नहीं चलते कि राम के मंदिर में पैसे डालूं। अब मैं अपने जीवन में सुधार करूंगा। इसमें कुछ समय लगेगा मगर तब जो नीति का पैसा आएगा, उसे मैं राम मंदिर के लिए दूंगा। इस तरह की जो भावना है, ये राम मंदिर से रामराज की तरफ उठने वाला पहला कदम है। गांधी समाधि राजघाट की कथा में भी कहा गया है कि रामराज तभी आएगा जब सत्ता नहीं, सत्य प्रिय होगा। राम की पादुका सत्य का प्रतीक हैं। भरत ने सत्ता से पहले पादुका यानि सत्य को महत्व दिया। राज दर्शन से पहले राम दर्शन और पद से पहले पादुका को भरत ने महत्वपूर्ण माना। सत्य व अहिंसा के मार्ग पर चाहे कितनी ही कम गति से चला जाए, चलते-चलते एक दिन गांधी के रामराज तक हम पहुंच ही सकते हैं। रामराज्य से अभिप्राय है सत्य, प्रेम और करुणा का राज। करुणा की पुत्री का नाम अहिंसा है। सत्य के बेटे का नाम अभय है और प्रेम के पुत्र का नाम त्याग है। जहां सत्य होगा, अभय आएगा ही और जो आदमी अभय होगा, वो शांत भी होगा। जहां प्रेम होगा, वहां त्याग अपने आप आ जाएगा। गीता में भी स्पष्ट कहा है कि त्याग से शांति प्राप्त होती है। Hindu Right To Propagate Religion
करुणा से अहिंसा जन्म लेती है और जिस व्यक्ति में अहिंसा होगी, वो शांत भी होगा। जिस दिन हृदय में राम का प्राकट्य हो, उसी दिन रामनवमी है और उसी पल से हम रामराज की तरफ गति कर सकते हैं। जीवन में रामजन्म करना हो, रामराज की तरफ गति करनी हो तो राम कथा निमंत्रण देती है। तुलसीदास ने सात सोपानों की सीढ़ी दी है। इससे ऊपर जाना है मगर जहां से ऊपर चढ़े थे, मंजिल प्राप्ति के बाद वहीं से छोटे से छोटे आदमी के लिए नीचे भी उतरना है। इसे ही राम अवतरण कहते हैं। यही रामराज का मूल है।
रामचरितमानस के साथ सोपान हैं। बालकांड में हरि प्रकट हुए हैं- भए प्रकट कृपाला, दीन दयाला। अयोध्या कांड में भगवान स्वयं कहते हैं कि मैं जन्मा हूंजन्मे एक संग सब भाई। अरण्यकांड में भगवान गति करते हैं। चित्रकूट में निरंतर गति है। राम तत्व गतिशील है। किष्किंधा में परमात्मा की उध्र्वगति है। हनुमानजी के कंधे पर बैठ कर भगवान ऋषिमुख पर्वत गए। ये केवल ईश्वर का ही ऊध्र्वगमन नहीं है, उसके अंश के नाते हम भी ये संदेश उचित रीति से लें तो ये अपना भी ऊध्र्वगमन है। कलियुग में भी हमारे जीवन में रामराज आ सकता है। राम ने अपने चरित्र से संदेश दिया है कि हनुमानजी जैसा सदगुरु मिल जाए तो हमें ऊपर की तरफ ले जा सकता है। KGMU नए कुलपति: मेडिकल रिसर्च पर होगा जोर, 12वीं के अंकों के आधार पर होंगे दाखिले ल. वि. वि. में
सुंदरकांड में जो ऊध्र्वगमन था, उसने शांति, भक्ति, प्रेम, सत्य और करुणा के लिए खोज शुरू की। रामराज के लिए मानव को भी ये खोज करनी चाहिए। लंका कांड में जो प्रभु की यात्रा है, वो निर्वाण की यात्रा है। सभी को मुक्ति देती है। सभी को बुद्ध करने के लिए युद्ध था। वो एक नवसर्जन था। उत्तरकांड विश्राम की यात्रा है। इसमें मानव परम विश्राम की ओर गति करता है। मानस में शंकर बोले हैं- राम जन्म के हेतु अनेका। राम जन्म के अनेक कारण हैं और सभी परम विचित्र हैं। पहला हेतु है- द्वारपाल हरि के प्रिय दोऊ। द्वारपाल यानि घर के रक्षक जिन्हें आप नौकर मानते हैं, वो हमें प्रिय होने चाहिए। अगर हम उन्हें प्रिय नहीं मानेंगे तो घर के बड़े से बड़े मंदिर में जो राम विराजमान हैं, वो भी हम से प्रेम नहीं करेंगे। रामराज यानी सत्य, प्रेम और करुणा का राज। करुणा की पुत्री अहिंसा है। सत्य का पुत्र अभय है और प्रेम का पुत्र त्याग है। जहां सत्य होगा, अभय आएगा ही और जो आदमी अभय होगा, वो शांत भी होगा। जहां प्रेम होगा, वहां त्याग खुद आ जाएगा।
यत्र-तत्र-सर्वत्र: श्रीराम अद्भुत सामरिक पराक्रम, व्यवहार कुशलता और विदेश नीति के स्वामी थे भारत के इतिहास में श्रीराम जैसा विजेता कोई नहीं हुआ। उन्होंने रावण और उसके सहयोगी अनेक राक्षसों का वध करके न केवल भारत में शांति की स्थापना की बल्कि सुदूर पूर्व और ऑस्ट्रेलिया के कई द्वीपों तक में सुख और आनंद की लहर व्याप्त की। श्रीराम अद्भुत सामरिक पराक्रम, व्यवहार कुशलता और विदेश नीति के स्वामी थे। उन्होंने किसी देश पर अधिकार नहीं किया लेकिन विश्व के अनेकों देशों में उनकी प्रशंसा के विवरण मिलते हैं। इससे पता चलता है कि उनकी लोकप्रियता दूर-दूर तक फैली हुई थी। मेडागास्कर द्वीप से लेकर ऑस्ट्रेलियाई द्वीप समूहों पर रावण का राज्य था। रावण विजय के बाद इस भाूभाग पर राम की र्कीित फैल गयी। राम के नाम के साथ रामकथा भी इस भाग में फैली और बरसों तक यहां के निवासियों के जीवन का प्रेरक अंग बनी रही। Apple और Samsung सहित 22 कंपनियां करेंगी 11.5 लाख करोड़ का निवेश, 12 लाख लोगों को मिलेगा रोजगार
श्रीलंका और बर्मा (अब म्यांमार) में रामायण का लोक गीतों व रामलीला की तरह के नाटकों का मंचन होता है। बर्मा में बहुत से नाम राम के नाम पर हैं। रामावती नगर तो राम नाम के ऊपर ही स्थापित हुआ था। अमरपुर के एक विहार में राम लक्ष्मण सीता और हनुमान के चित्र आज तक अंकित हैं। हिंद चीन के अनाम में कई शिलालेख मिले हैं जिनमें राम का यशोगान है। यहां के निवासियों में ऐसा विश्वास प्रचलित है कि वे वानर कुल से उत्पन्न हैं और श्रीराम नाम के राजा यहां के सर्वप्रथम शासक थे। रामायण पर आधारित कई नाटक यहां के साहित्य में भी मिलते हैं।
मलेशिया में रामकथा का प्रचार अभी तक है। वहां मुस्लिम भी अपने नाम के साथ अक्सर राम, लक्ष्मण और सीता नाम जोड़ते हैं। यहां रामायण को ‘हिकायत सेरीराम’ कहते हैं। थाईलैंड के पुराने रजवाड़ों में भरत की भांति राम की पादुकाएं लेकर राज्य करने की परंपरा पाई जाती है। वे सभी अपने को रामवंशी मानते थे। यहां ‘अजुधिया’, ‘लवपुरी’ और ‘जनकपुर’ जैसे नाम वाले शहर हैं। यहां पर राम कथा को ‘रामकृति’ कहते हैं और मंदिरों में जगह-जगह रामकथा के प्रसंग अंकित हैं।
कंबोडिया में भी हिंदू सभ्यता के अन्य अंगों के साथ-साथ रामायण का प्रचलन आज तक पाया जाता है। छठी शताब्दी के एक शिलालेख के अनुसार वहां कई स्थानों पर रामायण और महाभारत का पाठ होता था। जावा में रामचंद्र राष्ट्रीय पुरूषोत्तम के रूप में सम्मानित हैं। वहां की सबसे बड़ी नदी का नाम सरयू है। ‘रामायण’ के कई प्रसंगों पर कठपुतलियों का नाच होता है। बवासीर का अचूक औषधियों से सम्पूर्ण इलाज
जावा के मंदिरों में वाल्मीकि रामायण के श्लोक जगह-जगह अंकित मिलते हैं। सुमात्रा द्वीप का वाल्मीकि रामायण में ‘स्वर्णभूमि’ नाम दिया गया है। रामायण यहां के जनजीवन में वैसे ही अनुप्राणित है जैसे भारतवासियों के। मेक्सिको और मध्य अमेरिका की मय और इंका सभ्यता पर भारतीय संस्कृति की जो छाप मिलती है उसमें रामायण कालीन संस्कारों का आधिक्य है। पेरू में राजा अपने को सूर्यवंशी ही नहीं ‘कौशल्यासुत’ राम का वंशज भी मानते हैं। ‘रामसीतव’ नाम से आज भी यहां ‘राम सीता उत्सव’ मनाया जाता है। पवित्र गुरु ग्रंथ साहब में लगभग 1700 से अधिक बार ‘राम’ का उल्लेख होता है। भवभूति, कालिदास, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, राम के चरित्र से आदर्श भारतीय संस्कृति, समाज जीवन और राष्ट्रीय चेतना की स्थापना करना चाहते हैं।3 नियमों का पालन करें दुबलेपन से हैं परेशान, तो रोजाना
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