बंग भंग विरोधी आन्दोनल और नाकाम अंग्रेज


बंग भंग विरोधी आन्दोलन को निरस्त करने के लिए अंग्रेजों को  कैसे झुकना पड़ा?
यह मुख्यतः अंग्रेजों की फूट डालो और राज को वाली नीति का एक मुख्या अंग था जिसमें लॉर्ड कर्जन ने मुस्लिम बहुल वाले प्रान्तों को इक्कठा करने के लिए भारत के बंगाल को दो भागों में बाँटा गया। लेकिन इसे लोगों की एकता ने निरस्त करने पर अंग्रेजों को मजबूर कर दिया । जिस कारण यह  बंग-भंग के नाम से जाना गया । भारतीय किसान कोरोना संकट के समय मजबूती से डटे

देशभक्ति के भाव को सुस्त करने का प्रयास 
उस समय बंगाल प्रान्त बेडौल था । उसमें समूचे बंगाल के अतिरिक्त असम, बिहार और उड़ीसा के वर्तमान क्षेत्र शामिल थे । केवल प्रशासनिक दृष्टि से इन तीनों क्षेत्रों को अलग-अलग प्रान्तों का रूप दिए जाने की आश्यकता थी । बंगाल के चटगांव, ढाका, मैमनसिंह और तिप्परा पहाड़ी क्षेत्रों को असम से सम्बन्ध कर दिया गया, लेकिन उड़ीसा को मध्य प्रान्तों से सम्बन्ध व अलग से बिहार प्रान्त बनाने का प्रस्ताव ख़ारिज कर दिया था ।

इस विभाजन के पीछे जो साम्राज्यवादी चाल थी। जिसे हेनरी कॉटन नाम के अंग्रेज अधिकारी ने खोल दिया -“ और कहा की इस कार्य का उद्देश्य संपूर्ण एकता और संगठन की भावनाओं को चूर-चूर करना था, और न ही इस योजना के मूल में कोई भी प्रशासनिक कारण नहीं है । बल्कि यह लॉर्ड कर्जन की इस नीति का अंग है कि देशभक्ति के बुखार को पीछे हटाया जाये और उसकी सभी राजनीतिक शाखा- प्रशाखाओं को काट डाला जाये।”

सन 1904 में ब्रौडरिक के नाम एक पत्र में कर्जन ने लिखा था की “यदि हम इस समय उनकी चिल्ल-पों के आगे घुटने टेक देंगे तो हम बंगाल की काट-छाँट नहीं कर सकेंगे और आप भारत की पूर्वी सीमा पर एक विशाल शक्ति को पैर ज़माने का अवसर देंगे जो निश्चय ही भविष्य में एक भयंकर और अधिकाधिक बढ़ती जाने वाली विपत्ति का कारण बनेगी । गोवध अंग्रेजी शासनकाल से अब तक क्यों और कितना हुआ ?

देशभक्ति की अपूर्व बाढ़ 
यह विभाजन सम्पूर्ण बंगाल का गाढ़ापन बना । जिस पर तीव्र प्रतिक्रिया हुई और विरोध-सभाओं का प्रतिरोध का लावा निकला । लेकिन अंग्रेजों को ऐसी आशा बिलकुल भी नहीं थी। इस षड्यंत्र में मुसलमानों ने भी निडर होकर हिन्दुओं का साथ दिया और ब्रिटिश षड्यंत्र को धिक्कारा । मुसलमनो को हिन्दुओं से अलग करने के लिए लॉर्ड कर्जन और एंड्रयू फ्रेजर ने सरकारी सुविधाओं का लालच देने की नीति तैयार थी । ढाका में एक विशेष बैठक बुलाकर कर्जन ने घोषणा की कि “पूर्वी बंगाल एक मुस्लिम प्रान्त होगा।”

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कर्जन ने कहा की अगर मुस्लिम आत्मनिर्भर हो गए तो पूर्वी बंगाल राजधानी बन जायेगा, जिसके कारण गठित प्रान्त में संख्या और उच्चतर संस्कृति होने के कारण इस राज्यों के सभी जिलों को प्रमुखता मिलेगी । इससे अब तक की सबसे बड़ी एकता बंगाल में प्राप्त की जा सकती है जो आज तक बादशाहों ने भी नहीं की ।

दुर्भाग्यवश अनेक मुसलमान इस फंदे में फंस गए, व पूर्वी बंगाल को दारुल इस्लाम बनाने की उनकी महती आकांक्षा भड़क उठी । ‘जिहाद’ का नारा लगा दिया गया । हिन्दुओं पर आक्रमण होने लगे, मंदिरों को अपवित्र किया जाने लगा, संपत्ति की होली जलाई गई । इस कार्य को अंग्रेज अधिकारी, दण्डाधिकारी आदि मुसलमानों को उकसाने का कार्य करते रहे ।राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का जन्म कैसे और क्यों हुआ ?

बंग भंग की के नाकामयाब होने के कारण
ब्रिटिश साम्राज्यवादियों की इस चुनौती को बंगालियों ने स्वीकार किया और घोषणा की कि “वह दिन अवश्य आएगा जब यह छुटा हुआ बाण वापस लिया जायेगा।” बंगालियों ने 16 अक्टूबर,1905 को विभाजन दिवस  को रक्षाबंधन-दिवस के रूप में मनाने का संकल्प लिया । और पचास हजारों  से भी अधिक लोगों ने पवित्र गंगा स्नान किया और वे महान संकल्प के लिए बारीसाल में एकत्र हुए । ‘वंदेमातरम्’ का गगनभेदी जयघोष दिशाओं में गूंज उठा । रविन्द्रनाथ ठाकुर ने अखंड बंगाल के लक्ष्य को पूरा करने की शपथ दिलाई । लेकिन अंग्रेजों की दृष्टि में यह खुला देशद्रोह था। प्रान्त के लेफ्टिनेंट गवर्नर ने ज्वाला को शांत करने के लिए तुरंत सैनिक टुकडियां भेजीं । दांत की सफाई में पेस्ट या दातुन फायदेमंद है ?

हिन्दुओं पर किये गए अत्याचारों ने और सैनिकों द्वारा उनकी महिलाओं के साथ किये गए बलात्कारों ने बंगाली प्रतिशोध की ज्वाला को और अधिक भड़का दिया । ‘वंदेमातरम्’ का जयघोष बंगाल की सीमाओं को लांघकर के कर्णधार समूचे राष्ट्र का नारा बन गया । लॉकडाउन के बाद क्‍या-क्‍या होंगे बदलाव… देशव्यापी आन्दोलन में कर्णधार ‘लाल,बाल और पाल’ के त्रिगुट व क्रांतिकारियों द्वारा फेंके गए बम्ब ने अंग्रेजों की नींद उड़ाकर रख दी । 12 दिसम्बर,1911 को इंग्लैण्ड के सम्राट जॉर्ज पंचम हडबडाकर दिल्ली पहुंचे और उन्होंने घोषणा की कि बंग-भंग को निरस्त कर दिया है ।

इस प्रकार प्रथम बार राष्ट्रवादी शक्तियों ने ब्रिटिश साम्राज्यवादीयों की फूट डालने की चालबाजियों को करारी पराजय दी । यह घटना सन 1857 के संग्राम के बाद की सबसे बड़ी रोमांचकारी घटना थी जिसमें राष्ट्रीय आत्मबल-प्रदर्शन का सर्वाधिक प्रभावकारी प्रयास था जिसका राष्ट्र के प्रयेक मनुष्य पर एक अनोखा प्रभाव पड़ा । -आलोक आर्य 

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