राष्ट्रीय ध्वज का विचार, रंग और प्रतिक कैसा बना ?
राष्ट्रीय ध्वज निश्चय ही राष्ट्र के आदर्शों और आकांक्षाओं का, उसके इतिहास और परम्परा का, उसके हुतात्माओं के अनन्त बलिदानों और कष्टों का, उसके वीरों और संतों का शौर्य और तप का सर्वाधिक वन्दनीय और जगमगाता प्रतिक हैं। इस संबंध में कांग्रेस विचारधारा क्या थी और वर्तमान तिरंगे को वह स्तर कैसे प्राप्त हुआ ? दांत की सफाई में पेस्ट या दातुन फायदेमंद है ?
ध्वज किसने तैयार किया 1921 के लगभग बैजवाडा (विजयवाड़ा) में हुए एक अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के अधिवेशन में आन्ध्र के एक युवक ने एक ध्वज तैयार किया और उसे गाँधी के पास ले गया। यह दुरंगा था –लाल और हरा- दो प्रमुख समुदायों का प्रतिक। गाँधी ने बीच में एक श्वेत पट्टी जोड़ने का सुझाव दिया ताकि भारत के शेष समुदायों का प्रतिनिधित्व हो सके और चरखे का भी सुझाव दिया जो प्रगति का प्रतिक था । ‘इस प्रकार तिरंगे का जन्म हुआ । लेकिन उस समय इसे कांग्रेस समिति ने अधिकृत रूप से स्वीकार नहीं किया था । फिर गाँधी के अनुमोदन का प्रभाव यह पड़ा कि वह पर्याप्त लोकप्रिय हो गया और कांग्रेस समिति के अधिवेशनों पर फहराया जाने लगा ।
ध्वज की आवश्यकता पर बल ’1931 में कराची में जब कांग्रेस समिति की बैठक हो रही थी तो एक प्रस्ताव पारित किया गया जिसमें एक ऐसे ध्वज की आवश्यकता पर बल दिया गया । ध्वज के रंगों की महत्ता पर पहले ही पर्याप्त मतभेद था । जिसके कारण सांप्रदायिक अशांति प्रारंभ हो गयी। दोनों बड़े समुदाय अपनी अलग-अलग राह पकड़ने वाले थे और सांप्रदायिक व्याख्यान पर बल दिया जाने लगा । कुछ समय पश्चात ध्वज के चयन के लिए सात व्यक्तियों की एक समिति नियुक्त की गई जिसने सुझाव दिया की एकरंगा केसरिया ध्वज हो, जिसके धुर बाएं किनारे पर कत्थई रंग का चरखा हो । लेकिन इसे स्वीकार नहीं किया गया ।
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ध्वज में रंगों का प्रतिक ‘ध्वज के इतिहास में 1931 का वर्ष विशेष महत्व रखता हैं । एक प्रस्ताव पारित करके तिरंगे ध्वज को हमारा राष्ट्रीय ध्वज स्वीकार किया गया । वर्तमान ध्वज का पूर्वज यह ध्वज केसरिया, श्वेत और हरे रंग का था; किन्तु यह स्पष्ट था की इसका कोई सांप्रदायिक महत्व नहीं होगा; केसरिया साहस और बलिदान का प्रतिक, श्वेत सत्य और अहिंसा का प्रतिक तथा हर निष्ठा और शौर्य का प्रतिक होगा ।ध्वज चयन समिति ध्वज समिति में सरदार पटेल, मास्टर तारासिंह, पंडित नेहरु, मौलाना आजाद, डी.वी. कालेलकर, डॉ. एन.एस. हर्डीकर और पट्टाभि सीतारमैया थे । समिति ने विभिन्न प्रांतीय कांग्रेस समितियों, कांग्रेस समिति के सदस्यों और जनता की सम्मति प्राप्त की । समिति ने कहा की सिखों ने वर्तमान तिरंगे ध्वज में तीन रंगों के चयन पर आपत्ति की थी और अनुरोध किया था कि या तो उसमें उनके समुदाय के लिए भी एक रंग शामिल किया जाय अथवा एक ऐसा ध्वज चुना जाये जो असाम्प्रदायिक हो । इसके अतिरिक्त समिति ने कहा; “जब से इस आधार पर ध्वज के बारे में कुछ आपत्ति की गयी है, तब से यह समिति एक पर की गयी संस्तुति करने के लिए नियुक्त की गयी हैं।” तब्लीगी जमात का सच…?
समिति ने सर्वसम्मत विचार किया कि ध्वज के रंगों में कोई सांप्रदायिक महत्त्व नहीं होना चाहिए.. इसके अतिरिक्त समिति की यह मान्यता है की चरखे के बिना ध्वज के वर्तमान रंग बल्गारिया के ध्वज जैसा हैं और यह सुझाव कि श्वेत को मध्य में रखा जाये, उसे फारख के ध्वज सरीखा बना देगा । अत: सांप्रदायिक महत्त्व के प्रश्न के अतिरिक्त हमारा विचार है कि ध्वज के वर्तमान रंगों को हमारी स्वीकृति नहीं मिल सकती, क्योंकि वे इस विश्व के दो अन्य देशों के ध्वजों जैसे हैं । भारत ने कोरोना वायरस को लेकर चीन की भूमिका पर सवाल उठाने से क्यों किया परहेज?
हमारा विचार है कि ध्वज अति आकर्षक, कलात्मक, आयताकार और असाम्प्रदायिक होना चाहिए । सर्वसम्मत विचार यह है कि प्रतिक के रंग के अतिरिक्त हमारा राष्ट्रीय ध्वज एक रंग का होना चाहिए । यदि कोई ऐसा रंग है जो समग्र भारतियों के लिए अधिक भव्य और आकर्षक हैं जो इस प्राचीन देश की सुदीर्घ परम्परा से जुड़ा हुआ है, तो वह केसरिया रंग हैं। तदनुसार हमारा विचार है की प्रतिक के रंग को छोड़कर ध्वज केसरिया रंग का होना चाहिए और बाएं भाग के ऊपरी सिरे पर नील रंग का चरखा होना चाहिए। जिहाद क्यों और कैसे
ध्वज को स्वीकृति परन्तु कांग्रेस समिति गाँधी के मन की तिरंगी योजना से मतभेद करने का साहस न कर सकी और उसने सीधे ही स्वीकृति दे दी । जिस मानसिक प्रष्ठभूमि के कारण यह निर्णय लिया गया, वह घोर दुर्भाग्यपूर्ण सिद्ध हुआ ।
भारत कोई नया राष्ट्र नहीं था और न ही वैसा ‘निर्माणाधीन राष्ट्र’ था. जैसी मुर्खता में अंग्रेज हमे फंसना चाहते थे। यह तो एक प्राचीन राष्ट्र रहा है, जिसका एक महान अतीत और गौरवपूर्ण इतिहास हैं । अनादिकाल से केसरी या भगवा रंग उसका राष्ट्रीय प्रतिक रहा है। स्वाभाविक है की भगवा रंग जीवन के अनेक क्षेत्रों में , जिनमें स्वाधीनता के लिए अपूर्व शौर्य और बलिदान की गाथा भी सम्मिलित हैं, राष्ट्र की प्रेरणादायी उपलब्धियों की स्मृति का प्रतिक हैं। सांप्रदायिक मुस्लिम मानस को तुष्ट करने के लिए राष्ट्रीय प्रेरणा के इस अनादि स्त्रोत की घोर अवहेलना की गयी ।-आलोक प्रभात
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