Ayodhya Ram Temple

Ayodhya Ram Temple आप रोज डायरी लिखते हैं। उसमें दिन भर का हिसाब लिखते हैं। मन की बात लिखते हैं। अच्छा बुरा लिखते लिखते एक दिन डायरी आपका आईना बन जाती है। फिर वर्षो बाद एक दिन ऐसा आता है जब आप डायरी के पन्नों में अपना क्रमिक विकास पाते हैं। डायरी यूं महत्वपूर्ण हो जाती है लिखने वाले के लिए, लेकिन तब क्या और कैसे लिखें आप बीते कल की कहानी जब अगले सप्ताह आपके ही घर में कोई बड़ा आयोजन होने जा रहा हो। वह जो आपको प्रभावित करेगा। डायरी तब भावी की कहानी लिखना चाहेगी, घटे हुए को दोहराना नहीं। ... और जो होने वाला है, यदि वह धर्म, समाज व राजनीति की दृष्टि से परिवर्तनकारी और तीव्र प्रतिक्रियात्मक होने जा रहा हो, तब तो निश्चित ही आप उसी की बात कहना चाहेंगे।  राष्ट्र के नायक हैं राम संज्ञा के रूप में और विशेषण के रूप में इच्छित आदर्श

Jul | 2017 | BHARAT

आखिर तो हर डायरी अपने अपने अर्थ में भविष्य का दस्तावेज होती है। पांच अगस्त को अयोध्या में राममंदिर का भूमिपूजन होने जा रहा है। यह वह घटना होगी जो इतिहास को ठीक करेगी और इतिहास बनाएगी भी। यह समझना कि कोई एक घटना भावी पाठ्यक्रमों में जाने वाली है, रोमांचक अनुभूति होती है। पांच सदी पहले राजनीति ने धर्म में जो घातक घालमेल किया था और समाज ने आज तक जिसका मूल्य चुकाया, उस विभाजनकारी भूल का परिमार्जन पांच अगस्त को होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भूमि पूजन करेंगे और तीन वर्ष बाद मंदिर का लोकार्पण भी। रामलला के आंगन में जाने वाले मोदी पहले प्रधानमंत्री होंगे। उनके साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राममंदिर आंदोलन व निर्माण ट्रस्ट के कई प्रमुख नाम भी होंगे।PM: नौकरी करने वाला बनने के बजाए नौकरी देने वाला बनाने पर है जोर

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 पांच अगस्त का दिन अयोध्या के कायाकल्प का भी श्रीगणोश करेगा। जिन्होंने पिछले तीन-चार दशकों में अयोध्या को देखा है, उसकी दुर्गति वे कभी भूल नहीं सकते। वह शहर जिसने भारत और सनातन धर्म को उसका प्रतीक पुरुष दिया और जो लखनऊ से मात्र तीन घंटे की दूरी पर है, उसे कभी एक कस्बे से ऊपर नहीं उठने दिया गया। सैकड़ों वर्षो तक उपेक्षित रहने के कारण जीवित संस्कृति का एक उदास शहर बनकर रह गई थी अयोध्या। अब अयोध्या का भौतिक विकास तो होगा ही, लेकिन महत्वपूर्ण है उसका और उसके बहाने संस्कृति की एक पूरी धारा का आध्यात्मिक विकास। देश और सनातन धर्म के दृष्टिकोण से इस घटना की गूंज बहुत समय तक रहने वाली है। 

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पिछला पूरा सप्ताह अयोध्या की इसी तैयारी के इर्दगिर्द रहा। राज्य सरकार के मंत्री और अधिकारी ही नहीं, मुख्यमंत्री योगी ने भी अयोध्या जाकर शिलान्यास की तैयारियों की समीक्षा की। कार्यक्रम पर कोरोना का असर रहेगा और इसीलिए बहुत कम लोगों को बुलाया जा रहा है। राज्य सरकार अयोध्या को चित्रकूट से भी जोड़ने जा रही है। जिस अनुमानित मार्ग से राम वन को गए थे, उसके सुंदरीकरण की योजना भी बना ली गई है। अयोध्या की परिक्रमा श्रद्धालुओं के लिए तीर्थयात्र का पुण्य होती है और अब उसी परिक्रमा मार्ग को संवारने का काम भी शुरू हो गया है। राज्य सरकार इस अवसर को एक विशाल महोत्सव का रूप देने जा रही है। मुख्यमंत्री ने प्रदेशवासियों से चार और पांच अगस्त को घरों में दिये जलाने और मंदिरों में रामचरित मानस के अखंड पाठ की अपील की है।
 
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मंदिर से अलग यदि बीते सप्ताह कुछ हुआ तो वह था कोरोना का फैलता दायरा। रविवार को कोरोना ने उत्तर प्रदेश को झकझोर दिया। सुबह-सुबह प्राविधिक शिक्षा मंत्री कमलरानी वरुण के देहावसान की दुखद खबर आई। वह कुछ दिनों से अस्पताल में भर्ती थीं। लोग अभी उनकी मृत्यु के झटके में ही थे कि शाम होते होते भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह के संक्रमित होने की खबर फैल गई। उन्होंने खुद ट्वीट करके यह जानकारी दी। आशा ही की जा सकती है ये दोनों सूचनाएं आम लोगों को कोरोना के प्रति अधिक सजग सतर्क करेंगी। रक्षा सूत्र में छिपी है कई सनातन परंपरा

हालांकि यूपी में एक लाख पंद्रह हजार टेस्ट अब रोज होने लगे हैं और शायद यही कारण है कि मरीजों की संख्या भी उसी अनुपात में बढ़ने लगी है। अब तो लखनऊ में भी संक्रमण बहुत फैल गया है। यहां अब रोज लगभग छह सौ संक्रमित मिलने लगे हैं। उधर अधिकारी आदत से मजबूर हैं। वे अस्पतालों में सारी तैयारी चाक चौबंद होने का दावा करते हैं लेकिन, मरीज ही नहीं, डाक्टर भी कई आवश्यक सुविधाओं की कमी बताने लगे हैं। यह वह पक्ष है जिस पर सरकार को तत्काल ध्यान देना होगा। 


सुप्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर का प्रधानमंत्री नेहरू ने ‘हिंदू पुनरुत्थान कार्य’ कहकर किया था विरोध!

सुप्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर का प्रधानमंत्री नेहरू ने ‘हिंदू पुनरुत्थान कार्य’ कहकर किया था विरोध! 

अयोध्या में रामजन्मभूमि पर करोड़ों भारतीयों की आस्था और आकांक्षा के प्रतीक भव्य श्रीराम मंदिर के निर्माण का शुभारंभ 5 अगस्त, 2020 को होने जा रहा है। भारत के सांस्कृतिक इतिहास में यह पर्व स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा। 1951 में सौराष्ट्र (गुजरात) के वेरावल में सुप्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा स्वतंत्र भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के हाथों हुई थी, वैसा ही यह प्रसंग है। उस समय सरदार पटेल, केएम मुंशी, महात्मा गांधी, वीपी मेनन, डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जैसे मूर्धन्य नेताओं ने सोमनाथ मंदिर के निर्माण कार्य को भारतीयों की चिरविजयी अस्मिता और गौरव का प्रतीक माना था। भारत ने बदली रणनीति चीन को लेकर, हिंद महासागर क्षेत्र के देशों को मदद में कोताही नहीं

हालांकि पंडित नेहरू जैसे नेता ने इस घटना का ‘हिंदू पुनरुत्थानवाद’ कहकर विरोध भी किया। उस समय नेहरू से हुई बहस को कन्हैयालाल मुंशी ने अपनी पुस्तक पिलग्रिमेज ऑफ फ्रीडम में दर्ज किया है। सवाल यह है कि आखिर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसे ‘हिंदू पुनरुत्थान कार्य’ कहकर विरोध क्यों किया था। जबकि केएम मुंशी ने इसे ‘भारत की सामूहिक अंत:चेतना’ का नाम दिया और इस प्रयास को लेकर आम लोगों में खुशी की लहर का संकेत दिया। एक ही मुद्दे पर दो अलग-अलग विरोधी दृष्टिकोण क्यों बन जाते हैं? 

 मूलत: यह भारत के दो अलगअलग विचार हैं। पंडित नेहरू भारत विरोधी नहीं थे, लेकिन भारत के संबंध में उनका नजरिया यूरोपीय विचारधारा पर केंद्रित था जो भारतीयता से अलग था, अभारतीय था, वहीं सरदार पटेल, डॉ राजेंद्र प्रसाद, केएम मुंशी और अन्य लोगों के भारत संबंधी विचार भारतीयता की मिट्टी से जुड़े थे जिसमें भारत की प्राचीन आध्यात्मिक परंपरा का सार निहित था। यहां तक कि महात्मा गांधी ने भी इसे स्वीकृति दी थी, उन्होंने केवल यह शर्त रखी कि मंदिर के पुर्निनर्माण के लिए धनराशि जनता के सहयोग से इकट्ठी की जाए। ईश्वर God कौन है ? कैसा है ? कहाँ है ?

आक्रांता केवल किसी राष्ट्र को पद आक्रांत नहीं करते बल्कि विजित समाज के गौरव और आत्माभिमान को गहरे कुचलते हैं। प्रश्न यह है कि क्या वह ढांचा जिसे बाद में मस्जिद कहा गया, वास्तव में इबादत के लिए ही बना था? नहीं, बाबर के सिपहसालार मीर बाकी को अयोध्या जीतने के बाद यदि नमाज ही अदा करनी थी, तो वह कहीं खुले मैदान में नई मस्जिद बनवाकर कर सकता था। इस्लामिक विद्वानों ने सुप्रीम कोर्ट में माना कि जबरदस्ती कब्जा की गई जमीन या भवन में की हुई नमाज अल्लाह को कुबूल नहीं होती है। इसलिए मीर बाकी ने श्रीराम मंदिर को ध्वस्त कर वहां मस्जिद बनाने का कृत्य, ना उसकी धार्मिक आवश्यकता थी और ना ही उसे इस्लाम की मान्यता थी। फिर उसने यह क्यों किया! क्योंकि उसे केवल भारतीय आस्था, अस्मिता और गौरव पर आघात करना था। 

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 60 साल से एक ही दल के निरंतर शासन ने इस अनुदार धारणा का ही संरक्षण, पोषण और समर्थन किया। इससे बौद्धिक जगत, शिक्षा संस्थानों और मीडिया में भारत की यही अभारतीय अवधारणा प्रतिष्ठित कर दी गई है।इसलिए अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के विरोध में उभरने वाली आवाजें मीडिया और बौद्धिक जगत में ज्यादा तेज सुनाई देती हैं। लेकिन करोड़ों भारतीय ऐसे हैं जो भारत की भारतीय अवधारणा को अंत:करण से मानते हैं, जो भारत की एकात्म और समग्र आध्यात्मिक परंपरा के साथ गहराई से जुड़े हैं और भारत की सामूहिक अंत:चेतना के अनुरूप हैं। भारत की यह अंत:चेतना वह है जिसे सरदार पटेल, केएम मुंशी, डॉ राजेंद्र प्रसाद, महात्मा गांधी, डॉ राधाकृष्णन, पंडित मदन मोहन मालवीय और आधुनिक स्वतंत्र भारत के कई दिग्गज राष्ट्र निर्माताओं ने अपनी वाणी और आचरण से अभिव्यक्त किया है।Hindu Right To Propagate Religion

इसलिए, अयोध्या का राम मंदिर महज एक मंदिर नहीं है। वह करोड़ों भारतीयों की कालजयी आस्था और गौरव का प्रतीक है। इसलिए उसका पुर्निनर्माण भारत के सांस्कृतिक गौरव की पुन: स्‍थापना है। आगामी पांच अगस्त, 2020 को इस राष्ट्रीय और सांस्कृतिक गौरव स्थान समान राम मंदिर निर्माण के शुभ कार्य का शुभारंभ होने जा रहा है। भारत के ही नहीं दुनिया भर के करोड़ों भारतीय मूल के लोग दूरदर्शन के द्वारा इस ऐतिहासिक क्षण के साक्षी होंगे।  -Alok Arya