हर तीन वर्षों में क्यों आता है मलमास, क्या होता है महत्व और क्या करने से मिलता पुण्य लाभ

अंग्रेजी कैलेंडर में लीप ईयर तो सभी जानते होंगे लेकिन क्या हिंदी कैलेंडर के मलमास माह के बारे में सुना है। इसे लीप ईयर में 29 दिनों वाले फरवरी माह की तरह ही समझा जा सकता है, बस फर्क इतना है कि हर चार साल में लीप ईयर में एक दिन ज्यादा होता है लेकिन हिंदी कैलेंडर के अनुसार हर तीन साल में पूरा मलमास माह ही अधिक होता है। वैसे तो यह मास ईश्वर की आराधना और दान के लिए विशेष माना गया है लेकिन शुभ व मांगलिक कार्य इस मास में वर्जित रहते हैं। इस बार मलमास की शुरुआत 18 सितंबर से हो रही है, जो 16 अक्टूबर को पूरा होगा।  पीएम मोदी की बिंदास छवि दुनिया को पसंद है, भारतीयों के हैं चहेते


मलमास यानी अधिक मास या पुरुषोत्तम मास ज्योतिषाचार्य केए दुबे पद्मेश के मुताबिक जिस मास में सूर्य संक्रांति नहीं पड़ती उस मास को मलमास, अधिक मास और पुरुषोत्त्म मास कहा जाता है। इस दौरान शादी, गृह प्रवेश, मुंडन आदि शुभ और मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। मलमास में भगवान का स्मरण व पूजन करना शुभ माना जाता है। अधिक मास में किए गए दान पुण्य देता है। इस मास को आत्म की शुद्धि व मन की पवित्रता से भी जोड़कर देखा जाता है। धूनी ध्यान केंद्र के आचार्य अमरेश मिश्र ने बताया कि जिस मास में सूर्य संक्रांति नहीं हो और बढ़ती-घटती तिथियों को मिलाकर एक मास तैयार होता जिसे मलमास कहा जाता है। इस मास में भगवान विष्णु की आराधना करने से समस्त कल्याण व सुख की प्राप्ति हाेती है। मलमास में दान-पुण्य करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान लाभ मिलता है। आइआइटी की 'गाथा' में बच्चे फिर सुनेंगे दादा-दादी और नाना-नानी की कहानियां, बनेंगे संस्कारवान


हर तीन साल में क्यों आता है मलमास ज्योतिष सेवा संस्थान के अध्यक्ष आचार्य पवन तिवारी बताते हैं कि भारतीय हिंदू कैलेंडर सूर्य मास और चंद्र मास की गणना के अनुसार चलता है। भारतीय गणना पद्धति के अनुसार प्रत्येक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, वहीं चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है, जो हर तीन वर्ष में लगभग एक मास के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को पूरा करने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास अस्तित्व में आता है, जिसे अतिरिक्त होने के कारण अधिकमास का नाम दिया गया है। 4 गलतियां न करें हाई क्रेडिट स्कोर के लिए, नहीं तो होगा बहुत नुकसान


मलमास का महत्व हिंदू धर्म के अनुसार प्रत्येक जीव पंचमहाभूतों से मिलकर बना है। इन पंचमहाभूतों में जल, अग्नि, आकाश, वायु और पृथ्वी सम्मिलित हैं। अपनी प्रकृति के अनुरूप ही ये पांचों तत्व प्रत्येक जीव की प्रकृति न्यूनाधिक रूप से निश्चित करते हैं। अधिकमास में समस्त धार्मिक कृत्यों, चिंतन- मनन, ध्यान, योग आदि के माध्यम से साधक अपने शरीर में समाहित इन पांचों तत्वों में संतुलन स्थापित करने का प्रयास करता है। इस तरह अधिकमास के दौरान किए गए प्रयासों से व्यक्ति हर तीन साल में स्वयं को बाहर से स्वच्छ कर परम निर्मलता को प्राप्त कर नई उर्जा से भर जाता है। वैदिक साहित्य का परिचय Vedic Literature


अधिकमास में क्या करना उचित आमतौर पर अधिकमास में हिंदू श्रद्धालु व्रत- उपवास, पूजा- पाठ, ध्यान, भजन, कीर्तन, मनन को अपनी जीवनचर्या बनाते हैं। पौराणिक सिद्धांतों के अनुसार इस मास के दौरान यज्ञ- हवन के अलावा श्रीमद् देवीभागवत, श्री भागवत पुराण, श्री विष्णु पुराण, भविष्योत्तर पुराण आदि का श्रवण, पठन, मनन विशेष रूप से फलदायी होता है। अधिकमास के अधिष्ठाता भगवान विष्णु हैं, इसीलिए इस पूरे समय में विष्णु मंत्रों का जाप विशेष लाभकारी होता है। ऐसा माना जाता है कि अधिक मास में विष्णु मंत्र का जाप करने वाले साधकों को भगवान विष्णु स्वयं आशीर्वाद देते हैं, उनके पापों का शमन करते हैं और उनकी समस्त इच्छाएं पूरी करते हैं। -Alok Nath दादा-दादी और नाना-नानी की कहानियां बच्चे फिर सुनेंगे IIT की ‘गाथा’ में, बनेंगे संस्कारवान




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