सरदार पटेल न होते तो आज जैसा दिखता है वैसा नहीं होता भारत...

सरदार वल्‍लभ भाई पटेल का भारत को एकत्र करने में एक अहम योगदान रहा है। आज उनकी 70वीं पुण्‍यतिथी है। ये कहने में कोई संदेह नहीं है कि यदि वो नहीं होते तो शायद जिस भारत को आज हम देखते हैं वो भी नहीं होता। उन्‍होंने कई छोटी बड़ी रियासतों को भारत में शामिल किया। इसलिए ही उन्‍हें भारत का लौह पुरुष कहा जाता है। सरदार का योगदान केवल भारत को एकत्र करने में ही नहीं था बल्कि आजादी की लड़ाई में भी उनका योगदान अतुलनीय था। वो देश के पहले उप प्रधानमंत्री थे। वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने उनके जन्‍म दिन 31 अक्‍टूबर को राष्‍ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया था।

15 दिसंबर को ली थी अंतिम सांस 15 दिसंबर 1950 को उन्‍हें दिल का दौरा पड़ा था और उन्‍होंने बॉम्‍बे के बिड़ला हाउस में अंतिम सांस ली थी। 1947 में जब पाकिस्‍तान ने भारत पर हमला किया तो उस वक्‍त सरदार गृह मंत्री के रूप में कार्य कर रहे थे। उन्‍होंने इस हमले का मुंह तोड़ जवाब दिया था। पटेल बेहद दूरदर्शी थे। उन्‍होंने तिब्‍बत पर चीन के कब्‍जे को गलत बताते हुए कहा था कि ये भविष्‍य में नई समस्याओं को जन्म देगा। आज दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा जिसको स्‍टेचू ऑफ लिबर्टी कहा जाता है, सरकार पटेल की ही है। यह प्रतिमा 182 मीटर (597 फीट) ऊंची है। अक्‍टूबर 2018 में इसको पीएम मोदी ने देश को समर्पित किया था। ये विशाल प्रतिमा पांच वर्षों में पूरी हुई थी। 1991 में सरदार पटेल को मरणोपरांत देश के सर्वोच्‍च पुरस्‍कार भारत रत्‍न से नवाजा गया था।हिंदुओं ने कुतुब मीनार परिसर में मांगा पूजा का अधिकार, ये किया जा रहा दावा

पेशे से वकील थे सरदार गुजरात के नाडियाड जिले में जन्‍में सरदार पटेल की गिनती भारत के सफलतम वकीलों में की जाती थी। उन्‍होंने लंदन से के मिडिल कॉलजे से लॉ की पढ़ाई की थी। जब उनके दो बेटे महज 5 और 3 वर्ष के थे तभी उनकी पत्‍नी का कैंसर की वजह से स्‍वर्गवास हो गया था। 1917 में पहली बार उनकी मुलाकात महात्‍मा गांधी से हुई थी। सरदार ने ही पूरे भारत में अंग्रेजो से स्‍वराज की मांग को उठाने की अलख जगाई थी। इसके लिए उन्‍होंने अंग्रेज सरकार के समक्ष एक अपील भी फाइल की थी।

समाजसेवी सरदार सरदार के केवल एक नेता ही नहीं थे बल्कि समाज सेवी भी थे। जिस क्‍त गुजरात के खेड़ा में प्‍लेग की महामारी फैली थी उस वक्‍त उन्‍होंने इन लोगों की मदद के लिए राहत कार्य चलाया था। बाद में उन्‍होंने अपने वकील के पेशे को पूरी तरह से छोड़ दिया और देश सेवा में जुट गए थे। वो देश की आजादी के लिए छेड़ी गई जंग में आगे की कतार में मौजूद लोगों में शामिल थे। उन्‍होंने ही गुजरात सत्‍याग्रह की शुरुआत की थी।

खेड़ा का आंदोलन भारत की आजादी को लेकर चलाए गए आंदोलन में पटेल सबसे पहला और बड़ा योगदान 1918 में खेड़ा में ही था। ये पूरा इलाका उस वक्‍त सूखे की चपेट में था। उस वक्‍त यहां के किसानों ने अंग्रेज सरकार से कर में छूट की मांग की थी, जिसे सरकार ने नामंजूर कर दिया था। ऐसे में पटेल ने किसानों को एकजुट कर अंग्रेज सरकार के खिलाफ उठ खड़े होने को कहा। उन्‍होंने खुद आगे बढ़कर इस आंदोलन का नेतृत्‍व किया। अंत में सरकार झुकी और किसानों के मन मुताबिक उन्‍हें कर में राहत दी। राष्ट्र के नायक हैं राम संज्ञा के रूप में और विशेषण के रूप में इच्छित आदर्श

आजादी की लड़ाई में योगदान सरदार पटेल 1920 में गुजरात राज्‍य की कांग्रेस इकाई के अध्‍यक्ष भी रहे थे। उन्‍होंने राज्‍य समेत पूरे देश में शराब से मुक्ति और छुआछूत, जातीवाद और महिला सशक्तिकरण के लिए बढ़-चढ़कर काम किया। उन्‍होंने महात्‍मा गांधी चलाए गए असहयोग आंदोलन में भी बढ़-चढ़कर हिस्‍सा लिया और देशवासियों को खादी पहनने के लिए जागरुक किया। आजादी के बाद उन्‍होंने देश में मौजूद विभिन्‍न 562 रियासतों को एकजुट किया और भारत में शामिल होने के लिए राजी किया। इनमें से एक था हैदराबाद। इसके अलावा जूनागढ़ में भी उन्‍हें सेना को मैदान में उतारना पड़ा था। इन दोनों ही रियासतों के भारत में मिलने की कहानी बेहद दिलचस्‍प है। दाण्डिक न्यायिक प्रक्रिया में अनियमित कार्यवाही ( Irregular Proceedings) क्या होती है?

जूनागढ़ की रियासत सौराष्ट्र के करीब स्थित जूनागढ़ भारत की भूमि से घिरी एक छोटी सी रियासत थी। हालांकि भारत की आजादी के बाद यहां के नवाब ने इसका पाकिस्‍तान से विलय करने की घोषणा कर दी थी। आम जनता इसके पूरी तरह से खिलाफ थी। ये पूरा इलाका हिंदु बहुल था और यहां के लोग पाकिस्‍तान से मिलना नहीं चाहते थे। 15 अगस्त 1947 को जब नवाब ने ये घोषणा की तो नवाब के विरुद्ध लोगों का विरोध भी शुरू हो गया। इसके समर्थन में सरदार ने भारतीय सेना को मैदान में उतार दिया। इससे डरकर नवाज पाकिस्तान भाग गया और 9 नवंबर 1947 को जूनागढ भारत में मिल गया। इसके बाद लोगों की जनभावना को ध्‍यान में रखते हुए फरवरी 1948 में यहां जनमत संग्रह कराया गया। इसमें लोगों ने भारत का साथ दिया।

हैदराबाद की रियासत इसी तरह से हैदराबाद के निजाम ने भारत के साथ न मिलने की घोषणा की थी। वो भारत से मुकाबला करने के लिए लगातार सैन्‍य क्षमता बढ़ा रहा था। इससे पटेल चिंतित थे। इसको देखते हुए पटेल ने खुद निजाम से भेंट करने की योजना बनाई थी। निजाम से मुलाकात के दौरान पटेल ने साफ कर दिया था कि या तो वो शांतिपूर्ण तरीके से भारत में शामिल हो जाएं नहीं तो भारतीय फौज हैदराबाद में घुसने में कोई देर नहीं लगाएगी। इसके बाद जो कुछ होगा उसकी जिम्‍मेदारी केवल निजाम की ही होगी। निजाम इससे घब्‍रा गया और 13 सितंबर 1948 को जब भारतीय सेना ने ऑपरेशन पोलो के तहत हैदराबाद में प्रवेश किया तो इसके तीन बाद निजाम ने आत्मसमर्पण कर दिया। नवंबर 1948 में हैदराबाद भारत में शामिल हो गया।  -Alok Prabhat

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