1 जनवरी आज का लेख नए वर्ष की बधाई के साथ-साथ 1 जनवरी का पूरा इतिहास खोल कर रख देगा। सृष्टि को बनाये कितने वर्ष हुए है
जैसा कि आप सभी जानते है 1 जनवरी आते ही बधाइयों का तांता टूट पड़ता हैं।
स्वंत्रत भारत में क्यों, किसने व कब अंग्रेजी कैलेंडर को चालू किया । नवंबर ,1952 को पंचांग सुधार समिति पंडित जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने बनाई, जिसमें डॉक्टर मेघनाथ शाह को अध्यक्ष बनाया गया। उनको जिम्मेवारी दी गई कि आप देखिए कि भारत के भविष्य और सरकारी कामकाज के लिए कौन सा कैलेंडर ठीक रहेगा। आप इसका विश्लेषण कीजिए और सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दीजिए। मात्र तीन महीने बाद डॉक्टर मेघनाथ शाह की अध्यक्षता में 18 फरवरी 1953 को सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी। जिसमें लिखा गया था कि विक्रम संवत् को इस अंग्रेजी कैलेंडर के साथ-साथ आवश्यक रूप से जगह देनी चाहिए। लेकिन नेहरू सरकार ने यह समिति इसलिए बनाई थी ताकि हिंदु सन्तुष्ट हो जाएं। इसका इससे कोई उद्देश्य नही था, कि समिति जो रिपोर्ट देगी उसको मान्यता दी जाएगी। और कहा गया कि समिति जिस कैलेंडर को उत्तम बताएगी उसको सम्पूर्ण भारत में लागू कर दिया जाएगा। दिनकर की रचना PM ने लेह में पढ़ी थी, उनकी रचनाओं में इतना दम कि दबाना मुश्किल…
इस रिपोर्ट को नकारते हुए पंडित जवाहर लाल नेहरू सरकार ने 22 मार्च 1957 को अंग्रेजी कैलेन्डर तरह से लागू कर दिया गया और कानून बना दिया गया। और जब से आज या आने वाले समय में भी इसी कैलेंडर पर सभी कार्य किये जाते है या जाने है। जबकि इस कैलेंडर में कुछ भी वैज्ञानिक नही है जो किसी को संतुष्ट कर दें ।इस कैलेन्डर में गृह और नक्षत्र का विश्लेषण नही होता है। और हर वर्ष 9 मिनट 11 सेकंड इस केलिन्डर के कारण कम हो जाती है। अगर ऐसे ही चलता रहा तो ये दुनिया बहुत पीछे चले जाएगी अगर इस केलिन्डर ने 1 साल पीछे कर दिया तो उसकी भरपाई कैसे हो पाएगी। इस समस्या से सभी झूझ रहे हैं।हिंदू शब्द की प्रासंगिकता कब, क्यों और कैसे बड़ी क्या है अर्थ...
वैसे भी इन ईसाइयों की बात नही मानी जा सकती । जो अपने ईश्वर यीशु के जन्म दिवस पर लड़ रहे हो। ओर अभी तक एकमत नही हुए हो। ग्रीक कैलेंडर कहता है कि 7 जनवरी को यीशु पैदा हुए थे। जबकि इस्राइल चर्च में कहा जाता है की यीसु 6 जनवरी को पैदा हुए थे। जबकि एक पुस्तक life of crist जिसके लेखक है दिन फराह जिसने अपनी पुस्तक में स्पष्ट रूप से कहा है कि 500 ई० के लगभग 25 मार्च को यीशु का जन्मदिवस मनाया जाने लगा। उससे पहले 6 जनवरी था । जब ये लोग अपने ही भगवान जीजस जे लिए झगड़ रहे है तो इनका केलिन्डर कैसे मान्य होगा। लेकिन फिर भी नेहरू द्वारा गिरगेरियन केलिन्डर को क्यों लागू किया गया। आइये जानते है।
सन 1752 से पहले जब केवल विक्रम संवत् हमारे देश में लागू था। और बाहर देशों में भी उसी को लागू किया गया था। इसलिए जब हमारे देश में अगला दिन सूर्योदय के बाद होता था । यानी 5.30am पर अगला दिन माना जाता था। इंग्लैंड अर्थात ब्रिटेन और भारत में भी केवल 5.30 घंटे का अंतर है। उस समय जो विक्रम संवत् के अनुसार जो पंचांग होता था उसे पूरे देश मे लागू होता था। और जब 5.30am बजते थे तो सभी जगह अगला दिन माना जाता था। इसलिए ब्रिटेन में रात 12.30pmam बजे नया दिन माना जाता था। क्योंकि भारत और ब्रिटेन के समय मे 5 घंटे अंतर है। लेकिन उस समय भारत के अनुसार पूरे विश्व में अगला दिन होता था। लेकिन अब ऐसा नही है क्योंकि अब रात 12 बजे पूरे विश्व में दिन बदलता है। हमने इंग्लैंड की कॉपी की जबकि ब्रिटेन हमारे अनुसार चलता था। यह केवल 1752 से पहले की बात है। ज्यादा पुरानी नही है। सृष्टि निर्माण किनसे किया व क्यों किया
आज के समय मे कोई महीना 28,29,30,31 का है और तो ओर अगस्त और जुलाई तो लगातार 31 के ही कर दिए। जुलियस सीज़र के नाम पर जुलाई रखा गया वह रोम के शासक थे। और उनके जो उत्तराधिकारी आगस्टस उसके नाम पर अगस्त रखा गया। क्योंकि ये सम्राट थे तो इन दोनों को बड़ा महीना बनाया गया। रोम के अनुसार X जिसका मतलब है 10 जिसे हम रोमन कहते है। ये रोम के शब्द है, और यीशु का जन्म 25 दिसम्बर को माना जाने लगा और रोम में इसे रोम में X-Mas बोलते है। तो बाहरवें महीने को दसवां महीना किया गया। क्योंकि यीशु इस महीने में पैदा हुआ था। इसलिए 12 महीने को 10 महीने बना दिया गया। और दिसंबर कहा जाने लगा । इसी प्रकार Time जो आप देखते हो समय से Time कर दिया, होर को ऑवर कहा जाने लगा, क्षण को सेकंड कर दिया गया, दिन को Day, मास को Month कर दिया लेकिन शुरू होने वाले शब्द को बिल्कुल वैसा ही रखा। Religious Story अध्यात्मिक कहानी Story Writing
इसी प्रकार अंग्रेजी कैलेन्डर को इन्होंने कुछ-कुछ अपना मिलाकर पेश किया। लेकिन परिवर्तन के कारण यह कैलेन्डर ध्वस्त हो गया। इसलिए दोबारा विक्रम संवत् की ओर लौटना पड़ेगा। लेकिन नेहरू ने आज़ाद भारत में फिर भी इसे लागू क्यों किया। मैकॉले की शिक्षा पद्धति में 2 फरवरी 1835 को ब्रिटेन की संसद में एक व्याख्यान दिया था जिसके बाद अपने पिता को एक पत्र लिखा था जिसमें लिखा था कि “हमे बहुत ज्यादा पुरुषार्थ करना होगा व इन लोगो में एक ऐसा कुलीन वर्ग निकलना होगा। जो भारतीय जनता के बीच मे बिचौलिए का कार्य करे और अपने तरीके से हमारी बात को लागू करें।” महाकुंभ सप्ताह : लखनऊ समेत सभी जिलों में शुरू हुआ पौधारोपण अभियान
हम ऐसी क्लास बनाएंगे जी रंग रूप में भारतीय होगी, लेकिन बौद्धिक और मानसिक रूप से सारी की सारी हमारे जैसे होगी। अपने पिता को लिखते है कि मैं जो लक्ष्य लेकर चला था। अब उसमें से ऐसे लोग निकल कर आ रहे है। जो रंग रूप में तो भारतीय है लेकिन वैचारिक रूप से हमारे जैसे है। हमारी बात को वो अपने तरीके से लागू करता है, जिसके परिणाम उसको अल्पकाल में ही मिलने प्रारंभ हो गए। ये लोग जो हमारी शिक्षा प्रणाली के अनुसार आ रहे है ये अपने आपको एक हिन्दू की भांति नही दिखते है, बल्कि धर्म-निरपेक्ष के रूप में प्रसारित करते है।गुरुकुल की शिक्षा कहाँ गई ?
कुछ अपने आप को हिन्दू मानते है तो कुछ अपने आपको केवल आस्तिक मानते है, लेकिन उससे आगे कुछ नही जानना चाहते है। इससे यह स्पष्ट होता है कि इस अंग्रेजी शिक्षा व्यस्था को पढ़कर या इसपे कोई ज्यादा अमल कर लें, तो वो किस प्रकार की मानसिकता का निकलता है यह सिद्ध नही हो पाया है। इससे आने वाले समय में या तो ये धर्म-निरपेक्ष बन जाएंगे या ईसाई बन जाएंगे। पर हिन्दू नही रहेंगे। हमारा मानना है कि मैकॉले की शिक्षा पद्धति ने 60 से 70% कार्य कर दिया है लेकिन जो 30 से 40% बचा है वो भी धीरे धीरे बढ़ रहा है। -आलोक आर्य
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