यरूशलम पर यहूदियों ने दी 58 मुस्लिम देशों को मात


यरूशलम विवाद में शोधपूर्ण लेख

डोनाल्ड ट्रम्प ने यरूशलम को इस्रायल israel की राजधानी मानते हुए एक वर्ष के भीतर तेल अवीव स्थित अमेरिकी दूतावास को यरूशलम yerusalem स्थान्तरित करने के आदेश दिए हैं और इसी के साथ पहले गैर इस्रायली नेता बन गए हैं जो यरूशलम को इस्रायल की राजधानी स्वीकारता है और अमेरिका America पहला ऐसा राष्ट्र होगा जिसका दूतावास यरूशलम में अभी तक इस्रायल से कूटनीतिक सम्बन्ध रखने वाले देशों के दूतावास Embassy तेल अवीव में स्थित थे और यरूशलम yerusalem में केवल कांसुलेट होते थे।

अरब जगत ने अमेरिका के इस कदम को आग में घी डालने वाला बताते हुए अरब में मौजूद किसी भी अमेरिकी नागरिक को पहुंचने वाले नुकसान की जिम्मेदारी अमेरिका पर डाल दी है। अब प्रश्न ये है कि राजधानी बनी इस्रायल की और आदेश दे रहा है ट्रम्प और इस्रायल अपनी राजधानी चाहे यरूशलम को बनाए तेल अवीव को बनाए या कहीं भी बनाए अरबों को इससे क्या दिक्कत अरब कौन होते हैं इस्रायल के घर मे झांकने वाले ? WHO नहीं डरा ट्रंप के आरोप से, चीन के लिए बांधे तारीफ के पुल

तो अब आते हैं मूल विषय पर, असल में ट्रम्प साहब ने यरूशलम शहर को इस्रायल की राजधानी घोषित नही किया बल्कि वहां पर अपना तेल अवीव स्थित दूतावास स्थानांतरित करने का आदेश दिया है, दूसरी बात यरुशलम शहर आज की दुनिया का निर्माता है ये शहर अब्राहमिक मजहबों के मानने वाले करोड़ो लोगों की आस्था का केंद्र है। यहीं पर यहूदियों का प्रमुख मंदिर The Holy Of Holies था जिसे मुस्लिमों ने तोड़कर मस्जिद अल-अक्सा और Dome Of The Rock बनाया मुस्लिम इसे बैतूल मुकद्दस कहते हैं और कहानी बनाते हैं कि मदीना से पैगम्बर मुहम्मद एक ही रात में यहां आए थे और Dome Of The Rock से उन्होंने अल-बुराक नामक गधे पर बैठकर जन्नत के लिए प्रस्थान किया मक्का और मदीना के बाद मुस्लिमों के लिए ये तीसरा सबसे पवित्र शहर है कई फिरकों के लिए दूसरा भी। यहीं से ईसाई मत का भी प्रादुर्भाव हुआ और इसी यरूशलम में स्थित Church of the Holy Sepulchre नामक स्थान पर यीशु मसीह को सलीब दिया गया और यहीं पर सन 335 में विश्व का पहला चर्च बना। इसलिए ये शहर तीनो अब्राहमिक मजहबों-यहूदी,ईसाई और मुस्लिमों के लिए पहले या दूसरे नम्बर का तीर्थ है। बंग भंग विरोधी आन्दोनल और नाकाम अंग्रेज

सदियों तक ये तीनो यरूशलम को लेकर लड़ते रहे ईसाई और मुस्लिमों में तो इसे लेकर कई धर्मयुद्ध तक हुए हैं कालांतर में इन तीनो के कब्जे बारी बारी यरूशलम पर होते रहे हैं। 1948 में ब्रिटिश कब्जे वाले फलस्तीन को दो हिस्सों में बांटा गया इस्रायल के रूप में यहूदियों को उनकी मातृभूमि 2000 साल के निर्वाचन के बाद वापस मिली और मुस्लिमो के लिए एक अलग फलस्तीन राष्ट्र का निर्माण किया गया यरुशलम शहर को झगड़ा सुलझाने के लिए अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र घोषित कर दिया और इसका नियंत्रण सयुंक्त राष्ट्र के हाथ मे दे दिया लेकिन अरब राष्ट्रों को ये फॉर्मूला पसन्द नही आया वो इस्रायल के निर्माण को अपनी सबसे बड़ी हार समझते थे इसलिए उन्होंने 1948 में नवनिर्मित इस्रायली राष्ट्र पर हमला कर दिया जिसका जवाब इस्रायल ने लगभग आधा फलस्तीन और आधा ही यरुशलम शहर अपने कब्जे में करके दिया 1967 में 6 दिवसीय युद्ध में इस्रायल ने पूरे यरुशलम शहर को और लगभग पूरे फलस्तीन को कब्जे में कर लिया अब यहूदियों ने 2000 साल बाद यरुशलम पर हुए कब्जे के बाद इस्रायल ने तेल अवीव स्थित सभी विदेशी दूतावासों को यरुशलम आने को कहा लेकिन किसी ने भी इस्रायल की इस शर्त को नही माना लेकिन ट्रम्प साहब ने चुनाव में यरुशलम को इस्रायल की राजधानी के तौर स्वीकारने का वादा किया था तो अब उन्होंने उसे निभाते हुए बहुत ही जोखिम भरा निर्णय लिया है। - आलोक आर्य 

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