ग़दर पार्टी की स्थापना भारत से बाहर कैसे हुई ?
ग़दर पार्टी क्रांतिकारी आन्दोलन के पहले दौर में बहुत से क्रांतिकारी देश छोड़कर यूरोप और अमेरिका चले गए थे । उनका उद्देश्य था भारत में क्रांतिकारी गतिविधियों के सञ्चालन के लिए धन संग्रह करना, प्रचार करना और साहसी, आत्मत्यागी तथा समर्पित युवकों की एक टीम खड़ी करना । इस काम में उनको कुछ कम सफलता नहीं मिली । लेकिन जहाँ तक अंतिम लक्ष्य का प्रशन है, उनके विचार अभी तक भारत की आज़ादी की एक भावनात्मक धारणा तक ही सीमित थे । क्रांति के बाद स्थापित होने वाली सरकार की रुपरेखा क्या होगी, दूसरे देशों की क्रांतिकारी शक्तियों के साथ उसके सम्बन्ध क्या होंगे, नई व्यवस्था में धर्म का क्या स्थान होग, आदि प्रश्नों पर उस समय के अधिकांश क्रांतिकारी स्पष्ट नहीं थे । यह सूरत कमोबेश 1913 तक जारी रही । इन सभी मुद्दों पर स्पष्ट रवैया अपनाने का श्रेय ग़दर पार्टी के नेताओं को जाता है । खबरों की दुनिया में चीन ने लांच किया 3D न्यूज एंकर को
इस शताब्दी के पहले दशक में भारत छोड़कर जाने वाले क्रांतिकारियों को अंग्रेज सरकार के हाथों में पड़ने से बचने के लिए एक देश से दूसरे देश तक भटकना पड़ता था । अंत में, उसमें कइयों ने अमेरिका में बसने और उस देश को अपने कार्य का आधार-क्षेत्र बनाने का फैसला किया । पहले दशक के अंत तक सारंगधर दास, सुधीन्द्र बोस तथा जी.डी. कुमार । पहले दशक के अंत तक लाला हरदयाल भी उनसे आ मिले । इन लोगों ने अमेरिका और कनाडा में बसे भारतीय प्रवासियों से संपर्क किया, धन संग्रह किया, अख़बार निकाले, और कई जगहों पर गुप्त संस्थाएं कायम कीं । अभिमन्यु की चक्रव्यूह रचना का पर्दाफास
तारकनाथ दास ने फ्री हिन्दुस्तान नाम से अखबार निकाला और अमेरिका में रह रहे भारतीय छात्रों तथा भारतीय प्रवासियों के लिए व्याख्यान देते रहे । वे समिति नाम की एक गुप्त संस्था के प्रधान भी थे । इस संस्था के अन्य सदस्य थे- शैलेन्द्र बोस, सारंगधर दास, जी.डी. कुमार, लस्कर और ग्रीन नामक एक अमेरिकी । बंग भंग विरोधी आन्दोलन और नाकाम अंग्रेज रामनाथ पूरी ने 1908 में ओकलैंड में ‘हिंदुस्तान एसोसिएशन’ नाम की एक संस्था कायम की, और सर्कुलर ऑफ़ फ्रीडम नाम से एक अखबार निकाला । ये इस अखबार के माध्यम से अंग्रेजों को भारत से खदेड़े जाने की वकालत करते रहे । जी.डी. कुमार ने वैंकूवर से स्वदेशी सेवक नामक अखबार निकाला । वे वहां की एक गुप्त संस्था के सदस्य भी थे । इस संस्था के सदस्य रहीम और सुन्दर सिंह भी थे । सुन्दर सिंह आर्यन नाम के एक अखबार का संपादन भी करते थे और उसके जरिये लगातार ब्रिटिश-विरोधी प्रचार चलाते थे ।
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लाला हरदयाल 1911 में अमेरिका पहुंचे और वहां स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हो गये । सैन फ्रांसिस्को में ‘हिन्दुस्तानी स्टूडेंट्स एसोसिएशन’ नाम की एक संस्था उन्होंने गठित की । 1913 में एस्टोरिया की ‘हिन्दुस्तानी एसोसिएशन’ का गठन हुआ । करीम बख्स, नवाब खान, बलवंत सिंह, मुंशीराम, केसर सिंह और करतार सिंह सराभा इसके सदस्य थे । ठाकुरदास और उनके मित्रों ने सेंट जॉन में रहने वाले भारतीयों की एक संस्था गठित की । 1913 में शिकागो में ‘हिन्दुस्तानी एसोसिएशन ऑफ़ दि यूनाईटेड स्टेटस ऑफ़ अमेरिका’ का गठन हुआ । मन्दाग्नि रोग का कुछ ही मिनटों में रामबाण इलाज
लाला हरदयाल ने महसूस किया की संयुक्त राज्य अमेरिका के विभिन्न हिस्सों में कार्यरत इन संगठनों की गतिविधियों का समन्वय आवश्यक है । अत: उन्होंने कनाडा और अमेरिका में रहने वाले भारतीय क्रांतिकारियों की एक मीटिंग बुलाई । इस मीटिंग में ‘हिन्दुस्तानी एसोसिएशन ऑफ़ पैसिफिक कोस्ट’ नाम की एक संस्था के गठन का फैसला लिया गया । बाबा सोहन सिंह भकना और लाला हरदयाल इसके क्रमश: अध्यक्ष और सचिव चुने गए । लाला हरदयाल नौकरी से इस्तीफा देकर अपना पूरा समय एसोसिएशन के काम में लगाने लगे । मार्च 1913 में एसोसिएशन ने सैन फ्रांसिस्को से ग़दर नाम से एक अखबार निकालने का फैसला किया । उसके बाद एसोसिएशन का नाम भी बदलकर ‘ग़दर’ पार्टी कर दिया गया । डॉ हर्षवर्धन बने डब्ल्यूएचओ एक्जिक्युटिव बोर्ड के चेयरमैन
ग़दर पार्टी का विकास
1913 में ग़दर पार्टी का गठन क्रांतिकारी आन्दोलन के विकास की दिशा में एक बहुत बड़ा एवं महत्वपूर्ण कदम था । इसने राजनीति को धर्म से मुक्त किया और धर्मनिरपेक्ष को अपनाया । धर्म को निजी मामला घोषित कर दिया गया । ग़दर पार्टी धर्मनिरपेक्षता में विश्वास नहीं करती थी और ठोस हिन्दू-मुस्लिम एकता की तरफदार थी । वह छूत और अछूत के भेदभाव को भी नहीं मानती थी। भारत की एकता और भारत के स्वाधीनता-संग्राम के लिए एकता, यही उसे प्रेरित करने वाले प्रमुख सिद्धांत थे । इस मामले में ग़दर पार्टी उस समय के भारतीय नेताओं से मीलों आगे थी । सोहन सिंह जोश के अनुसार, “ग़दर के क्रातिकारी राजनीतिक-सामाजिक सुधार के सवालों पर अपने समसामयिकों से आगे थे।” PM ने श्रीलंका के राष्ट्रपति और मारिशस के पीएम से कोरोना संकट पर की बात, मदद का भरोसा दिया
14 मई 1914 को ग़दर में प्रकाशित एक लेख में लाला हरदयाल ने लिखा : “प्रार्थनाओं का समय गया; अब तलवार उठाने का समय आ गया है । हमें पंडितों और काजियों की कोई जरुरत नहीं हैं।” लाला हरदयाल ने, जो अपनेआप जो अराजकतावादी कहा करते थे, एक बार कहा था कि स्वामी और सेवक के बीच कभी समानता नहीं हो सकती, भले ही वे दोनों मुसलमान हों, सिख हों, अथवा वैष्णव हों । अमीर हमेशा गरीब पर शासन करेगा… आर्थिक समानता के अभाव में भाईचारे की बात सिर्फ एक सपना हैं ।
ग़दर पार्टी के उद्देश्य
हिन्दुस्तानियों के बीच सांप्रदायिक सदभाव बढाने को ग़दर पार्टी ने अपना एक उद्देश्य बनाया । युगांतर आश्रम नाम के ग़दर पार्टी के दफ्तर में सवर्ण हिन्दू, अछूत, मुसलमान और सिख, सभी जमा होते और साथ भोजन करते थे । भारतीय राजनीति में यह उनकी पहली महान उपलब्धि थे । ग़दर के क्रांतिकारियों की दूसरी महान उपलब्धि थी, उनका अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण । “ग़दर का आन्दोलन एक अंतर्राष्ट्रीय आन्दोलन था । उनकी शाखाएं मलाया, शंघाई, इंडोनेशिया, ईस्ट इंडीज़, फिलिपिन्स, जापान, मनीला, न्यूजीलैंड, हांगकांग, सिंगापुर, फिजी, बर्मा और दूसरे देशों में कार्यरत थी । ग़दर पार्टी के उद्देश्यों के प्रति इंडस्ट्रियल वर्कर्स ऑफ़ द वर्ल्ड की बहुत हमदर्दी थी। वे सभी देशो की आज़ादी के तरफदार थे । वैंकूवर में 1911 में एक संस्था कायम हुई थी जिसका उद्देश्य थे बाकि दुनिया के साथ भारतीय राष्ट्र के स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे के समबन्ध कायम करना । लाला हरदयाल ने भी कई बार अपने भाषणों में यह घोषणा की थी कि वे केवल भारत में ही नहीं बल्कि हर उस देश में क्रांति चाहते है जहाँ गुलामी और शोषण मौजूद है ।
ग़दर के क्रांतिकारी प्रचार का एक मुख्य अंग था दुनिया की श्रमिक यूनियनों के नाम अपील जारी करना । उन्होंने पूरी दुनिया के जनसाधारण से अपील की कि वे साम्राजी निज़ाम को उखाड़ फेकने के लिए एकजुट हों । विचारधारा और कार्यकर्म ग़दर पार्टी ब्रिटिश शासन की विरोधी थी और उसका उद्देश्य था सशस्त्र संघर्ष के जरिये भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त करके यहाँ अमेरिकी ढंग से प्रजातंत्र स्थापित करना । उसका विश्वास था कि प्रस्तावों, प्रतिनिधि-मण्डलों और प्रार्थना-पत्रों से हमें कुछ मिलने वाला नहीं है । अंग्रेज शासकों के सामने नरमदलीय नेताओं का नाचना भी वे पसंद नहीं करते थे । जिस गणतन्त्र की बात वे करते थे उसमें किसी तरह के राज की नहीं बल्कि एक चुने हुए राष्ट्रपति जकी गुंजाइश थी । सत्संग से मनुष्य जीवन कैसे बदल सकता है ?
भारत की आज़ादी हासिल करने के लिए ग़दर पार्टी व्यक्तिगत कारवाइयों पर उतना निर्भर नहीं करती थी जितना इस बात पर कि सेना प्रचार करके सैनिकों को विद्रोह के लिए प्रोत्साहित किया जाये । उन्होंने सैनिकों से अपील की कि वे विद्रोह के लिए उठ खड़े हों । ग़दर के क्रांतिकारियों का वर्ग-चरित्र भी पहले के क्रांतिकारियों से भिन्न था । पुराने क्रांतिकारी मुखयत: निम्न-मध्यम वर्ग के कुछ शिक्षित लोग थे जबकि ग़दर पार्टी के अधिकांश सदस्य किसान से मजदूर बने लोग थे, और इसलिए उन्होंने विद्रोह के लिए किसानो से भी उठ खड़े होने की अपील की । -Alok Prabhat
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