अतिवृष्टि को यज्ञ द्वारा कैसे रोका जा सकता है ?



यज्ञ –अतिवृष्टि रोधक अतिवृष्टि से यज्ञ द्वारा कैसे निजात पाएं :- 

अनावृष्टि की भांति अतिवृष्टि भी भयंकर समस्या खड़ी कर देती है । इसके कारण दैनिक कार्य करने भी कठिन हो जाते है । नदियों में बाढ़ आ जाती है । इस प्रकार राष्ट्र के जन, धन एवं समय की अपार हानि होती है । अत: अतिवृष्टि पर नियंत्रण करना अत्यावश्यक है । वेद ने इस कार्य को संभव माना है । यजुर्वेद (15/6) में स्पष्ट शब्दों में आदेश है । 
विष्टम्भेन वृष्ट्या वृष्टिं जिन्व  । 
अर्थात् वर्षा के रोकने के द्वारा वृष्टि को जीतो ।  सहायक अध्यापकों की भर्ती परीक्षा में 35.66 फीसदी सफल घोषित

परन्तु यह कार्य किस प्रकार ? आधुनिक विज्ञान इस क्षेत्र में अभी कोई सफलता प्राप्त नहीं कर पाया है । वैसे इसके लिए दो विधियां दिखाई पड़ती है । प्रथम-हवन के द्वारा आकाश में ऐसे द्रव्य भर दिए जाएं कि आकाश में छाये हुए बादल बरसने में समर्थ न हो सके । इस हेतु पूर्ण विधि का निर्माण तथा यथेष्ट पदार्थों का चयन करने के लिए अनुसंधान की आवशयकता है ।  कैलास मानसरोवर का दर्शन, भारतीय सीमा से भी हो सकता है

द्वितीय-बादलों को ऐसे स्थानों पर भेज दिया जाये जहाँ वर्षा न होती हो फिर उस स्थान पर उन्हें ठंडा करके बरसा दिया जाये । यदि वर्षा निवारण करना हो तो दुग्ध और नमक से तीव्र अग्नि में विशाल यज्ञ करावें । वर्षा निवारक यज्ञों का आयोजब तब करना चाहिए जब बादल आकाश में घिरें हो और अति वृष्टि से देश हो हानि हो रही हो । इस यज्ञ में दूध, टोल, तीली का तेलम अगस्त वृक्ष के पत्ते, फल फूल और समिधा काम में लेनी उपयोगी रहती है । यह न मिलने पर रेतीले स्थानों में उत्पन्न होने वाले वृक्षों का काष्ट लेना भी उपयोगी रहता है । जिस प्रकार अगस्त नक्षत्र के उदित होने पर आकाशस्थ जल सूख जाता है उसी प्रकार अगस्त वृक्ष की लकड़ी, पत्र व पुष्प आदि का प्रयोग करने से वर्षा का निवारण करने में सहायता मिलती है । Alok Aarya/Prabhat BLOG’S यथार्थ भारत जागरण yatharthbharatjagran

वर्षा कराने के लिए मित्र और वरुण का संयोग कराने की आवश्यकता होती है और वृष्टि को रोकने के लिए वायुमंडल से दोनों को पृथक किया जाता है । यह काम भी यज्ञ से संभव है क्योंकि दोनों का संयोग और वियोग अग्नि के माध्यम से ही हो सकता है । वियोग के लिए यज्ञ में भेदक पदार्थों की आहुति देनी होती है  जिससे उसका धुआं वायुमंडल में जाकर उन्हें भेद डालता है और वृष्टि रुक जाती है इस प्रकार अति वृष्टि से बचा जा सकता है गुरु जी और चेला साथ रहिये और साथ खाइए कहानी’

वायु की दिशा बदलकर भी इस कार्य में सफलता प्राप्त की जा सकती है । जिस ओर हवाएं जाती है, मेघ भी उसी ओर चल पड़ते है । इसका संकेत अथर्ववेद (4/15/9) में किया है । पवनों की दिशा बदलने से मेघों का मार्ग परिवर्तित किया जा सकता है । इसके लिए यज्ञ द्वारा अल्प-वृष्टि के क्षेत्रों में वायु का दबाव कम कर दिया जाए और फिर अधिक वर्षा के क्षेत्रों से इन मरूभूमियों की ओर संवहनी पवनें चलाई जाएँ तो मेघ भी उनके साथ उधर आ जाएंगे । इस सारी प्रक्रिया को पूर्ण करने के लिए हवन-यज्ञ की विशेष पद्धति की आवश्यकता होती है । -आलोक आर्य  बड़ा मंगल क्यों मनाया जाता है और क्या है इसका ऐतिहासिक महत्व


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