कान के रोग का आयुर्वेदिक इलाज कैसे करें ?



कान के रोग होने के कारण, लक्षण और चिकित्सा 

कान के रोग:- कान की समय पर सफाई न करने के कारण, कान में धूल, रेत जमा होने से, कान का मल ज्यादा इक्कट्ठा होने से, छोटे जंतु के प्रवेश से, कुरेदने से, फुंसी होने से निम्नलिखित रोग पैदा होते है । 

कान कर प्रवाह :- इस रोग में कान के भीतर अत्यंत वेदना, सूजन और लालवर्ण हो जाता है । साथ-साथ ज्वर भी हो जाता है । प्रधानमंत्री मुद्रा योजना क्या है और कैसे उठा सकते हैं फायदा

कर्णशूल :- इस रोग में कान में सन-सन, फास-फास या सों-सों आदि कई प्रकार की आवाजें आती है ।

कान का बहना :- प्राय: चेचक या ज्वर के बाद या गण्डमालाग्रस्त बच्चो को तथा अन्दर घाव होने के से कान में मवाद आने लगती है । अधिक मात्रा में अगर रोगी का कान बहने लगे तो बधिरता का पूर्ण लक्षण समझना चाहिए । Maharishi Dayanand Saraswati (महर्षि दयानन्द सरस्वती ) का मृत्यु रहस्य

बहरापन :- इस रोग में व्यक्ति को कुछ भी सुनाई नहीं देता । बांस की पतली सलाई पर रुई लपेटकर कान को साफ़ करके आगे लिखी दावा डालें ।

  1. कान में भिनभिनाहट का होना । 
      2. कान में सिटी बजने जैसे आवाजें आना । 
      3. हल्का बोलने पर जोर से आवाजें आना । 
      4. कान में कभी-कभी लगता है कि कोई दहाड़ रहा हो । 
      5. कान में ऐसा लगना की जैसे घंटी बज रही हो । 

  • उच्च या जोरदार आवाजों की चपेट में आना । 
  • ह्रदय या रक्तवाहिनीयों के रोग के कारण भी कान का रोग होता है । 
  • कान में ज्यादा मात्र में मैल जमा होने के कारण । 
  • कान के भीतरी कोशिकाओं की क्षति होने के कारण । 
  • माइग्रेन से सम्बंधित सिरदर्द होने के कारण । 
  • सुनने में आयु संबंधी हानि होना । 
  • उम्र के अनुसार भी कान के रोग हो जाते है । 
  • कान के भीतरी भाग में बहुत ही शुक्ष्म व नाजुक बालों के कारण । 

  • कर्ण प्रदाह में गोमूत्र को जरा गर्म करके डालना चाहिए । 
  • बच को निम्बू के रस के साथ और जल के साथ घिसकर डालना भी लाभदायक है । 
  • कर्णनाद में दिमाग क पुष्ट करने की दवा करनी चाहिए । 
  • कान बहने पर गर्म जल से पिचकारी से धोकर जरा-सा बारीक़ एसिड कान में डालना चाहिए । 
  • समयानुसार कान को साफ़ करते रहना चाहिए । 
  • नीम के पत्तों का समभाग शहद में मिलाकर कान में डालने से कान का मवाद बंद हो जाता है । 
  • बिरोजे का तेल डालने से कान का बहना बंद हो जाता है । 
  • अपमार्ग के खार के जल से और अपामार्ग  के कल्क (बेलगिरी) से सिद्ध हुआ तेल बहरापन, कान का स्त्राव, कान की मवाद आदि को दूर करता है । 
  • अदरक के रस में शहद और तेल तथा जरा-सा सेंधा नमक मिलाकर कान में डालने से कान चुभना, कान से मवाद और बहरापन में लाभ होता है । चाणक्य नीति हिंदी (Chanakya Niti Hindi) भाग-7, 121 से 149
  • तिल तेल 3.73 किलो, गोमूत्र से पीसी हुई बेलगिरी १३३ ग्राम, बकरी का दूध 15 किलो । इन सब को तेल पाक विधि से पका लें । इस तेल को कान में डालने से कान का दर्द, बहरापन आदि ठीक होता है । 
  • दशमूल तेल से कान रोग में लाभ होता है । 
  • तिल के तेल में तली हुई लौंग की कुछ कान के दर्द में आराम दिलाती है । 
  • प्याज और अदरक के रस को कान में डालने से दर्द से तुरंत राहत मिलती है । -Alok Prabhat

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