हिन्दू शब्द का सच 
हिन्दू शब्द को लेकर वैदिक धर्म को मानने वाले लोगों में हमेशा मनमुटाव रहता है । कुछ लोग वैदिक धर्म को मानने वालो को आर्य कहते है । दूसरी ओर, कुछ पुरुष वेद को मानने वालो को हिन्दू कहते है । अपने को हिन्दू मानने वालो की कल्पना है कि “सिंधु” अथवा “इन्दु” शब्द से हिन्दू बन गया। अत: यहाँ के निवासियों को हिन्दू कहना ठीक है। यह बात अप्रामाणिक है। प्रथम तो उनके मत से ही सिद्ध है कि हिन्दू नाम पड़ने से पूर्व कोई और नाम अवश्य था। दूसरे सिन्धु और इन्दु नाम आज भी वैसे ही बने हुए है। यदि सिन्धु नदी के नाम पर ही माना जाये तो उस नदी को आज भी सिन्धु नदी ही बोला जाता है हिन्दू नदी नहीं । आज भी पाकिस्तान में सिंध प्रान्त उपस्थित है । अत भाषा के बिगाड़ के कारण सिन्धु को मुस्लिमों ने हिन्दू कह दिया यह मूर्खतापूर्ण बात पढाई व सुनाई जाती है । जिनके गुलाम थे उनका ही मनघडंत तथ्य मानने योग्य नहीं है । अत: इस मत में कुछ भी सार नहीं । ग़दर पार्टी की स्थापना कैसे हुई और इसके क्या उद्देश्य थे ?

काशी विश्वनाथ के मंदिर के प्रवेश द्वार पर आज भी (2017) लिखा है कि “आर्यों से अलग लोगो का मंदिर में प्रवेश वर्जित है ।” हिन्दू नाम विदेशियों (मुस्लिमों) ने दिया । हमने उसको वैसे ही मान लिया जैसे अंग्रेजों ने “इंडिया” और “इंडियन” नाम दिया। इतना ही नहीं, अंग्रेजों ने हमें “नेटिव” शब्द से पुकारा और हम नेटिव कहलाने में गर्व करने लगे। जबकि नेटिव का अर्थ दास है।
इसी प्रकार फारसी, अरबी व उर्दू आदि के उपलब्ध शब्दकोश गयासुल्लोहात, करिमुल्लोहात, लोहातफिरोजी आदि में हिन्दू के अर्थ को हम ढूंढते है तो हिन्दू शब्द का अर्थ काला, काफिर, लुच्चा,  वहशी, दगाबाज, बदमाश और चोर आदि है। SC में दाखिल हुई प्रिंस ऑफ आरकोट को सरकारी ग्रांट के खिलाफ याचिका

कई बार हम कह देते है कि यदि यह कार्य में नहीं कर पाया तो मेरा नाम बदल देना। अर्थात जब हम किसी काम के नहीं रहते तब लोग हमारा नाम बदल देते है। हमारे तो तीन-तीन नाम बदले गए है, फिर भी कहते है कि गर्व से कहो हम हिन्दू  है। यह बड़े अपमान का विषय है। अत: इस मत को दूर से ही छोड़ देना चाहिए। (हिन्दू >>>आर्य) नाम की महत्ता कोई सज्जन कह सकता है कि नाम को लेकर विवाद करना ठीक नहीं, नाम कैसा ही हो, काम अच्छा होना चाहिए। यह बात सुनने में अच्छी लगती हो परंतु ठीक बिलकुल भी नहीं। नाम का पदार्थ पर विशेष प्रभाव पड़ता है। ऋषि दयानन्द (maharishi dayanand) ने एक बार किसी सज्जन का नाम सुनकर कहा था कि “कर्मभ्रष्ट तो हो गए परंतु नामभ्रष्ट तो न बनो।” जिस प्रकार भारत के नाम के साथ भारतीय राष्ट्र की परंपरा आँखों के सामने दिखाई से देने लगती है वैसे ही आर्य नाम के श्रवण मात्र  से ही प्राचीन काल की सारी ऐतिहासिक झलक हमारे सामने आ जाती है। यह मानसिक भाव है, परंतु कर्म पर मन का पूर्ण प्रभाव पड़ता है। 20 राज्यों में हो रहा है लागू ‘वन नेशन, वन राशन कार्ड’

यदि आर्य नाम को छोड़ अन्य हिन्दू आदि नाम स्वीकार कर लेते हैं तो आर्यत्व व सारा परंपरागत इतिहास (Traditional History) समाप्त हो जाता है। इसी कारण विदेशी लोग पराधीन देश की नाम आदि परम्पराएँ नष्ट कर देते व बदल देते है। जिससे पराधीन राष्ट्र अपने पुराने गौरव को भूल जावे। इतिहास की स्मृति से मनुष्य फिर खड़ा हो जाता है व पराधीनता की बेड़ियों को काटकर स्वतंत्र बन जाता है। यह सब नाम व इतिहास के कारण ही संभव हो पता है।
अत: हमें सर्वत्र प्रयोग करना चाहिए कि हम “आर्य” है, “आर्यावर्त” हमारा राष्ट्र है। आर्यों का भूत अत्यंत उज्जवल (extremely bright) रहा है, हमें उसी पर फिर पहुँचना है। इसी प्रकार हमें अपना, अपने राष्ट्र और अपनी भाषा के नाम का भी सुधार कर लेना चाहिए। हमारे महापुरुषों ने सदैव कहा है कि “हमें हठ, दुराग्रह व स्वार्थ को त्यागकर सत्य (truth) को अपनाने में सर्वदा तैयार रहना चाहिए।” क्या द्रविड़ आर्य वंशज है? द्रविड़-आर्य दुश्मन या भाई ? -Alok Prabhat