Nathuram Godse Last Speech
आप माने या न माने, किन्तु मूलतः मैं निर्दयी वृत्ति का मनुष्य नहीं हूँ । सहृदयता के और सर्व-साधारण सौजन्य के धागों से ही मेरा स्वभाव बना है । मेरे मित्र ही क्या, मेरे शत्रुओं से भी इस बात की छानबीन कर लेना ।
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तो फिर मैंने यह भयानक कृत्य क्यों किया ? जन-निंदा अथवा मृत्युदंड, ये दोनों परिणाम मैं भी जानता था । मेरा न्यायालय वक्तव्य सत्य इतिहास है किन्तु वह लोगों के सामने लाने से शासन को दर लगता है । भले मेरे कृत्य की निंदा आप कितनी भी करें, किन्तु मेरी भावनाओं की निंदा करना प्रमाणिकता (सबूतों से) से उचित नहीं होगा ।
देश-विभाजन लोगों को अँधेरे में रखकर किया गया । गाँधी ने कहा था कि पाकिस्तान मेरी लाश पर होकर बनेगा परन्तु बाद में परदे के पीछे देश बाँट दिया । गाँधी यदि सत्यवादी होते तो देश-विभाजन का विरोध करते, भाले विश्व क्यों न विरोध में होता । विभाजन के पश्चात् दिल्ली और पंजाब में मैंने प्रत्यक्ष क्या देखा ? मानवीय क्रूरता, विभत्सता पराकोटि पर पहुँच गयी थी ।हिंदू शब्द की प्रासंगिकता कब, क्यों और कैसे बड़ी क्या है अर्थ...
गाँधी जी का अंतिम उपवास मुसलमानों के समाधान के लिए था । दूसरी ओर, प्रारंभ से ही हिन्दुओं पर हो रहे क्रूर अत्याचारों को दया का नाम देकर मुस्लिमों को बल दिया गया । हिन्दुओं पर भयानक आघात किया गया । हिन्दू निर्वासित ठण्ड के कारण मस्जिदों की छत के नीचे रहे, किन्तु मस्जिदों का उपयोग गाँधी ने न होने दिया, न ही उन हिन्दू निर्वासितों के आश्रय की कोई सुविधा की । भारत-चीन के बीच बातचीत आज फिर होगी LAC पर, तनाव कम करने की कोशिश
उन हिन्दू निर्वासित स्त्री-पुरुषों, बालकों को कही गटर के अथवा कहीं रास्ते के किनारे ठण्ड के दिनों में रहने को बाध्य किया और 55 करोड़ रूपये पाकिस्तान को दिलवा दिए । यह कथा भावनामय कथा नहीं है, सत्य स्थिति है । गाँधी के हठ के कारण राष्ट्र-भाषा जैसे महत्वपूर्ण प्रश्न पर उर्दू पर विचार चल रहा था । हैदराबाद को पाकिस्तान को सौंपने के मनसूबे बनाये जा रहे थे । Religious Story अध्यात्मिक कहानी Story Writing
अत: भविष्य की विडम्बना और भयानक क्रूरता रोकने के लिए मैं सापेक्षत: एक छोटा सा क्रूर कृत्य करने को प्रवृत्त हुआ । मेरे गाँधी वध के बाद दया और सत्य के नाम से होने वाला भयानक मानवी नरसंहार तत्काल नियंत्रण में आया है । राष्ट्र-शत्रु को सहायता देने का अधिकार किसी को नहीं है । न्यायालय में दिया मेरा वक्तव्य कभी बाहर आया तो गाँधी के कुकृत्यों के बारे में विस्तार से स्पष्ट हो जायेगा । क्रिकेटर ने कहा- मेरी भी हालत सुशांत सिंह राजपूत जैसी, लेकिन मैं मानसिक तौर पर मजबूत
गाँधी जी की चाहे कितनी प्रशंसा करें, किन्तु अपना राष्ट्र फिर कभी गांधीवाद के भंवर में न फंसने दे । गाँधी जी अमर है, किन्तु गांधीवाद मृत्युशय्या पर पड़ा है । थोथापन और भ्रामक तुष्टिकरण के दिन समाप्त होने आये है, बुद्धि के प्रभात काल का उदय हुआ । गुरुकुल की शिक्षा कहाँ गई ?
“यदि देशभक्ति पाप है तो मैं मानता हूँ मैंने पाप किया है । यदि प्रशंसनीय है तो मैं अपने आपको उस प्रशंसा का अधिकारी समझता हूँ । मुझे विश्वास है कि मनुष्यों द्वारा स्थापित न्यायालय के ऊपर कोई न्यायालय हो तो उसमें मेरे काम को अपराध नहीं समझा जायेगा । मैंने देश और जाति की भलाई के लिए यह काम किया । मैंने उस व्यक्ति पर गोली चलाई जिसकी नीति से हिन्दुओं पर घोर संकट आये, हिन्दू नष्ट हुए।” क्या है जगन्नाथ रथ यात्रा का पौराणिक इतिहास और कथा
महात्मा नाथूराम गोडसे “ I have however no doubt that had the audience of that day been constituted into a jury and entrusted with the task of deciding Godse’s appeal, they would have brough in a verdict of ‘not guilty’ by overwhelming majority’. JUSTICE KHOSLA (The murder of the Mahatma, Page 234) -Alok Prabhat
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