मौत का पान मसाला pan masala क्या है जगन्नाथ रथ यात्रा का पौराणिक इतिहास और कथा
पान मसाला अपनी महक द्वारा मनुष्य को आकर्षित करता है और अपने विष के द्वारा मारता है। मुंह शरीर की सेवा करने के लिए है न कि सजा देने के लिए।
१. “Pan masala Death masala” क्योंकि पान-मसाला, सुपारी, ज़र्दा, तंबाकू आदि के सेवन करने से होठ, गाल, दांत, गर्दन और फेफड़ों का कैंसर हो जाता है।
२. मुंह में छाले बनने लगते है, संपर्क भाग की म्यूकश ग्रंथियों में सिकुड़न आ जाने के कारण कोई भी कड़ी वस्तु चबाने-खाने में दर्द होता है। हिंदू शब्द की प्रासंगिकता कब, क्यों और कैसे बड़ी क्या है अर्थ...
३. जबड़ों का खुलना निरंतर घटता जाता है जो कि मुख-कैंसर का कारण है।
४. पान-मसालों व गुटका आदि में नाना प्रकार के मादक पदार्थ (यहाँ तक की छिपकली भी) मिलाये जाते है।
५. इन पदार्थों में पाए जाने वाले विभिन्न विष ही मुंह के कैंसर के लिए प्रयाप्त है।
६. ये पदार्थ मुंह, गले व भोजन की नली तथा पाचन संस्थान में पहुँचकर पतली तह के रूप में जम जाते है। ये धीरे-धीरे सूजन का रूप धारण कर आंतरिक त्वचा पर जम जाते है जो आसानी से साफ नहीं होती। ये आंतों में भी जम जाते है और धीरे-धीरे कैंसर में बदल जाते है जिसकी परिणति भयानक मौत के रूप में होती है।
७. मुंह व गले में छाले, खाने में जलन यहाँ तक कि ताजे पानी से भी जलन, रक्तचाप बढ़ना, हृदयगति तेज होना, घबराहट, उल्टी, चक्कर आना, छाती का दर्द जैसी प्रारम्भिक शिकायतों के बाद में स्थायी बन जाना और फिर अंतिम परिणाम-दर्दनाक मौत होता है। सीमावर्ती लोगों की बढ़ाई चिंता भारत-नेपाल के बिगड़ते रिश्तों ने
८. मसूड़े जो दांत की पकड़ मजबूत करने का काम करते हैं, वे कमजोर पद जाते है। ९. दांत पीले हो जाते है। १०. केवल इन पदार्थों के प्रयोग से ही प्रतिवर्ष लगभग ८ लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है।
सावधान ! कहीं आप भी इनमें शामिल होने तो नहीं जा रहे ? गुरुकुल की शिक्षा कहाँ गई ?
ध्यान रहे :- केवल प्रारम्भिक स्थिति में ही उपचार संभव है। एक इंजेक्शन का मूल्य ५००० रुपए से लेकर ३५००० रुपए तक है और यह भी आवश्यक नहीं की उपचार के पश्चात ठीक हो ही जावे। उपचार में पूरे के पूरे घर बर्बाद हो जाते है। मांगने पर भी मौत नहीं मिलती। 2020 चुनौतियों से भरा साल रतन टाटा ने कहा, लोगों से ऑनलाइन नफरत फैलाने से बचने को कहा
जरा सोचो :- जिस पदार्थ का सेवन करने से शारीरिक, आत्मिक, आर्थिक व सामाजिक हर प्रकार की हानि ही होवे उसे खाना पीना कौन-सी बुद्धिमानी है। Religious Story अध्यात्मिक कहानी Story Writing
एक मोटे अनुमान के अनुसार :- मान लीजिये एक व्यक्ति प्रतिदिन इस व्यसन पर १० रुपए प्रत्यक्ष रूप से खर्च करता है (इसमें डाक्टर का खर्चा शामिल नहीं) तो वह एक महीने में ३०० रुपए अनावश्यक खर्च करता है अर्थात सालाना ३६०० रुपए। ५ साल में यह रकम १८००० रुपए हो जाती है। बैंक का ब्याज आदि लगाकर तो कहीं अधिक। यदि पूरा हिसाब लगाया जावे तो मात्र इन रुपयों को बचाकर ही हम ५७ वर्ष में करीब ५० लाख रुपया जोड़ सकते है (डाकघर में निरंतर ७-८ वर्ष में रुपए डबल होते रहते है) । यह तो केवल पान-मसाले के ही आंकड़ें है यदि शराब आदि के लगाए तो शिर चक्र जाएगा। कोरोना संकट काल में भारत बना वैश्विक दवा का केंद्र- SCO
अत: आज से ही संकल्प करो कि मैं उपरोक्त दुर्व्यसन का प्रयोग न करके इन पर जो धन खर्च करता हूँ उसे स्वयं के भविष्य, अपने परिवार व राष्ट्र की उन्नति के लिए मासिक बचत योजना के तहत जमा करवाऊँगा और सुखपूर्वक जिंदगी व्यतीत करूंगा। आर्यसमाज सदैव नशामुक्ति के इस अभियान को चलाकर समाज को जागरूक करता रहा है और करता रहेगा क्योंकि किसी भी राष्ट्रवादी संगठन या समाज में इस बुराई को मिटाने की प्रबल भावना होती है। -Alok Prabhat
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