कारगिल युद्ध के महानायक शहीद कै. विक्रम बत्रा
बचपन से ही दूसरों की सहायता करने में आगे रहते थे। शहीद कै. विक्रम बतरा की माता कमला बताती हैं कि उन्होंने विक्रम की कई यादें संजोकर रखी हैं। घर में ही बेटे की याद में शहीद स्मारक कक्ष बनाकर बचपन से लेकर शहादत तक की सभी चीजों को सहेजकर रखा है। स्कूल में भी अग्रणी भूमिका निभाने के साथ सेना में भी कैप्टन विक्रम बत्रा ने कई सम्मान हासिल किए थे। ‘कारगिल वॉर मेमोरियल’-एक ऐसा तीर्थस्थल जिसे देखे बिना है यहां की यात्रा अधूरी
कमला बतरा बताती हैं कि केंद्रीय विद्यालय पालमपुर में पढ़ाई के दौरान जुड़वां भाई विक्रम और विशाल स्कूल बस में आ रहे थे तो चलती बस से 11 वर्षीय मोना नामक छात्रा दरवाजा खुला रहने के कारण नीचे गिर गई थी। चालक के ब्रेक लगाते ही बस की गति धीमी हुई तो विक्रम ने सबसे पहले छलांग लगाकर छात्रा को संभाला व अपने भाई की सहायता से अस्पताल पहुंचाकर उपचार करवाया था। उस समय विक्रम जमा एक के छात्र थे। वह बचपन से ही हर किसी की रक्षा के लिए आगे रहते थे। वेदों में बताए देवता God described by Vedas
कारगिल युद्ध में कैप्टन विक्रम के साथ सूबेदार मेजर रहे उपमंडल बैजनाथ की सिंबल पंचायत निवासी धनवीर सिंह राणा ने बताया कि अदम्य साहस के बलबूते ही उन्होंने सबसे कठिन दो चोटियों पर भारतीय सेना को फतह दिलाई थी। प्वाइंट 5140 में जीत हासिल करने के बाद सात जुलाई, 1999 को 13 जैक राइफल की डेल्टा कंपनी को प्वाइंट 4875 पर चढ़ाई करने के आदेश मिले। मोदी सिर्फ 32 सेकेंड में करेंगे राम मंदिर की नींव पूजा, अभिजीत मुहूर्त में होगा पूजन
सैनिकों की हौसला आफजाई के लिए रात से ही विक्रम बतरा की टोली जय दुर्गे, जाट बलवान जय भगवान, बोले सोनेहाल के नारे लगाते हुए आगे बढ़ी। कै. बत्रा ने स्वयं गन संभालते हुए दुश्मनों से चोटी खाली करवा दी थी। धनवीर सिंह राणा बताते हैं कि कैप्टन बत्रा के साथ उन्होंने रेजिमेंट के तीन अन्य साथियों को भी खोया है।न्यायकारी राजा और किसान King and Farmer Story - Alok Prabhat
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