राधे तू बढ़भागिनी, कौन तपस्या कीन। तीन लोक तारण तरण, सब तेरे आधीन। कुछ यहीं भाव उन लाखों श्रद्धालुओं का है, जो राधारानी को अपनी आराध्या मानते हैंं। लेकिन राधारानी के साथ साथ विजय लाडली जी की भी कृपा भी भक्तों पर गर्भग्रह के अन्दर से बरसती रहती है। लेकिन आज तक सिवाय सेवायतों के किसी ने विजय लाडली के दर्शन नहीं किए। विजय लाडली राधारानी के श्रीविग्रह का ही प्रतिबिम्ब है। Psychological Autopsy क्या होती है, सुशांत से पहले कुछ मामलों में हुआ है इस्तेमाल
वैसे तो राधारानी ही ब्रज की महारानी हैंं, पूरे ब्रज मण्डल में उनकी ही सरकार चलती है। लेकिन वहीं राधारानी मन्दिर पर लाखों श्रद्धालुओं सहित स्थानीय लोगों में एक भ्रांन्ति है कि राधा जन्मोत्सव के दौरान असली वालेे विग्रह के दर्शन होते हैं। लेकिन यह सच नहीं है। मन्दिर के सेवायतों के अनुसार जिस विग्रह के दर्शन बारह माह होते हैं, उसी विग्रह का अभिषेक राधाष्टमी के दौरान किया जाता है। अगर ऐसा है तो फिर यह भ्रान्ति क्यों है।नवजात शिशु की मालिश कौन से तेल से करें ?
इस भ्रान्ति से पर्दा उठाते हुए हकीकत जानने के लिये मन्दिर के बुजुुर्ग सेवायत गोविन्दराम गोस्वामी से जब बात की तो उन्होंंने बताया कि औरंगजेब के समय सभी हिन्दूू मन्दिरों को तोड़ा जा रहा था तो उस समय ब्रज के सभी देव विग्रह बाहर चले गये थे। वहीं राधारानी की श्रीविग्रह भी मध्य प्रदेश के सौपुर में एक राजा के यहांं चली गयी थीं। राधारानी के विग्रह के जाने के बाद गददी खाली थी तो उन्हीं की तरह एक विग्रह का निर्माण कराकर, उसकी प्राण प्रतिष्ठा कर उसे विराजमान किया गया। लेकिन बरसाना के मन्दिर पर औरंगजेब का आक्रमण नहीं हुआ तो जिस विग्रह को राधारानी के प्रतिबिम्ब के रूप में स्थापित किया गया था, उसे विजय लाडली के नाम से विख्यात कर दिया। यदि आप बनाएंगे वहां किचन गार्डन तो छत की बगिया से मिलेगा सेहत का खजाना
सौपुर में लम्बे समय तक राधारानी राजा के राजमहल के मन्दिर में विराजमान रहींं। लेकिन राधारानी को राजा का महल रास नहीं आया सो उन्होंंने स्वप्न में सेवायत को तुरन्त बरसाना चलने का आदेश दिया और सेवायत रात के अंधेरे में चुपचाप उन्हेंं वापस लाडली जी मन्दिर में ले आया था। तब से आजतक विजय लाडली के दर्शन कभी श्रद्धालुओं के लिये नहीं कराये गये। विजय लाडली की विग्रह राधारानी के बराबर में रखी रहती हैंं और राधारानी अपने कान्हा के साथ विराजमान रहती हैंं। राजनीति भी सधेगी नई शिक्षा नीति से, 50 करोड़ लोगों पर निगाहें…
आचार्य मनोजकृष्ण गोस्वामी ने बताया कि सौपुर के राजा की नियत खराब हो गयी थी, वो राधारानी की विग्रह को वापस देना नहीं चाहता था। वहीं राधाष्टमी महोत्सव के दौरान उसी श्रीविग्रह का अभिषेक किया जाता है, जिसे श्रील नारायण भट्ट जी ने प्राकट्य किया था। कुछ लोगों ने धन के लालच में गलत भ्रान्ति फैला रखी है। असली श्रीविग्रह विजय लाडली जी का ही, जिसका राधाष्टमी पर अभिषेक किया जाता है। -Alok Nath
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