Discovery of Indian coins from Cowrie to Credit Card सिक्कों का नाम लेते हुए एकबारगी एक, दो, पांच और दस के सिक्कों की खनक सुनाई पड़ती है। आंखें बंद करके भी आप आसानी से बता सकते हैं कि सिक्का पांच का है या दस का। लेकिन, क्या आपने कभी ऐसे सिक्के देखे हैं, जिन्हें माला की तरह पिरोकर गले में पहना जा सके, जानवर की हड्डी से बना रुद्राक्ष जैसा सिक्का या पत्थर के बेढंगे सिक्के। इनका मूल्य भी इतना कि एक दुधारू गाय खरीदी जा सके। अच्छा चलिए, मिट्टी के सिक्के, जिनसे पता चले कि ये किसी विशेष कबीले की कहानी कह रहे हैं। शायद आपको याद नहीं क्योंकि बहुत कम ही लोग ऐसे होंगे जो इनके बारे में गहराई से वाकिफ होंगे। सच्चाई यही है कि हजारों बरस पहले भी सिक्कों का चलन था। ओवरी में न बने सिस्ट, जीवनशैली में करना होगा कुछ बदलाव
भारत में कौड़ी, जानवरों की हड्डी, रांगा, टेराकोटा (मिट्टी) और पत्थर के सिक्के प्रचलन में रहे हैं। उस समय इनका धातु के सिक्कों जैसा ही क्रेज था। ऐसे ही आदिम और प्राचीन भारत के करीब पांच हजार से अधिक सिक्कों का बेशकीमती संग्रह धनबाद के कुसुम विहार निवासी अमरेंद्र आनंद के पास है। अपने शौक के लिए वे हर माह हजारों रुपये खर्च करते हैं। सिक्कों का संग्रह ही उनकी जिंदगी का मकसद है। ताकि आनेवाली पीढिय़ां अतीत को जान सकें। सरकारी बैंकों पर है काफी दबाव रेहड़ी पटरी वालों को लोन देने के लिए…
घर में बना दिया म्यूजियम अमरेंद्र ने बताया कि आदिम जातियां, राजा-महाराजा, मुगल शासक, बादशाह और सुल्तानों ने अपनी-अपनी मुद्राएं जारी की थीं। प्रारंभ में भारत में कौड़ी, जानवरों की हड्डी, रांगा, टेराकोटा (मिट्टी) और पत्थर के सिक्के प्रचलन में आए। वक्त गुजरने के साथ धातु के सिक्के आए। कुसुम विहार स्थित घर में अमरेंद्र ने सिक्कों का एक म्यूजियम बनाया है। देश-विदेश से सिक्का प्रेमी इसके दीदार को आते हैं। प्रतिमाह 25 से 30 हजार रुपये प्राचीन सिक्के खरीदने पर खर्च करते हैं। कुछ नया सीखने की चाह...आपको नई राह और नए विकल्प देती है
कहीं विदेश में भी खुदाई में सिक्के मिलने की सूचना आती है तो वे उसे खरीदने जाते हैं। अमरेंद्र ने अपने कलेक्शन को 'डिस्कवरी ऑफ इंडियन क्वाइंस फ्रॉम कौड़ी टू क्रेडिट कार्ड' नाम दिया है। अमरेंद्र दस साल की उम्र से सिक्का संग्रह में जुटे हैं। बचपन से ही उनमें सिक्कों के संग्रह के लिए दीवानगी थी। उनका दावा है कि उनके पास कई सिक्के पांच हजार वर्ष पुराने हैं। मनोज सिन्हा: कश्मीर पंडितों की वापसी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता
सिक्के से अतीत की कहानियां कौड़ी : पांच हजार वर्ष पुराने, समंदर के किनारे बसे राज्यों में इनका चलन था। हड्डी के सिक्के : पांच हजार वर्ष पुराने जानवरों की हड्डियों से निर्मित, रुद्राक्ष जैसे दिखने वाले सिक्के। सुरक्षित रखने को धागे में पिरोकर गले या हाथ में पहने जाते थे। तुलसी: किसी के लिए हेल्थ तो किसी के लिए बनी वेल्थ, पान व चाय के उद्योग में बढ़ी मांग
पत्थर के सिक्के : पांच हजार वर्ष पुराने इन सिक्कों का उत्तर भारत में चलन था। मनका : कई हजार वर्ष पुराने रांगा से बने इन सिक्कों का प्रचलन भारत में था। इन पर विशेष क्षेत्र के चिह्न अंकित होते थे। टेराकोटा (मिट्टी) : पांच हजार वर्ष पुराने इन सिक्कों का पंजाब के अधिकतर इलाकों में चलन था। सिक्कों पर कबीलों की पहचान के चिह्न बने होते थे। ये सौराष्ट्र (गुजरात) में भी मिले हैं।
चांदी का पंच मार्क : ये सिक्के मौर्यकालीन हैं। सवा तीन ग्राम के चांदी के ये सिक्के एक हजार साल तक प्रचलन में रहे। पंच मार्क से राजवंश का समय दर्शाया जाता था। तांबे के पंच मार्क के सिक्के उज्जैन में प्रचलित थे। इन सिक्कों पर महाकाल की आकृति बनी है।रक्षा मंत्री के बाद अब विदेश मंत्री जयशंकर जाएंगे तेहरान
कुषाण काल : कुषाण वंश के राजाओं के समय के ये सिक्के तांबे के बने होते थे। इनमें एक ओर राजा तो दूसरी ओर शिव-नंदी का चित्र अंकित होता था। 16 ग्राम तक के ये सिक्के 80 से 100 एडी में प्रचलन में थे। उस समय के शासक भीम कदाफिस का सिक्का 6.89 ग्राम का था।
इंडो-ग्रीक : चांदी के 2.3 ग्राम के सिक्के 31 बीसी से 14 एडी में प्रचलन में रहे। इस समय के शासक कुजूल कादफिस हुआ करते थे। राधा कृष्ण की दिव्य लीलाओं को महसूस करना चाहते हैं तो चले आइए गोवर्धन पर्वत
कश्मीरी सिक्के : ये सिक्के 400 से 1200 एडी में प्रचलन में थे। 7.26 ग्राम के इन सिक्कों में सोना और तांबा का मिश्रण होता था। ये सिक्के कारकोतस ऑफ कश्मीर के नाम से जाने जाते थे। दक्षिण भारत के सिक्के : एक कासु के नाम से प्रचलित ये सिक्के दक्षिण भारत में सन 1743 से 1801 एडी में प्रचलित थे। -Alok Prabhat
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