सांस के रोगियों के लिए काल बन सकता है कोरोना...

कोरोना महामारी के बीच प्रदूषण एक बड़ी समस्या के रूप में दस्तक दे रहा है। लॉकडाउन के बाद प्रदूषण घट गया था। आबोहवा साफ हो गई थी। पिछले कई सालों में ऐसी स्थिति बनी थी। यह भी एक कारण हो सकता है जिससे देश में कोरोना से मृत्यु दर कम रही लेकिन एक बार फिर प्रदूषण बढ़ने लगा है। इस वजह से पहले वाली स्थिति वापस होने लगी है। इसका कारण यह है कि सड़कों पर भारी संख्या में वाहन उतरने लगे हैं। अब पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने से प्रदूषण और बढ़ेगा। तापमान जैसे-जैसे नीचे गिरेगा, वैसे-वैसे धुआं व धूलकण वातावरण में बहुत ऊपर जाने के बजाय नीचे एकत्रित होना शुरू करेंगे। इस वजह से गैस चैंबर की स्थिति बन जाती है। ऐसी स्थिति में कोरोना श्वसन रोगियों के लिए काल सरीखा बन सकता है। इटली में यह देखा गया कि वहां दक्षिणी क्षेत्र के मुकाबले प्रदूषण प्रभावित उत्तरी क्षेत्र में कोरोना के मामले व मौतें अधिक हुईं। उत्तर प्रदेश में फिल्म सिटी के निर्माण से रोजगार को मिलेगा बढ़ावा…

इसी तरह अमेरिका में हार्वर्डं यूनिर्विसटी के अध्ययन में प्रदूषण के स्तर व मौत के आंकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया। इसमें पाया गया कि पीएम-2.5 का स्तर बढ़ने से मृत्यु दर भी बढ़ गई। कोरोना फेफड़े पर ही अटैक करता है। हेफा फिल्टर के माध्यम से हमने दिल्ली में दिखाया था कि प्रदूषित वातावरण में रहने पर फेफड़े काले हो जाते हैं। क्योंकि पीएम-10, पीएम 2.5 सहित अन्य सूक्ष्म कण सांस के जरिये शरीर में पहुंचकर फेफड़े में जमा हो जाते हैं। दीपावली में यदि पटाखे जलेगें तो उसका धुआं कोरोना संक्रमित मरीजों के फेफड़े में जाएगा। यह ग्लोबल समिट दुनिया भर के तकनीकी नेताओं को AI से संबंधित पहलुओं पर चर्चा के लिए है।सप्ताह के 7 दिनों का इतिहास जानिए पहला रविवार कब था ?

Pollution will be rise in Delhi in next few days it will be dangerous for  lungs know more jagran special

इस वजह से कोरोना संक्रमितों की हालत बिगड़ सकती है। वैसे भी प्रदूषण के कारण सांस की बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं। पिछले साल मेडिकल जर्नल लैंसेट में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक तीन दशक में सांस की बीमारी सीओपीडी (क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) से पीड़ित मरीजों की संख्या देश में करीब दोगुनी हो गई है। अस्थमा के मरीज भी बढ़े हैं। उस रिपोर्ट के मुताबकि सांस की बीमारियों से पीड़ित 32 फीसद मरीज भारत में हैं। क्वाड देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक चीन पर चर्चा के लिए…

देश में करीब 4.2 फीसद लोग सीओपीडी व 2.9 फीसद लोग अस्थमा से पीड़ित हैं। इसका सबसे बड़ा कारण प्रदूषण को माना गया है। प्रदूषण के कारण कम उम्र के लोगों में भी फेफड़े का कैंसर देखा जा रहा है। जो लोग धूमपान नहीं करते वे भी फेफड़े के कैंसर का शिकार हो रहे हैं। हार्ट अटैक व स्ट्रोक का भी एक बड़ा कारण प्रदूषण है। लिहाजा, कोरोना के इस दौर में प्रदूषण बढ़ना स्वास्थ्य के लिहाज से ज्यादा जोखिम भरा साबित हो सकता है। इसलिए प्रदूषण को रोकने के लिए जरूरी है कि सरकार स्थायी कदम उठाए। लंबी उम्र जीना चाहते हैं तो आज ही छोड़ दें ये 6 अवगुण

अस्‍थमा के मरीज: कोरोना : अस्‍थमा के मरीजों को बरतनी चाहिए ये खास  सावधानियां | ET Hindi

सरकार ने जो र्आिथक पैकेज की घोषणा की है उसके तहत स्वच्छ ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा देना होगा। कोल व पेट्रोल का इस्तेमाल मौजूदा समय के अनुसार करते रहेंगे तब तक प्रदूषण को कम करना संभव नहीं है। क्योंकि प्रदूषण का सबसे बढ़ा कारण थर्मल बिजली संयंत्र, औद्योगिक इकाइयों व वाहनों से निकलने वाला धुआं है। 60-65 फीसद प्रदूषण इन कारणों से होता है। 35 से 40 फीसद प्रदूषण पराली जलाने के कारण होता है। इसलिए पराली जलाने पर रोक जरूरी है। किसानों को पराली के उचित निस्तारण के लिए विकल्प उपलब्ध कराया जाना चाहिए। इसके अलावा सार्वजनिक परिवहन का अधिक से अधिक इस्तेमाल करना होगा। तभी प्रदूषण कम हो पाएगा। -Alok Prabhat 20,000 करोड़ राज्यों को आज ही जारी होगी क्षतिपूर्ति उपकर से प्राप्त की हुई राशि



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