पेचिस (प्रवाहिका) के प्रकार, लक्षण और सरल चिकित्सा
पेचिस जल संवाहिता कीटाणुओं से उत्पन्न होने वाले रोगों में पेचिस भी एक भारतव्यापी रोग हैं और यह हमारे देश में बहुतायत से होता हैं ।(पेचिस) रोगी के मल से सने कपडे नदी तालाब या कुएँ पर धोने में इसके कीटाणु पानी में मिश्रित हो जाते हैं और वहीँ दूषित पानी पीने पर ये कीटाणुस्वस्थ मनुष्य के पेट एन पहुँच कर रोग का सम्रमण करते हैं । घर में खाने पीने की वस्तुएं के खुले में रहने से धूल के साथ खाद्य सामग्री में भी मिलकर ये कीटाणु मनुष्य के पेट में पहुंचकर विकार करते हैं । प्रधानमंत्री मुद्रा योजना क्या है और कैसे उठा सकते हैं फायदा
कीटाणुओं को मनुष्यों के पेट में पहुचने का एक बड़ा साधन मक्खियाँ हैं । मक्खियाँ मल पर बैठती हैं और मल में से हजारों कीटाणु अपने पंजे में उठा लेती हैं । वे ही मक्खियाँ जब घर में या बाजार में खुली रखी मिठाई और अन्य खाद्य सामग्री पर बैठती हैं, तो मल से पंजो में संग्रहीत कीटाणु उन वस्तुओं पर छूट जाते हैं । भगत सिंह का नामकरण बिना किसी पंडित के हुआ था ?
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पेचिस कई प्रकार का होता हैं, तथापि दो प्रकार का अधिक देखने में आता हैं ।
एक बेलेसरी
दूसरा एमेबिक। यह रोग कीटाणु-विशेष से होता और फैलता हैं ।
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प्रवाहिका के कीटाणु मनुष्य के पेट में पहुच कर कब्ज करते हैं ।
वे खाये-पिए पदार्थों का रस चूसते हैं ओर विष उगलते हैं।
उस विष से पाचन-संस्थान निष्क्रिय और विशेषकर आंतें बहुत विकृत हो जाती हैं । इससे लीवर का परिश्रम बढ़ जाता हैं, और धीरे-धीरे वह भी थकित और निर्बल हो जाता हैं।
कीटाणुओं का यह प्रभाव ही पेचिस रोग का प्रधान कारण हैं । ये कीटाणु विशेषत: आँतों में जगह बनाकर अपनी अपरिमित संतति बढाते हैं । कभी-कभी जब युए कीटाणु यक्तिय में पहुँच जाते हैं तो रोगी की मृत्यु का कारण बन जाते हैं । “कोरोना” नाम, नया नहीं है 1800 साल पहले जर्मनी में था ईसाई संत कोरोना का अस्तित्व
पेचिस के लक्षण :- इस रोग में कीटाणुओं के प्रहार से निर्बल आंतें जब अपना काम नहीं कर पति, तो बड़ी आंत में मल जम जाता हैं और दस्त आने लगता हैं । प्रारंभिक अवस्था में पेट में मरोड़ के साथ बार-बार दस्त होते हैं । कभी-कभी अपार वायु के साथ भी मल का तरल भाग निकल जाता हैं । शौच की शंका इतने जोर से होती है, मानो दस्त निकल ही पड़ता हैं, तुरंत शौच पर बैठने से दस्त नहीं होता, केवल थोड़ा कफ जैसा पदार्थ दस्त में निकलता हैं । भूख की कमी, जीभ पर सफ़ेद मैल जमना और पेट में दर्द के साथ कभी-कभी मल के साथ खून भी आने लगता हैं अथवा खून के ही दस्त होने लगते हैं और आतों में ग्झाव हो जाते हैं । Maharishi Dayanand Saraswati (महर्षि दयानन्द सरस्वती ) का मृत्यु रहस्य
प्रवाहिका रोग की सरल चिकित्सा :- पेचिस जैसे घातक और भयंकर रोग का शिकार न होना पड़े, इसके लिए मन्दाग्नि और अपच से बचने के साथ ही इसके कीटाणुओं से अपनी रक्षा करनी चाहिए। सैदव नल का पानी ही पीने के उपयोग में लाना चाहिए ।क्योंकि वह यांत्रिक विधि से सर्वथा कितानुराहित करके नलों में भेजा जाता हैं । जहाँ नल न हो वहां कुएँ का पानी साफ़ कपडे की दो तहों से छाने बिना नहीं पीना चाहिए । बाजारू चाट-मिठाई, या घर की खाद्य सामग्री जो खुली रखी रहती हो और जस पर मक्खियाँ बैठा करती हों उसको नहीं खाना चाहिए । पता नहीं कब किस में मिठाई या पानी के साथ एक-दो कीटाणु ही पेट में पहुच कर हमारा जीवन संकट में डाल, दें ऐसा विचार कर सदा ही खान-पान में पहुँच कर हमारा जीवन संकट में डाल दें, ऐसा विचार कर सदा ही खान-पान में गंदगी और मक्खियों से अपनी रक्षा करते रहना चाहिए । -Alok Prabhat
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