Indian Army Soldier's last Letter: युद्ध छिड़ गया है मैं जा रहा हूं। हो सकता है लौटकर न आऊं। अपने दम पर जीना, परिवार को संभालना। कभी किसी के सहारे मत रहना। माता-पिता का ख्याल रखना। यह शहीद लांस नायक रतन सिंह के अपनी पत्नी से कहे गए आखिरी शब्द थे। जो शहीद की पोती खुशी ने अपनी दादी लीलावती से सुने। कक्षा 11 की छात्रा खुशी बचपन से ही अपने दादा के साहस और दादी के संघर्ष के किस्से सुनती आ रही हैं और दूसरों को सुनाती हैं। दादा की बहादुरी से प्रेरणा लेकर वह भी सेना में अधिकारी बनना चाहती हैं और इसके लिए अभी से तैयारी शुरू कर दी है। महज 25 साल की उम्र में ही लांस नायक रतन सिंह 1971 में पाकिस्तान से हुए युद्ध में देश के लिए वीरता से लड़ते हुए शहीद हो गए थे। उस समय लीलावती 22 साल की थी और उनका बेटा संजय केवल डेढ़ साल का था। MSP से दोगुनी कीमत पर बेच रहे फसल 6 वर्ष से, प्रति एकड़ हर साल पचास हजार की आय
बलिदानी रतन सिंह ने लड़ी थी 1962 और 1965 की जंग लीलावती बताती हैं कि उनके पति ने 1962 और 1965 की भी जंग लड़ी थी, लेकिन 1971 में पाकिस्तान से हुए युद्ध में उन्होंने वीरता से लड़ते हुए देश के लिए प्राण न्यौछावर कर दिए। उन्होंने बताया कि उनके पति छुट्टी आए हुए थे और वह अपने साथ ही पोस्टिंग पर ले जाने वाले थे। तभी तार आया कि युद्ध शुरू हो गया रतन सिंह ने जाते हुए अपनी पत्नी से कहा कि माता-पिता और बेटे का ख्याल रखना। कभी किसी के सहारे मत रहना अपने दम पर रहना। वही, आखिरी दिन था जब शहीद नायक रतन सिंह अपनी पत्नी लीलावती को हमेशा के लिए अलविदा कह गए और पाकिस्तान से युद्ध में वीरता से लड़ते हुए देश के लिए शहीद हो गए। मोदी के फिटनेस का राज, खाते हैं मोरिंगा के पराठे
खुशी ने सुनी दादी के संघर्ष की कहानी खुशी अपनी दादी के कभी हार न मानने वाले संघर्ष का किस्सा सुनकर काफी उत्साहित होती हैं। वीर वधु लीलावती बताती हैं कि उनका बेटा संजय केवल डेढ़ साल का था और घर पर केवल बुजुर्ग सास पनवेश्वरी देवी और ससुर ऋषाल सिंह थे। घर की पूरी जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई थी। दूसरे शहर में जाकर पैसा कमाने के बारे में सोचा, लेकिन इतने छोटे बेटे को साथ ले जाकर वह कुछ नहीं कर सकती थी। इसलिए बेटे को आर्मी के हॉस्टल में छोड़ दिया और काम करने के लिए पंजाब चली गई। लीलावती ने बताया कि पहली बार घर से अकेले काम के लिए निकली थी। ट्रेन में रास्ते भर रोती चली गईं। एक साल में बेटे से मिलने हॉस्टल आयीं तो बेटे को नहलाया खाना खिलाया और फिर सोता हुआ छोड़कर फिर से चली गई। दूसरी बार जब मिलने आयीं तो बेटा उन्हें भूल गया था। इसी दौरान उन्हें एक कंपनी में नौकरी भी मिल गई थी तो बेटे को साथ रखकर ही वह नौकरी करने लगीं।ताजमहल का कलश 466 किलोग्राम सोने का था , तांबे में बदल गया ये कैसे, कौन ले गया वो सोना?
बेटे को बनाया सीमा शुल्क अधिकारी लीलावती बताती हैं कि बेटा संजय कुछ समझदार हो गया था तो बोलता था कि हमारे पापा कहां हैं तो वह कह देती कि जब हाईस्कूल में अच्छे नंबर लेकर आओगे तो पापा खुश होकर आ जाएंगे। इसके बाद हाईस्कूल पास करने के बाद बेटे ने पूछा तो उन्होंने कहा कि बेटा तेरे पापा तो अब भगवान के पास हैं। अब तेरी मम्मी और पापा मैं ही हूं। जो चहिए मैं लाकर दूंगी। लीलावती ने बताया कि उनके बेटे ने भी अपनी मां के परिस्थितियों को देखते हुए पढ़ाई में काफी मेहनत की और अब वह सीमा शुल्क अधिकारी है। शहीद रतन सिंह का परिवार विवेकानंद नगर में रहता है। भारत की पहली रीजनल रैपिड ट्रांजिट सिस्टम ट्रेन का पहला लुक…
खुशी कर रही हैं तैयारी लांस नायक रतन सिंह की पोती खुशी सेंट मैरी स्कूल में कक्षा 11 की छात्रा हैं। बचपन से ही वह अपनी दादी लीलावती से अपने दादा के किस्से सुनती रहती हैं। इसी से प्रेरणा लेकर वह भी सेना में अधिकारी बनना चाहती है। इसके लिए उन्होंने स्कूल पढ़ाई के साथ ही प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी शुरु कर दी है। वह नियमित रूप से फिजिकल टेस्ट की भी तैयारी कर रही हैं। -Alok Prabhat प्राणायाम सबसे बड़ी औषधि
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