हनुमान् चालीसा
वर्तमान हनुमान् चालीसा का पूरा सच महापुरुषों के कथन क्यों होते हैं प्रभावी, किस कारण से लोग करते हैं अनुसरण
भारतीय समाज में सैकड़ों वर्षों से यह मान्यता प्रचलित है कि तुलसीदासकृत ‘हनुमान् चालीसा’ का पाठ करने से सब दु:ख दूर हो जाते हैं। इस मान्यता पर अंधविश्वास करने वाले मनुष्य नित्य ‘हनुमान् चालीसा’ का पाठ तो करते है, किन्तु ‘हनुमान् चालीसा’ को कभी बुद्धिपूर्वक नहीं पढ़ते। सत्य तो यह है कि तुलसीदासकृत ‘हनुमान् चालीसा’ में अनेक मिथ्या बातें लिखी हुई हैं, जिनके पढ़ने-पढ़ाने से अमूल्य समय, श्रम, बुद्धि आदि नष्ट होते हैं। इसके कुछ प्रमाण देते है :- रक्षा मंत्री के बाद अब विदेश मंत्री जयशंकर जाएंगे तेहरान
1. हनुमान् के तीन पिता – ‘हनुमान् चालीसा’ में हनुमान् जी के तीन पिता बताए हैं –
रामदूत अतुलित बलधामा। अंजनीपुत्र पवन सुत नामा॥
संकर सुवन केसरी नन्दन। तेज प्रताप महा जग वन्दन॥
अर्थ:- रामदूत और अतुलित बलशाली हनुमान् अंजनी (माता) तथा पवन (पिता) के पुत्र थे ॥१॥
हनुमान् शंकर के पुत्र तथा केसरी के पुत्र थे। उनका तेज और प्रताप महान थे तथा वे संसार के लिए वंदनीय है ॥ २ ॥
समीक्षा :- १. आप सत्यासत्य का विचारकर निर्णय कीजिये कि क्या किसी मनुष्य के तीन पिता होते हैं ?
२. वेदों के विद्वान, अत्यधिक बलशाली, धर्मात्मा और ब्रह्मचारी हनुमान् के तीन पिता बताना, उनकी स्तुति है या निंदा ? संस्कृत में रचे गए हमारे प्राचीन ग्रंथों में गणित-विज्ञान की समृद्ध विरासत है, मगर वर्तमान पीढ़ी इस ज्ञान से अनभिज्ञ
2. असंभव गप्प – तुलसीदासकृत ‘हनुमान् चालीसा’ में एक ऐसा असंभव गप्प लिखा है, जिस पर कोई बुद्धिमान बालक भी विश्वास नहीं कर सकता –
जुग सहस्त्र योजन पर भानु।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
अर्थ :- चार सहस्त्र योजन पर सूर्य है, जिसे हनुमान् ने मधुर फल जानकार निगल लिया था। समीक्षा :- एलआईसी की यह योजना खास ग्राहकों के लिए है, जानिए प्लान से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी
१. सूर्य पृथ्वी से चार सहस्त्र योजन, अर्थात बत्तीस सहस्त्र मील [लगभग इक्यावन सहस्त्र किलोमीटर] दूरी पर स्थित है। क्या इतनी दूरी पर स्थित सूर्य को कोई मनुष्य निगल सकता है?
२. सूर्य के बाह्यभाग का तापमान १२००० डिग्री फैरनहाइट है। इसका अर्थ हुआ कि सूर्य प्रज्वलित अग्नि का विशालतम लोक है, जिसके सहस्त्रों मील निकट भी कोई नहीं जा सकता। यदि कोई वस्तु या मनुष्य उसकी ओर जाने का प्रयास करे, तो वह उससे सहस्त्रों मील दूर ही जलकर भस्म हो जाएगा। क्या इतने उष्ण सूर्य को कोई बालक निगल सकता है?
३. सूर्य का आकार इस पृथ्वी से साढ़े तेरह लाख गुना बड़ा है। पृथ्वी की गोलाई २५००० मील है और सूर्य इस पृथ्वी से तैंतीस खरब, पिछत्तर अरब मील बड़ा है। क्या इतने बड़े सूर्य को कोई पृथ्वी का प्राणी निगल सकता है ?
3. अज्ञान और अंधविश्वास का प्रचार – तुलसीदासकृत ‘हनुमान् चालीसा’ के पठन-पाठन से भूत-पिशाच-संबंधी अज्ञान और अंधविश्वास का प्रचार होता है। उसमें लिखा है – समय की मांग है कि प्रत्येक व्यक्ति प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण, चिंतन-वंदन की ओर अग्रसर हो
भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महावीर जब नाम सुनावै॥
नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरन्तर हनुमत बीरा॥
अर्थ :- महावीर हनुमान् का नाम सुनने से भूत और पिशाच निकट नहीं आते ॥ जो मनुष्य निरन्तर हनुमान् का नाम जपता है, उसके सभी रोग और पीड़ाएँ समाप्त हो जाते है।
समीक्षा :- १. तुलसीदासकृत ‘हनुमान् चालीसा’ में भूत और पिशाच के अस्तित्व को स्वीकार किया गया है, जिससे इसके पाठकों और श्रोताओं के मन में भूत-पिशाच-संबंधी अज्ञान और अन्धविश्वास उत्पन्न हो जाते है, किन्तु सत्य यह है कि संसार में भूत-पिशाच होते ही नहीं।
२. हनुमान् का नाम जपने मात्र से किसी भी मनुष्य के रोग और दु:ख समाप्त नहीं हो सकते। उनका नाश तो उत्तम औषध-चिकित्सा तथा सत्कर्मों से ही हो सकता है।
इसी प्रकार लाखों मनुष्य अंधविश्वास में फँसकर दु:ख पाते रहते है। धर्मप्रेमी सज्जनों! आप कुछ तो विचार कीजिये कि ऐसे गप्प पढ़ने से क्या लाभ है ?
तुलसीदासकृत ‘हनुमान् चालीसा’ तो मनुष्यों को परमेश्वर से दूर करने वाला है, क्योंकि अज्ञानी लोग परमेश्वर को भूलकर केवल हनुमान् का नाम जपते रहते है। वास्तव में हनुमान् का नाम जपने या ‘हनुमान् चालीसा’ पढ़ने से दु:ख दूर नहीं होते।
वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में हनुमान् का चरित्र अति-उत्तम है। हनुमान् यज्ञोपवीतधारी, बाल-ब्रह्मचारी, अद्भुत बलशाली, वेदों के विद्वान और प्रतिदिन संध्या-हवन करने वाले महापुरुष थे, किन्तु घोर दु:ख का विषय है कि महावीर हनुमान् को पूंछ वाला बंदर बनाकर दिखाया जाता है। क्या बंदर वेद पढ़ते-पढ़ते है? क्या बंदर वेद-मंत्रों से संध्या हवन करते है? क्या बंदर राजदूत बनकर राजाओं के पास जाते है? सच तो यह है कि हनुमान्, सुग्रीव, अंगद, बाली आदि सभी हम जैसे ही मनुष्य थे। [प्रमाण हेतु पढे>>] मनोज सिन्हा: कश्मीर पंडितों की वापसी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता
जिन वेदों को पढ़कर हनुमान् जी वीर योद्धा बने थे उन वेदों में ईश्वर का सर्वोत्तम नाम ‘ओउम्’ बताया गया है तथा केवल उसके जाप और स्मरण का ही आदेश है – ओउम् क्रतो स्मर । – (यजुर्वेद 40/18)
अर्थ :- हे कर्मशील जीव! तू ‘ओउम्’ का स्मरण कर। ‘ओउम्’ का अर्थ सहित स्मरण, जप और ध्यान करने से ही सुख-शांति प्राप्त होती है। – लेखक :- डा० वेदप्रकाश जी
हनुमान् चालीसा Hanuman Chalisa सही
‘हनुमान् चालीसा’ यह नया ‘हनुमान् चालीसा’ लिखने का उद्देश्य केवल यह है कि सभी धर्मप्रेमी सज्जन महावीर हनुमान् के नाम पर फैल रहे अंधविश्वास, पाखंड और मूर्तिपूजा को त्याग कर हनुमान् के यथार्थ चरित्र की विशेषताओं को जान सके, उनके सद्गुणों को अपने जीवनों में धारण कर सकें तथा सच्चे ईश्वरभक्त बनकर अपने जीवनों को सुखी बना सकें। तुलसी: किसी के लिए हेल्थ तो किसी के लिए बनी वेल्थ, पान व चाय के उद्योग में बढ़ी मांग
‘ओउम्’
‘हनुमान् चालीसा’ - लेखक :- डा० वेदप्रकाश जी
करता हूँ वर्णन यहाँ, करके प्रभु का ध्यान।
सुनो वीर हनुमान् का, सुखदाई गुणगान॥
पितु पवन थे अंजना माता।
उनके घर जन्मा दुख-त्राता॥
चैत्र वदि शुभ अष्टमी आई।
मंगलवार जन्म सुखदाई॥
सुन्दरतम हनु अंग सुहाए।
इसीलिए हनुमान् कहाए॥
मात-पिता प्रभु के गुण गाते।
बालक को बलवान बनाते॥
रवि-सम तेजस्वी मुख पाया।
हृष्ट-पुष्ट सुन्दरतम काया॥
ऋषि अगस्त्य के गुरुकुल आए।
वैदिक विद्या पढ़ सुख पाए ॥
वेद ज्ञान-विज्ञान पढे थे ।
सदाचार के पंथ बढ़े थे॥
मल्ल-युद्ध गदा थे प्यारे।
नहीं किसी से डरे न हारे॥
मात-पिता, गुरु भक्त कहाते।
उठकर प्रात: शीश झुकाते॥
शक्ति, शील, सौन्दर्य सारे।
महावीर विनम्र थे प्यारे॥
वेद-पाठ सुन्दरतम गाते।
श्रोता मंत्र-मुग्ध हो जाते॥
नीति-निपुण, रक्षक सज्जन के।
न्याय करें प्यारे जन-जन के॥
संध्या और हवन नित करते।
वेद-ज्ञान, सद्गुण मन धरते॥
ब्रह्मचर्य-व्रत जीवन धारे।
सत्य, न्याय, परहित ही प्यारे॥
अतुलित बल, यौवन-धन पाया।
संयम का जीवन अपनाया॥
परमेश्वर का ध्यान लगाते।
ओम-ओम ही जपते जाते॥
प्राण साधना अद्भुत करते।
अनुपम बल तन-मन में भरते॥
परमेश्वर का दर्शन पाया।
मानव-जीवन सफल बनाया॥
वन-रक्षक अनुपम नर नेता।
सब युद्धों में रहे विजेता॥
त्याग तपस्या अनुपम पाए।
सकल विश्व उनके गुण गाए॥
मित्र सहायक बनकर आए।
अद्भुत सेना-नायक पाए॥
दृढ़ प्रतिज्ञ हनुमान् हमारे।
दुष्ट गदा से रण में मारे॥
कभी नहीं विचलित होते थे।
नहीं धीरता को खोते थे॥
वेद-ज्ञान के पण्डित भारी।
दिव्य, तपस्वी, शोभा प्यारी॥
सन्तजनों की सेवा करते।
उनके सब दु:खों को हरते॥
नारी का सम्मान बढ़ाते।
सन्नारी को शीश झुकाते॥
रामचन्द्र सुग्रीव मिलाए।
बने सहायक दुख मिटाए॥
रामदूत बनकर सुख चाहा।
दिया वचन जो उसे निबाहा॥
लाँघ सिन्धु लंका में आए।
सीता को खोजा सुख पाए॥
रावण को सब कुछ समझाया।
अभिमानी वह समझ न पाया॥
रावण की जब बहुत ढिठाई।
तब लंका हनुमान् जलाई॥
भक्त विभीषण के दुख-त्राता।
विजय-यज्ञ के तुम उद्गाता॥
संजीवनि ओषध ले आए।
लक्ष्मण के तब प्राण बचाए॥
रामचन्द्र के संग खड़े थे।
उनसे आगे सदा लड़े थे॥
लंका पर थी विजय दिलाई।
सीता जी श्री राम मिलाई॥
राम-राज्य के तुम निर्माता।
राम-भक्त तेरे गुण गाता॥
नहीं स्वार्थ कभी मन लाए।
कर्म सदा शुभ किये-कराए॥
जय जय जय हनुमान् हमारे।
महावीर हम सबके प्यारे॥
जो पढे हनुमान्-चालीसा।
धर्मवीर होवे उन्हीं-सा॥
सेवा श्रद्धा से सदा, किये धर्म के काम।
महावीर हनुमान् का, रहे जगत में नाम॥
ओउम् शांति: शांति: शांति: -Sabhar Alok Nath
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