पिछले तीन सालों से राहुल नौकरी पाने के लिए तमाम परीक्षाएं देकर हार चुका था। वहीं, कोरोना की दस्तक के बाद मंदी के दौर में नौकरी पाने की उसकी रही-सही उम्मीद भी खत्म होने लगी थी। मन में भविष्य को लेकर चिंताएं बढ़ने लगीं। कई बार आत्महत्या के विचार भी आए। जब यह बात उसने अपने एक दोस्त को बताई तो वह तुरंत उससे मिला और उस वक्त उसने सिर्फ यही कहा कि 'दोस्त अगर जिंदगी रहेगी तो नौकरी भी जरूर मिलेगी, मौत कोई हल नहीं है, आत्महत्या बुजदिली का काम है'। दोस्त की इन बातों ने राहुल के मन में उपजे आत्महत्या के विचारों को एक पल में बदल दिया। दो महीने पहले राहुल को एक प्राइवेट कंपनी में सुपरवाइजर की नौकरी मिल गई। राहुल के मन में आए आत्महत्या के विचार को उसके दोस्त की तत्परता ने बदल दिया। मगर राहुल के जैसे तमाम युवा हैं जो इस कोरोना संकट काल में अपने भविष्य को लेकर चिंतित होंगे। विशेषज्ञों का कहना है कि उम्मीद का दामन कभी नहीं छोड़ना चाहिए। जान है तो जहान है। एक नकारात्मक सोच आपकी जिंदगी खत्म कर सकती है, वहीं, सकारात्मक सोच आपको जिंदगी में सफलता भी दिला सकती है। नकारात्मक विचारों को त्यागकर जिंदगी को गले लगाना सीखें। सकारात्मक सोच के प्रति इसी नजरिए को बयां करती एक रिपोर्ट… ओवरी में न बने सिस्ट, जीवनशैली में करना होगा कुछ बदलाव
मन से निकला आत्महत्या का ख्याल : मानसिक अवसाद या डिप्रेशन सिर्फ एक रोग है, अभिशाप नहीं। बशर्ते लक्षणों को पहचानकर सही समय पर कोई आपका हाथ थाम ले। यह कहना है, बलरामपुर अस्पताल के मनोचिकित्सक डॉ. अभय सिंह का। नौकरी की उम्मीद छोड़ चुके अवसादग्रस्त एक व्यक्ति की कहानी साझा करते हुए उन्होंने बताया कि करीब एक-डेढ़ साल पहले सीवियर डिप्रेशन का शिकार एक मरीज आया था। जिसने डिप्रेशन के चलते आत्महत्या करने की कोशिश की थी। इलाज के लिए जब लाया गया तो परिजनों से पता चला कि नौकरी न होने के कारण घर-परिवार को चलाने की चिंता से ग्रस्त था। धीरे-धीरे चिंता इतनी बढ़ गई कि उसे लगने लगा था कि उसका जीवन व्यर्थ है, अब वह परिवार के लिए कुछ नहीं कर सकेगा। इसी वजह से उसने आत्महत्या करने का प्रयास किया।तुलसी: किसी के लिए हेल्थ तो किसी के लिए बनी वेल्थ, पान व चाय के उद्योग में बढ़ी मांग
हालांकि, समय रहते परिजनों ने उसके बदलते व्यवहार को पहचाना और सही समय पर उसे इलाज के लिए मेरे पास ले आए। इलाज के दौरान कई सेशन में उसकी काउंसिलिंग की गई और दवाएं चलाई गईं। करीब 28 दिन में उसके लक्षणों में कमी आ गई। लक्षण खत्म होने के बाद भी उसकी दवा जारी रखी गई। जब वह पूरी तरह से ठीक हो गया तो दवा बंद कर दी गई। इलाज के आखिरी दिनों में उसने बताया कि उसको एक अच्छी नौकरी मिल गई है। अब वह अपने परिवार में खुशहाल जिंदगी जी रहा है। उज्बेक व कजाकिस्तान के विदेश मंत्रियों से की मुलाकात: विदेश मंत्री जयशंकर
नकारात्मक विचार आएं तो अपनों से साझा करें : कभी-कभी कुछ कारण ऐसे होते हैं, जो आमतौर पर सुनने में बहुत साधारण लगते हैं। मगर वह कहीं न कहीं अवसाद का बहुत बड़ा कारण बन सकते हैं। ऐसे में, कई बार साधारण बातों के पीछे छिपी असामान्य बातों पर भी ध्यान देना चाहिए। केजीएमयू में मनोचिकित्सा विभाग में एडिशनल प्रो. डॉ. आदर्श त्रिपाठी ने एक युवक की अवसाद से बाहर निकलने की कहानी साझा करते हुए बताया कि करीब तीन साल पहले एक युवक मेरे पास इलाज के लिए आया था। उस युवक ने बताया कि वह प्रयागराज में रहकर सिविल सर्विस की तैयारी कर रहा था। अचानक उसको कमर दर्द की शिकायत हुई। उसने बहुत इलाज कराया। मगर कोई फायदा नहीं हुआ। तब उसने लखनऊ में अपने एक परिचित न्यूरो के डॉक्टर को दिखाया। डॉक्टर ने उसका एमआरआइ कराया तो सब नॉर्मल निकला। फिर उस डॉक्टर ने मुझसे उस लड़के का इलाज करने को कहा। जब वह मेरे पास आया तो मैंने उसकी पूरी हिस्ट्री सुनी। सबकुछ जानने के बाद पता चला कि वह सुमैटोफॉर्म बीमारी का शिकार है। महापुरुषों के कथन क्यों होते हैं प्रभावी, किस कारण से लोग करते हैं अनुसरण
हालांकि यह एक सामान्य बीमारी है जो हर 15 में से 10 मरीजों को होती है। अक्सर इस रोग के मरीज जब फिजीशियन के पास जाते हैं तो पता चलता है कि बीमारी शारीरिक नहीं बल्कि मानसिक है। जिसका शिकार वह लड़का भी था। उस लड़के ने बताया कि उसको सीवियर लोअर बैक पेन (कमर के निचले हिस्से में दर्द) था। जिसके कारण वह ज्यादा देर बैठ नहीं पाता था। ठीक से बैठ न पाने के कारण वह पढ़ नहीं पाता था जिससे उसके मन में सिविल सर्विस के एग्जाम में अपनी सफलता को लेकर एक डर बना रहता था। वहीं, परिवार का दबाव भी बना रहता था। इसी डर के कारण उसने दो बार लगातार परीक्षा दी मगर सफल न हो सका। जबकि उसके दोस्तों का सेलेक्शन हो गया। जिसके चलते उसके भीतर अपनी असफलता को लेकर डर बैठ गया था। फिर यही डर उसके अवसाद का कारण बन गया था। जबकि वह इलाज कमर दर्द का करा रहा था। सारी बात जानने के बाद मैंने उसकी काउंसिलिंग की और फिर दवा शुरू की। लगभग दो साल तक उसका इलाज चला। धीरे-धीरे उसका डर निकलने लगा। वह अपनी पढ़ाई को लेकर सकारात्मक होने लगा। मानसिक रूप से स्वस्थ होते ही वह अपना शारीरिक दर्द भी भूलने लगा। अब वह भी एक पीसीएस अफसर बन गया है। आज भी मेरे टच है। मेरी युवाओं को यही सलाह है कि वे किसी भी हालत में निराश न हों और हमेशा अपने लक्ष्य पर निगाह रखें। कभी मन में कोई नकारात्मक विचार आएं भी तो अपनों से एक बार जरूर साझा करें। समय की मांग है कि प्रत्येक व्यक्ति प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण, चिंतन-वंदन की ओर अग्रसर हो
कारण जानने का करें प्रयास : मनोवैज्ञानिक व नवयुग पीजी कॉलेज में प्रिंसिपल डॉ. सृष्टि श्रीवास्तव कहती हैं, किसी भी व्यक्ति के दिमाग में क्या चल रहा है, इसके बारे में जानना आसान तो नहीं है, लेकिन कुछ लक्षणों या संकेतों के माध्यम से यह जरूर जान सकते हैं कि वह व्यक्ति आत्महत्या के बारे में सोच रहा है। अगर कोई इंसान बात-बात पर गुस्सा दिखाता है तो उसका मानसिक स्वास्थ्य ठीक नहीं है। ऐसे में उससे सामान्य व हल्की-फुल्की बातें करके उसकी परेशानी के बारे में जरूर जानने की कोशिश करना चाहिए। आपको नई राह और नए विकल्प देती है कुछ नया सीखने की चाह…
नौकरी पाने के लिए कर रहा निरंतर प्रयास : नौकरी की तलाश में भटक रहे अंशुल पांडेय कहते हैं, मैं दो साल से सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहा हूं। इस वक्त कोरोना काल में नौकरी मिलने की कोई उम्मीद भी नजर नहीं आ रही है। घर में भी काफी दिक्कतें हो गई हैं। मगर मैंने अभी भी हार नहीं मानी है। भविष्य की तैयारियों और अपना लक्ष्य पाने के लिए निरंतर प्रयास कर रहा हूं। पढ़ाई का अपना एक नियम तय कर लिया है ताकि और मेहनत कर सकूं। अगली बार जब भी किसी परीक्षा में बैठूं तो मैं अपना बेस्ट दे सकूं। दिन-रात अपने खाली समय में मैं इस उम्मीद और विश्वास के साथ तैयारी कर रहा हूं कि मुझे सफलता जरूर मिलेगी। संस्कृत में रचे गए हमारे प्राचीन ग्रंथों में गणित-विज्ञान की समृद्ध विरासत है, मगर वर्तमान पीढ़ी इस ज्ञान से अनभिज्ञ
सकारात्मक सोच ने दिलाई सफलता : पिछ्ले वर्ष एक साथ दो परीक्षाएं देने वाले शाश्वत देव शुक्ला कहते हैं, मैंने 2019 में एयरफोर्स और पुलिस विभाग में नौकरी की परीक्षा दी थी। जिसमें एयरफोर्स की लिखित परीक्षा मैंने पास कर ली थी। मगर मेडिकल देने से पहले ही मेरा एक्सीडेंट हो गया। जिसमें मैं अनफिट हो गया था। उस समय बहुत डिप्रेशन में चला गया था। मन में नौकरी को लेकर उल्टे-सीधे विचार भी आते थे। मगर मेरे दोस्तों ने मुझे हमेशा उम्मीद का दामन थामे रहने की सलाह दी। आखिरकार उसी उम्मीद ने मुझे सफलता दिलाई। पुलिस विभाग में मुझे नौकरी मिल गई। मेरा युवाओं से यही कहना है कि अपनी सोच हमेशा सकारात्मक रखें। पढ़ाई हो या नौकरी सिर्फ अपना बेहतर प्रदर्शन देने का प्रयास करें, कामयाबी जरूर मिलेगी। संसद में जल्द पेश करने जा रहे हैं बेहद कड़ा कानून- केंद्रीय मंत्री
इसलिए मनाते हैं विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस : विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस हर साल 10 सितंबर को मनाया जाता है। वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों को आत्महत्या से बचाव के प्रति जागरूक करना है। साथ ही आत्महत्या से जुड़े प्रश्नों और उनके उत्तर के बारे में भी बताना है। आत्महत्या के आंकड़े साल दर साल बढ़ते ही जा रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े बताते हैं कि हर 40 सेकेंड में एक इंसान आत्महत्या कर रहा है।सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा- मोराटोरियम की अवधि के लिए ब्याज पर ब्याज नहीं लेने पर करिए विचार
विश्वभर में 15 से 29 वर्ष के लोगों की मौत का दूसरा सबसे प्रमुख कारण आत्महत्या ही है। वहीं, भारत में हर घंटे एक छात्र सुसाइड करता है। आत्महत्या की वजह से होने वाली इतनी मौतों के बाद भी हमारे समाज में इसके प्रति जागरूकता की कमी है। डिप्रेशन, तनाव और आर्थिक तंगी के अलावा गरीबी और पढ़ाई भी आत्महत्या की मुख्य कारण माने जाते हैं।कुछ नया सीखने की चाह...आपको नई राह और नए विकल्प देती है -AlokPrabhat
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