वेद क्या है ?
मंत्र सहिताओं का नाम वेद है । इनको श्रुति भी कहते है । वेद शब्द संस्कृत के विद धातु से बना है जिसका अर्थ है । अत: वेद शाश्वत ज्ञान की पुस्तकें है ।
वेद कितने है ?
वेद चार है – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद ।
मंत्र क्या है ? आर्ष ज्ञान के स्त्रोत Arsh Knowledge Sources
वेदों की छन्दोबद्ध रचना को मंत्र कहते है । इसका अर्थ है मनन करने योग्य विचार एवं उपदेश जो श्रेष्ठ ज्ञान और उत्तम कर्म करने की प्रेरणा देता है ।
उपवेद क्या है ?
अर्थशास्त्र, धनु-शास्त्र (धनुर्वेद), संगीतशास्त्र (गंधर्ववेद) और चिकित्सा शास्त्र (आयुर्वेद) क्रमश: ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद, इन चारों वेदों के उप वेद है । ये वेदों के विभिन्न विषयों की विस्तार से व्याख्या करते है ।
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ये वेद के गूढ़ एवं रहस्यमय अर्थों को स्पष्ट करने में सहायक होते है । ये छ: वेदांग है-कल्प, व्याकरण, ज्योतिष, निरुक्त, शिक्षा और निरुक्त ।
वेद की शाखाएं क्या है ?
शाखाएं पठन-पाठन-भेद से वेदों के अध्ययन एवं चयन के सम्पादन-जन्य विशेष रूप है । ये न वेद के विभाग है और न व्याख्या आदि के । ये ब्राह्मनग्रंथों से मिश्रित भी हो सकती है । अत: ये ऋषियों की बाद की रचनाएँ है । प्राचीन काल में 1127 शाखाएं थीं । ऋग्वेद की बीस, यजुर्वेद की एक सौ, सामवेद की एक हजार और अथर्ववेद की सात शाखाएं थी, मगर आजकल बहुत कम (8-10) ही मिलती है ।
हमारे धर्म-सम्बन्धी ग्रन्थ कौन-कौन से है ?
इनका वेदों में क्या सम्बन्ध है ? धर्म से सम्बंधित अन्य ग्रन्थ है- ब्राहमण ग्रन्थ, आरण्यक, दर्शन शास्त्र, उपनिषद्, गृह्यसूत्र, श्रौतग्रन्थ, प्रातिशाख्य, स्मृतियां, पुराण, महाभारत, गीता, रामायण आदि । इनमें वेदों के विभिन्न विषय की व्याख्या करने का प्रयास किया गया है और वैदिक धर्म के माननेवाले कुछ पुरुषार्थी युगनिर्माता महापुरुषों का इतिहास का वर्णन भी है । परन्तु सभी ग्रन्थ वेदों के समान प्रमाणिक नहीं है । ब्राह्मण ग्रन्थ वेदों के सबसे पहले भाष्यों की श्रेणी में आते है । बृहत्-पाराशर स्मृति (3.44) का वचन है कि “ब्राह्मण ग्रन्थ वेद-मंत्रो के अर्थ और उनके प्रयोग की विधि बताते है ।” World Suicide Prevention Day- जिंदगी को गले लगाएं, नकारात्मक सोच को दूर भगाएं
अस्य मंत्रस्यार्थोऽयमयं मन्त्रोऽत्र वर्तते ।
तस्य ब्राह्मणं ज्ञेयं मन्त्रस्येति श्रुतिक्रम: ।।
इसी प्रकार वैशेषिक दर्शनाचार्य कणाद कहते है “ब्राह्मणे संज्ञाकर्म सिद्धिलिङ्गम्” यानी ब्राह्मण ग्रन्थ वेदों के शब्दों की परिभाषा एवं व्याख्या करते है । लेकिन ये यज्ञ और कर्मकाण्ड पर अत्यधिक बल देते है । प्राचीन काल में अनेकों ब्राह्मण ग्रन्थ थे, लेकिन आज केवल छ: ही मिलते है । इनमें से तीन- ऐतरेय, शाकायन और कौषीतकी ऋग्वेद के, शतपथ यजुर्वेद का, महातान्द्य सामवेद का, और गोपथ अथर्ववेद का ब्राह्मण ग्रन्थ ही मिलता है ।
शास्त्र क्या है ?
वेदों के दार्शनिक विचारों के ग्रन्थ का नाम शास्त्र है । ऋषियों ने छ: शास्त्रों के रूप में इन दार्शनिक तत्वों को विभिन्न प्रकार से व्यक्त किया है । इनमें ईश्वर, जीव, प्रकृति, सृष्टि, ज्ञान, योग, विवेक और मानव-जीवन की विभिन्न समस्याओं पर विस्तृत विचार किया गया है । CM योगी: कोरोना के खिलाफ जंग के बीच जारी रहेगी विकास यात्रा
ये दार्शनिक ग्रन्थ है :- कपिल का सांख्यदर्शन, 2. पतंजलि का योगदर्शन, 3. गौतम का न्यायदर्शन, 4. कणाद का वैशेषिक दर्शन, 5. जैमिनी का पूर्व मीमांसा और 6. बादरायण का वेदांत-दर्शन या उत्तर मीमांसा इन सबमें मतैक्य है एवं आस्तिक दर्शन के ये ग्रन्थ वेदानुकुल है ।
उपनिषद् क्या है ?
ये ब्रह्मविद्या के ग्रन्थ है इनमें आध्यात्मिक तत्वों एवं ईश्वर-जीव संबंधो की बड़ी सरल, सुगम, प्रेरणादायक और वैज्ञानिक व्याख्या की गई है । उपनिषद् का अर्थ ही है उप यानि समीप, निषद यानी बैठना अर्थात् ईश्वर के पास पहुँचने का मार्ग या साधन है उपनिषद् । इनमें ईश्वर के गुण, कर्म, स्वभाव एवं लक्षणों की विस्तृत व्याख्या की गयी है । कहीं-कहीं कहानियों के रूप में आलंकारिक भाषा में दार्शनिक तत्वों को स्पष्ट किया गया है । उपनिषद् वैदिक दर्शन के संक्षिप्तं, व्यावहारिक, प्रेरणादायक एवं वैज्ञानिक तत्वों की सर्वश्रेष्ठ पुस्तकें है । इनमें कुछ मंत्र तो वेदों से ज्यों-त्यों रख दिए गए है, कुछ अंश-रूप में । इशोपनिषद तो एक मंत्र के अलावा यजुर्वेद का अंतिम अध्याय ही है ।
प्राचीन काल में तो एक हजार उपनिषदों के होने का वर्णन मिलता है, मगर अब थोड़े ही उपलब्ध है । इनमें से निम्नलिखित ग्यारह उपनिषद् है- ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, मांडूक्य, ऐतरेय, तैत्तिरीय, श्वेताश्वर, बृहदारण्यक और छान्दोग्य । इनमें भाषा की सरलता, तत्त्वों की गहनता, कर्मों की प्रमुखता और मानव-जीवन की सभी लौकिक एवं पारलौकिक समस्याओं का समाधान होने के कारण उपनिषद् हिन्दुओं के ही नहीं अपितु मानव-मात्र के प्रेरणा-स्त्रोत रहे है । इनका अनेक विदेशी भाषाओँ में भी अनुवाद हो चूका है । हनुमान् चालीसा Hanuman Chalisa
इन उपनिषदों का वेदों से क्या सम्बन्ध है ? इन ग्यारह उपनिषदों में से प्रत्येक किसी-न-किसी वेद से सम्बंधित है । उदहारण के लिए ऐतरेय का ऋग्वेद से, इशोपनिषद का बृहदारण्यक और तैत्तिरीयोपनिषद का यजुर्वेद से, छान्दोग्य का सामवेद से एवं शेष कठ, केन, प्रश्न, मुण्डक, मांडूक्य और श्वेताश्वर का अथर्ववेद से सम्बन्ध है । कहा जाता है कि प्राचीन काल में प्रत्येक वैदिक शाखा का अपना एक उपनिषद् होता था, मगर आज शाखाओं की तरह उनके उपनिषद् भी नहीं मिलते है ।
पुराण क्या है ?
पुराण प्राचीन भारतीय इतिहास व संस्कृति के ग्रन्थ है । इनमें धार्मिक शिक्षाओं के साथ कर्मकाण्ड, मानव-इतिहास, सृष्टि-रचना व अनेक राजाओं की वंशावलियाँ एवं उनकी कथाओं का वर्णन है । इनमें अवतारवाद, किसी देवता व उनके अतवार की महत्ता, पूजा-विधि आदि का विस्तृत वर्णन है । इनमें ब्रह्मा, विष्णु, शिव व अनेक अवतारों का वर्णन इस प्रकार है कि प्रत्येक देवता अपने को श्रेष्ठ व दुसरे को हेय बताता है, जोकि सांप्रदायिक दृष्टिकोण को प्रकट करता है और विशाल हिन्दू-समाज को इष्ट देवताओं के नाम पर विभिन्न पंथों व मतों में विभाजित करता है जबकि वेदानुकुल ईश्वर एक ही है, उसी के ये विभिन्न नाम है । पुराणों के रचनाकाल से इस्लामी व ब्रिटिश-काल तक इनमें बराबर मिलावट होती आई है । अनेकों विषयों में अवैज्ञानिक विरोधाभास व अमानवीय होने के कारण ये पुराण, इतिहास जानने के अलावा दार्शनिक दृष्टि से बिलकुल उपयोगी नहीं है । कहीं-कहीं तो ये वेद व बुद्धि संगत भी नहीं है । किसी के लिए हेल्थ तो किसी के लिए बनी वेल्थ, पान व चाय के उद्योग में बढ़ी मांग :तुलसी की
वैसे तो अठारह पुराणों एवं अठारह ही उपपुराणों का वर्णन मिलता हैं, मगर उनके बारे में काफी मतभेद है । निम्नलिखित पंद्रह पुराणों के नामों के बारे में सबकी सहमति है- ब्रह्मा, ब्रह्माण्ड, विष्णु, वराह, वामन, भागवत, भविष्य, मतस्य, मार्कंडेय, कूर्म, लिंग, गरुड़, अग्नि, पद्म और स्कन्द । इसी प्रकार उपपुराणों के नाम है- आदि, नृसिंह, वायु, शिवधर्म, दुर्वासा, कपिल, नारद, नन्दिकेश्वर, शुक्र, वरुण, साम्ब, क्लिक, महेश्वर, पद्म, देव पराशर, मरीचि और भास्कर । कुछ विद्वान् इनके अलावा आत्मपुराण, देवी भागवत, महाभागवत, युग, सौर और केदारकल्प को भी उपपुराण मानते है । अत: पौराणिक विद्वानों में पुराणों व उपपुराणों के नामों के बारे में भी पारस्परिक ऐकमत्य नहीं है । पुराणों में अवतारवाद, बहुदेवतावाद, मूर्तिपूजा, एवं देवताओं के पारस्परिक द्वंद्व व अश्लील व्यवहारों का वर्णन वेद-विरुद्ध होने के कारण पुराणों का अधिकांश भाग अवैज्ञानिक व अमान्य है ।
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ऋषियों ने समयानुसार मानवमात्र को कर्तव्य-अकर्तव्य का बोध कराने के लिए कुछ धार्मिक, सामाजिक व राजनैतिक नियम बनायें । इनमें मानव-जीवनोपयोगी सभी विषयों पर विचार दिए गए है, मगर ये नियम समयानुसार बदलते भी रहे है और ऋषियों के निजी विचार होने एवं कालान्तर में मिलावट होने के कारण उनमें काफी विरोधाभास भी है । वर्तमान में शुद्ध मनुस्मृति (ले. पं. सुरेन्द्रकुमार) काफी वेदानुकुल है । वैसे तो दो सौ पचास मनुस्मृतियों का वर्णन मिलता है, मगर अब कम उपलब्ध है । प्रक्षिप्तांश मिलते रहने से स्मृतियों के सभी विचार वेदानुकुल व प्रमाणिक नहीं है ।
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आज हिन्दू-समाज में जो भी धर्म-ग्रन्थ मिलते है, उन सबका आदि- स्त्रोत वेद ही है, ऐसा सभी ग्रन्थ मानते भी हैं । स्वामी दयानन्द ने स्पष्ट कहा की चारों वेद ईश्वरीय होने के कारण स्वत:प्रमाण है, परन्तु यदि अन्य ग्रंथों के विचार भी वेदानुकुल हों तो उनके उस भाग को परत:प्रमाण माना जाएं । मनुस्मृति में कहा है, “वेदोअखिलो धर्ममूलम्” “धर्म जिज्ञामानानां प्रमाणं परमं श्रुति:” (मनुस्मृति २.१३) यानि वेद धर्म का मूल है, एवं धर्म के जिज्ञासुओं को वेद को ही प्रमाणिक मानना चाहिए ।
वेद और सभी दर्शन वेदवाक्यों को ही प्रमाणिक मानते है श्रुति प्रामाण्याच्च (न्याय ३.१.३२), श्रुत्या सिद्धस्य नापलाप: (सांख्य २.४७); महाभारत मे वेदप्रमाणविहितं धर्मं च ब्रवीमि (शान्ति पर २४.१८) वेदा: प्रमाणं लोकानाम् (शान्ति पर्व २६०.९) “लोकों के लिए वेद ही प्रमाणिक है । वेद प्रमाणित धर्म ही कह रहा हूँ” आदि । बृहस्पति एवं जाबाल ऋषि कहते है कि स्मृति और वेद में मतभेद होने पर वेद को ही प्रमाणिक माना जाएं ।अत: वेद और वेदानुकूल विचार ही प्रमाणिक है, ऐसा सभी आचार्य मानते है। -आलोक नाथ
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