योग विज्ञान मनुष्य जीवन में कितना प्रभावशाली है ?


योग विज्ञान का वैदिक आधार क्या ? 

योग विज्ञान का इतिहास अति प्राचीन हैं। वैदिक ऋषियों ने ब्रह्मविद्या के साथ ही योगविद्या का आविष्कार किया । कुछ विद्वानों की मान्यता है कि वैदिक मन्त्रों की रचना योगाभ्यास की उच्चतम भूमिकाओं का ही परिणाम है, जिसे पतंजली ने ऋतम्भरा प्रज्ञा कहा है । मानव का मन जब ब्रह्मरूप ऋत से संयुक्त हो जाता है, तब ऋतम्भरा प्रज्ञा की स्थिति उत्पन्न हो जाती है । उसी ऋतम्भरा प्रज्ञा की स्थिति में विश्व के जिन सत्यों का दर्शन होता है, वे ही वैदिक मंत्रो में प्रकट हुए है । योग की उच्चतम भूमिका समाधि अवस्था है । उस समाधि अवस्था में सत्य दर्शन की क्षमता जिन्हें प्राप्त हुई, वे ऋषि थे । अत: ऋषियों को मंत्रदृष्टा कहा जाता है ।आर्ष ज्ञान के स्त्रोत Arsh Knowledge Sources
योग शिक्षा का महत्व

 सत्य दर्शन की अभिलाषा मानव का सहज धर्म है । भारतीय साधना के प्रत्येक क्षेत्र में सत्य की जिज्ञासा रही है । सत्य ही सर्वसाधनाओं का साध्य रहा है । अत: भारतीय साधना के प्रत्येक क्षेत्र में योग का सर्वोच्च स्थान है । अविद्या के प्रभाव से मानव का चित्त स्वभावत: बहिर्मुख है । इस बहिर्मुख चित्त को अंतर्मुख करने का प्रयत्न योग का प्राथमिक रूप है । कर्म के मार्ग से हो, चाहे ज्ञान के मार्ग से हो, अथवा भक्तिमार्ग से हो, या अन्य किसी उपाय से हो, चित्त की एकाग्रता का सम्पादन साध्य की प्राप्ति हेतु आवश्यक है । एकाग्रता की उच्च अवस्था ही समाधि है । इस समाधि अवस्था में ही सत्य के दर्शन होते है । यही योग का परम उद्देश्य है । HC ने उठाया सवाल सुनंदा पुष्कर मामले में अर्नब गोस्वामी पर
विज्ञान और धर्म में कौन सा बेहतर है? और क्यों? - GyanApp

योग विज्ञान भारतीय मानोविज्ञान का व्यावहारिक रूप है । इसे शिक्षा का आधार बनाना परमावश्यक है, तभी हमारी शिक्षा सही अर्थों में फलदायिनी होगी । परमेश्वर द्वारा प्रदत्त हमारे इस भौतिक शरीर में अपार शक्तियां विद्यमान है, परन्तु वे सुप्त पड़ी हुई है। आधुनिक मनोविज्ञान का कथन है कि मनुष्य के मस्तिष्क का केवल दसवां भाग ही उपयोग में आता है, शेष सुप्त भाग योग के अभ्यास के द्वारा ही जाग्रत किया जा सकता है । योगाभ्यास के द्वारा मानसिक शक्तियों का विकास होता है , यह विज्ञान सिद्ध है ।हनुमान् चालीसा Hanuman Chalisa
Yoga Vedanta Ayurveda based way of life is valuable not only for us but for  whole world
आज हम असाधारण अशांति के काल में है । प्राय: प्रत्येक व्यक्ति वर्तमान जीवन के प्रति असंतुष्ट है और परिस्थितियों के साथ स्वयं को समायोजित कर पाने में अक्षम दिखाई देता है । आज का व्यक्ति प्रत्येक क्षण टूटने के चरम बिंदु पर है। इस परिस्थिति में उसमें पाशविक आक्रोश का विस्फोट होना स्वाभाविक है । हमारा युवा छात्र-वर्ग भी इसका अपवाद नहीं है । हम इस समस्या की गहराई में पहुँचने का प्रयास ही नहीं करते और सरलता से इस प्रश्न को देश की राजनीति, आर्थिक और सामाजिक समस्याओं से जोड़ देते है । कुछ हमारी शिक्षा पद्धति को दोष देते है । शिक्षा में सुधार के प्रयास भी हुए, परन्तु समस्या का समाधान बाह्य परिवेश में परिवर्तन लाने में खोजते है । परिणामत: सभी प्रयास विफल होते जा रहे है । RBI :माइक्रो-फाइनेंस कंपनियों के लिए कैपिटल बफर तैयार करना, नकदी का प्रबंधन अहम
पोस्ट-425 ऊर्जा-विज्ञान... - टेलीपैथी- A Yoga For Complete Transformation |  Facebook
वास्तव में आज की यह समस्या अंत: शारीरिक के अतिरिक्त कुछ नहीं है । जब मनुष्य का नाडी-केंद्र, जिस पर उसका व्यवहार निर्भर रहता है, विशेष उत्तेजित हो जाता है, उस समय वह अपनी विवेक शक्ति को खो देता है । इस अवस्था में कोई भी बौद्धिक तर्क या उपदेश उसके व्यवहार में परिवर्तन नहीं ला सकते । हमारी प्राचीन योग विद्या की पद्धति ही इसका एक सही समाधान है । आसन, प्राणायाम एवं ध्यान के अभ्यास से उत्तेजित नाडी केंद्र संतुलित एवं शांत हो जाते है एवं विक्षिप्त अंत:स्त्रावी ग्रन्थियां नियमित स्त्राव करती है । इनके अभ्यास से स्वत: गंभीरता उत्पन्न होती है । योग से व्यक्ति के सात्विक आचार-विचार बनते है । अत: यह आवश्यक है कि शिक्षाशास्त्री इस सनातन भारतीय विद्या का अध्ययन करें एवं योग को शिक्षा पद्धति का आधार बनाये ।World Suicide Prevention Day- जिंदगी को गले लगाएं, नकारात्मक सोच को दूर भगाएं
There are many forms of yoga and meditation in the yogic tradition

निष्कर्ष यह है कि शिक्षा ज्ञान की साधना है । ज्ञान आत्मा का प्रकाश है । मनुष्य को ज्ञान बाहर से प्राप्त नहीं होता, प्रत्युत आत्मा के अनावरण से ही ज्ञान का प्रकटीकरण होता है । वास्तव में मनुष्य की इस अंतर्निहित ज्ञान-शक्ति को अभिव्यक्त करना ही शिक्षा है । इस ज्ञान की प्राप्ति का एकमात्र मार्ग एकाग्रता है । चित्त की एकाग्रता ही शिक्षा का सार है । चित्त ही शिक्षा का वाहन है । चित्त ही एकाग्र अवस्था में ही आत्मा के प्रकाश से विषय का यथार्थ ज्ञान होता है भारतीय चिंतन में चित्तवृति-निरोध को ही शिक्षा का लक्ष्य माना है । चित्त की वृतियों का निरोध ही योग है । वास्तव में योग साधना शिक्षा की प्रणाली है । योग-आधारित शिक्षा ही यथार्थ में शिक्षा है । -स्वामी आलोकानन्द  नाखून बताते हैं आपके शरीर का हाल, इन संकेतों की मदद से ध्‍यान रखें सेहत का

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