वैदिक धर्म और अन्य मत, पंथ, सम्प्रदाय या मजहब में भेद क्यों व कैसे ?



वैदिक धर्म व अन्य मतों में क्या अंतर है ? 


वैदिक धर्म Vs अन्य मत, पंथ, सम्प्रदाय 

मत मन क्या है ? क्या मन आत्मा का साधन है ?

तर्कहीन और विज्ञान विरुद्ध मान्यताओं पर अंधविश्वास रखने वाले समुदायों को मत, ओंथ्म सम्प्रदाय या मजहब के नाम से जाना जाता है । महाभारत काल के पश्चात् सार्वभौम चक्रवर्ती राज्य का पतन होने से पठन-पाठन और सत्य विद्या के प्रचार-प्रसार में शिथिलता आ गयी तथा संसार अविद्या और अज्ञानता बढ़ गयी । लोग आसली और प्रमादी हो गए तथा नाना प्रकार के अनाचार करने लग । इस प्रकार धीरे-धीरे वास्तविक धर्म का लोप हो गया । धर्म का लोप होसे से मानव समुदाय पथभ्रष्ट हो गया ।

इस प्रकार हर महापुरुष और उनकी पुस्तकों को मानने वाले लोगों  का एक समूह बन गया जिसे सम्प्रदाय, मत, पंथ या मजहब के नाम से पुकारा जाने लगा । इस समय संसार में हजारों मत है । कुछ बड़े मत-पंथों का विवरण इस प्रकार है :-

पारसी मत :- पारसी मत को चले लगभग 4500  वर्ष हुए है । इसके प्रवर्तक श्री जरदुश्त महोदय थे, इन्हें जोरेस्टर के नाम से भी जाना जाता हैं । इनकी बनाई० पू० हुई० पू० पुस्तक ‘जिन्दावास्ता’ पारसी मत का आधार है । इस मत का जन्म ईरान में हुआ ।

यहूदी मत :- गृह मंत्री व रक्षा मंत्री ने किया सरदार बल्लभ भाई पटेल कोविड अस्पताल का उद्घाटन

इस मत को चले लगभग 4000 वर्ष हुए हैं । इसके प्रवर्तक हज़रत मूसा थे । बाइबिल की पुरानी किताब ही इस मत का आधार है । इस मत का जन्म फिलिस्तान में हुआ ।

बौद्ध मत :-

इस मत को चले लगभग 2500 वर्ष हुए है । इसके प्रवर्तक महात्मा गौतम बुद्ध थे जिनके बचपन का नाम सिद्दार्थ था । इनका जन्म   563 ई० पू० कपिलवस्तु के समीप ‘लुम्बिनी’ वन में हुआ था । इसकी मृत्यु 80 वर्ष की आयु में 483 ई० पू० कुशीनगर में एक शाल के वृक्ष के नीचे हुई । इस मत का जन्म सारनाथ में गौतम बुद्ध के प्रथम उपदेश से हुआ । बौद्ध साहित्य के तीन प्रमुख अंग है –जातक, त्रिपिटक और निकाय ।

जैन मत :- Nathuram Godse Last Speech गाँधी वध क्यों ?

जैन मत को चले भी लगभग 2500 वर्ष हुए है । जैन मत को ऋषभदेव से लेकर महावीर स्वामी तक चौबीस गुरु हुए है, तो तीर्थकर कहलाते है । महावीर स्वामी को जैन मत का प्रवर्तक माना जाता है । इनका जन्म 599 ई० पू० बिहार में वैशाली के समीप कुण्ड ग्राम में हुआ था । इनके बचपन का नाम वर्धमान था । इनकी मृत्यु 72 वर्ष की आयु में 527 ई० पू०   बिहार में पाटलीपुत्र के निकट ‘पावापुरी’ नामक स्थान पर हुई० पू० । महावीर स्वामी के उपदेश सुत्रांग नाम से बारह खंडो में संग्रहीत है। जैनमत का प्रारंभ भारत के मगध राज्य में हुआ ।

ईसाई मत :- 

ईसाई मत को चले लगभग 2000 वर्ष हुए है । इसके प्रवर्तक ईसा मसीह थे, जिनका जन्म फिलिस्तान में जेरूसलम के निकट बेतुलहम की एक सराय में हुआ था । इनका जन्म दिवस 25 दिसम्बर को मनाया जाता है  । इनके नाम पर चला सन् वर्तमान में 2018 चल रहा है । इनके उपदेश ‘पर्वत पर उपदेश’ के नाम से प्रसिद्द है । ईसाई मत फिलिस्तान देश से प्रारंभ हुआ । इस मत का आधार बाइबिल तथा इंजील है ।

इस्लाम मत :-  जमशेद जी ने रखी थी टाटा स्टील की बुनियाद स्वामी विवेकानंद से प्रेरित होकर

इस्लाम मत को लगभग 1400 वर्ष हुए है । इस मत के प्रवर्तक हज़रत मुहम्मद थे जिनका जन्म 570 ई० पू० में अरब देश के मक्का नगर में हुआ था । मुहम्मद साहब ने सन् 622 ई० पू० में मक्का से मदीना शहर को पलायन किया था तभी से हिजरी सन् आरम्भ हुआ जो इस समय 1438 चल रहा है । 63 वर्ष की आयु में सन् 633 ई० पू०  में इनका देहांत हो गया । इस्लाम मत कर प्रारम्भ अरब देश में हुआ । इस मत का आधार क़ुरान शरीफ है ।

सिक्ख मत :-

सिक्ख मर को चले लगभग 500 वर्ष हुए है । इस मत के संस्थापक गुरु नानक देव का जन्म सन् 1469 ई० पू०  में पंजाब के तलवंडी ग्राम में हुआ था जो अब ननकाना साहब के नाम से जाना जाता है तथा पकिस्तान में स्थित हैं । इनकी मृत्यु सन् 1539 ई० पू० में हुई० पू० । गुरुनानक के बाद नौ गुरु और हुए । गोविन्द सिंह सिक्खों के अंतिम गुरु थे जिन्होंने सिक्खों को सैनिक रूप प्रदान किया । ‘गुरु ग्रन्थ साहब’ सिक्ख मत का पवित्र ग्रन्थ है । इस मत का जन्म पंजाब में हुआ ।

पौराणिक मत :- बच्चों की देखभाल कैसे करे ताकि शारीरिक और मानसिक विकास न रुके

पौराणिक मत का आधार 18 पुराण है । इन पुराणों की रचना 500 से 2500 वर्ष की गई । इन पुराणों में एक दूसरे की निंदा और अनेक गप्पें भरी है । इन पुराणों की रचना अलग-अलग समय में स्वार्थी लोगों ने अपने-अपने मान्य देवता की प्रशंसा में की । यह कहना बिलकुल गलत और निराधार है कि 18 पुराणों के रचयिता सत्यवती के पुत्र महर्षी वेद व्यास जी है । व्यास जी वेदों के विद्वान और ऋषि थे इसलिए उनकी रचना इतिनी घृणित और अश्लील नहीं हो सकती । साथ ही व्यास जी महाभारत काल में आज से लगभग 5200 वर्ष पूर्व हुए जबकि पुराणों की रचना आज से 500 से 2500 वर्ष हुई थी । अत: ये 18 पुराण व्यास जी की रचना नहीं हो सकते ।

 ये पुराण निम्नलिखित है :- ब्रह्म पुराण 2. पदम पुराण 3. विष्णु पुराण 4. श्रीमद्भागवत पुराण 5. नारदीय पुराण 6. मार्कणडेय पुराण 7. अग्नि पुराण 8. भविष्य पुराण 9. ब्रह्मवैवर्त पुराण 10. लिंग पुराण 11. वाराह पुराण 12. स्कन्द पुराण 13. वामन पुराण 14. कूर्म पुराण 15. मत्स्य पुराण 16. गरुड़ पुराण 17. शिव पुराण 18. ब्रह्माण्ड पुराण उपरोक्त 18 पुराणों के अतिरिक्त वायु पुराण और देवी भागवत पुराण भी हैं ।

अन्य मत :- 

चतुर, पाखंडी व अक्षर ज्ञानी लोगों द्वारा गुरु बनकर अंधविश्वासी जनता को अपना अनुयायी बनाकर नया मत पंथ चलाना इनका व्यवसाय हो गया है । वर्तमान में उपरोक्त मतों के अतरिक्त शैव, वैष्णव, शाक्त, चक्रांकित, माधव, बल्लभ, वाममार्गी, कबीरपंथी, दादूपंथी, रामस्नेही, राधास्वामी, आनंदपुरी, ब्रह्मकुमारी, निरंकारी, साकार विश्वहरी, राधे-राधे, जय गुरुदेव आदि सैकड़ों मत-पंथ और सम्प्रदाय समाज में अज्ञानता और द्वेष का बीज बो रहे है ।

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मनुष्य सृष्टि के आदि में समस्त प्राणियों के कल्याणार्थ ईश्वर द्वारा प्रदत्त वेद ज्ञान पर आधारित नियमों व सिद्धांतो का नाम वैदिक धर्म है । वैदिक धर्म के सभी नियम व सिद्धांत सत्य, युक्ति-युक्त, सर्वमान्य, सर्वकालिक, सार्वभौमिक, निर्भ्रांत, अपरिवर्तनशील, अनादि, विज्ञान, व सृष्टि के नियमों के सर्वथा अनुकूल, भेदभाव व अज्ञान से रहित सर्वहितकारी तथा पूर्ण है- इसलिए वैदिक धर्म को सनातम धर्म भी कहते है । वैदिक धर्म आदि मानव सृष्टि से महाभारत काल तक अपने शुद्ध अस्तित्व में रहा तत्पश्चात अन्य मतों के प्रचलन से वह धूमिल हो गया । ईश्वर की महती कृपा से महर्षि दयानन्द ने अपने अतुल योगबल तथा अनुपम ब्रह्मचर्य की साधना से लुप्त वैदिक धर्म को पुन: प्रतिष्ठित कर अवैदिक मतों की धज्जियाँ उड़ा दी । यदि संसार के सभी मत पंथ और सम्प्रदाय के लोग एक होकर अपने मूल वैदिक धर्म को पहचान कर इसे आचरण तथा व्यवहार से स्वीकार कर लें- तो आज सारे विवाद समाप्त होकर सम्पूर्ण संसार में सुख शांति का साम्राज्य स्थापित हो सकता है ।

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वैदिक धर्म – एक मात्र वैदिक धर्म ही धर्म है । अन्य मत – कोई भी धर्म नहीं है क्योंकि ये सभी मनुष्यकृत है ।

वैदिक धर्म ईश्वरीय ज्ञान वेद पर आधारित है । मत-पंथ मनुष्य की मनमानी कल्पनाओं पर आधारित है ।

मानव सृष्टि के आदि से स्वामी दयानन्द पर्यन्त इस भूमंडल पर जितने भी ऋषि-मुनि हुए, सभी ने वैदिक धर्म का ही प्रचार-प्रसार किया ।
 महाभारत काल के पश्चात् अक्षर ज्ञानी व स्वार्थी लोगों ने धर्म के नाम पर मत-पंथों की दुकानें खोलकर समाज में घृणा, पाखण्ड और अंधविश्वास को बढ़ावा दिया ।

वैदिक धर्म आचरण की शुद्धता और सदाचार आदि शुभ गुणों को धारण करने पर बल देता है । मत-पंथ अपने-अपने ट्रेडमार्क अर्थात् तिलक, दाढ़ी, कंठी, माला आदि धारण करने पर बल देता है ।

वैदिक धर्म का अनुसरण करने वाला व्यक्ति सदाचारी और धर्मात्मा बनता है । किसी मत-पंथ का अनुसरण करने वाला व्यक्ति मजहबी तथा अन्धविश्वासी बनता है ।

वैदिक धर्म में निरपराध पशु-पक्षियों की हत्या करना, उनका मांस खाना, भांग-शराब आदि मादक पदार्थों का सेवन, गाली बकना तथा अश्लील गीत गाना पाप समझा जाता है ।
 धर्म के नाम पर पशु-पक्षियों की बाली चढ़ाना तथा कुर्बानी करना अर्थात् उनकी हत्या करके उनके मांस को खाकर प्रसन्न होना, उत्सवों तथा त्योहारों पर मादक पदार्थों का सेवन करना, गाली बकना तथा अश्लील गीत गाकर खुशियाँ मनाना मत पंथ की दृष्टि में पुण्य कार्य है ।

वैदिक धर्मानुसार ईश्वर न्यायकारी है और बिना किसी पक्षपात के सभी प्राणियों के प्रत्येक कर्म का फल न्यायपूर्वक देता है ।
 मत-मजहब की मान्यता के अनुसार ईश्वर न्यायकारी तो है किन्तु अपने मत के नवी, पैगम्बर, गुरु, भक्त,आदि की सिफारिश से इनके अनुयाइयों के पाप क्षमा भी कर देते है और पक्षपात से अन्य मतवादियों पर अन्याय भी करता है ।

वेद ही ईश्वर का ज्ञान है । शहद के आश्चर्यजनक फायदे जानकर हैरान रह जाओगे
सभी मतवाले अपने-अपने ग्रंथों को जैसे-क़ुरान, बाइबिल, रामायण, गीता, पुराण, गुरुग्रंथ साहब आदि को ईश्वर का ज्ञान मानते है ।


ईश्वर निराकार व अजन्मा है । ईश्वर साकार भी है तथा अवतार धारण कर जन्म-मरण के बंधन में आता है ।

ईश्वर की ही उपासना व भक्ति करनी चाहिए । अपने गुरु, पीर, पैगम्बर व पूर्वजों को ईश्वर का अवतार मानकर इनकी मूर्ति तथा कब्र, नदी, वृक्ष, मढ़ी, मसान, पुस्तक आदि की पूजा करना सिखाते है ।

वैदिक धर्म के सम्पूर्ण सिद्धांत बुद्धि, विज्ञान व सृष्टिक्रम के सर्वथा अनुकूल है । मत-मजहब की आधिकांश बाते बुद्धि, विज्ञान व सृष्टिक्रम के बिलकुल विपरीत है ।

मानव को सुसंस्कृत बनाने के लिए गर्भाधान से लेकर अंत्येष्टि पर्यन्त सोलह संस्कारों की वैज्ञानिक पद्धति का विशद वर्णन किया गया है ।
 कुसंस्कार पूर्ण रिती-रिवाजों का प्रचलन जिनमें मांसाहार, मद्यपान, बीड़ी-सिगरेट, गुटखा आदि कानफोडू एवं अश्लील संगीत व मृतक भोज आदि की परम्परा है ।

वैदिक अभिवादन ‘नमस्ते’ का विधान है । ‘नमस्ते’ का अर्थ है- मैं आपका आदर/सम्मान करता हूँ ।
 मत-पंथों में प्रचलित अभिवादन जैसे- राम-राम, सीताराम, जय माता की, राधा-स्वामी, राधे-राधे, जय भीम, गुडमोर्निंग, आदाबर्ज आदि में एक-दूसरे के प्रति आदर-सम्मान के भाव का अर्थ बोध नहीं होता ।

वैदिक धर्म में यज्ञ को सर्वश्रेष्ठ कर्म कहा गया है । यज्ञ से सारे विश्व का कल्याण होता है । पौराणिक मत में नाम मात्र का अवैदिक हवन होता है । शेष मतों में अगरबत्ती और धूपबत्ती लगाने का प्रचलन है ।

वैदिक धर्म में धर्म के सभी लक्षण विद्यमान है तथा इसका प्रत्येक सिद्धांत सत्य, सनातन, शाश्वत एवं तर्क संगत है । अत: वैदिक धर्म को धर्म कहना और मानना सर्वथा उचित है ।

वैदिक धर्म के अतिरिक्त संसार में प्रचलित किसी भी मत, पंथ, सम्प्रदाय व मजहब को धर्म कहना और मानना पूर्णतया अनुचित है क्योंकि इन सभी में अधर्म के लक्षण विद्यमान है तथा इनकी बहुत सी बातें असत्य, निंदनीय, काल्पनिक और तर्कहीन है ।

स्मरण रहे जब वैदिक धर्म के अलावा संसार में कोई दूसरा धर्म है ही नहीं तो सर्वधर्म समन्वय की बात करना उचित नहीं है । साथ ही इन तथाकथित धर्म अर्थात् मत-पंथों की बहुत सी मान्यताएं परस्पर विरोधी है अत: इन सबका समन्वय होना असंभव है । -आलोक नाथ 

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