Ram Prasad Bismil महान क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल

 

Ram Prasad Bismil पंडित रामप्रसाद बिस्मिल (11 जून, 1897 – 19 दिसंबर, 1927 ) 

पंडित रामप्रसाद बिस्मिल जी का जन्म उत्तरप्रदेश में स्थित शाहजहांपुरा ग्राम में 11 जून , 1897 ई० को हुआ । इनके पिता का नाम मुरलीधर तथा माता का नाम मूलमती था । इनके घर की अवस्था अच्छी नहीं थी । बालकपन से ही इन्हें गाय पालने का बड़ा शौक था । बाल्यकाल में बड़े उद्दंड थे । पांचवी में दो बार अनुत्तीर्ण हुए । थोड़े दिनों बाद घर से चोरी भी करने लगे तथा उन पैसों से गंदे उपन्यास खरीदकर पढ़ा करते थे , भंग भी पीने लगे। रोज़ाना 40-50 सिगरेट पीते थे । एक दिन भांग पीकर संदूक से पैसे निकाल रहे थे, नशे में होने के कारण संदूकची खटक गई । माता जी ने पकड़ लिया व चाबी पकड़ी गई । बहुत से रूपये व उपन्यास इनकी संदूक से निकले । किताबों से निकले उपन्यासादि उसी समय फाड़ डाले गए व बहुत दण्ड मिला । (परमात्मा की कृपा से मेरी चोरी पकड़ ली गई,नहीं तो दो-चार साल में न दीन का रहता न दुनिया का –- आत्मचरित्र ) । बवासीर का अचूक औषधियों से सम्पूर्ण इलाज

परंतु विधि की लीला और ही थी । एक दिन शाहजहांपुरा में आर्यसमाज के बड़े सन्यासी स्वामी सोमदेव जी आए । बिस्मिल जी का उनके पास आना-जाना होने लगा । इनके जीवन ने पलटा खाया , बिस्मिल जी आर्यसमाजी बन गए और ब्रह्मचर्य का पालन करने लगे । प्रसिद्ध क्रांतिकारी भाई परमानन्द जी की लिखी पुस्तक ‘तवारीखे हिन्द’ को पढ़कर बिस्मिल जी बहुत प्रभावित हुए । पं० रामप्रसाद ने प्रतिज्ञा की कि ब्रिटिश सरकार से क्रांतिकारियों पर हो रहे अत्याचार का बदला लेकर रहूँगा । इस कार्य को करने के लिए हथियार चाहिए थे और उसके लिए धन कि आवश्यकता थी । क्रांतिकारियों के साहित्य को छपवाकर बांटा जाए यह निर्णय हुआ परंतु धन का अभाव बना रहा । अत: सरकारी खजाना लूटने की योजना बनाई गई । PF अकाउंट का बैलेंस इन चार तरीकों से घर बैठे जाना जा सकता है

9 अगस्त , 1925 ई० को संध्या के आठ बजे की गाड़ी में दस नवयुवक बैठ गये । एकाएक काकोरी के निकट ट्रेन की जंजीर खींचकर रोक ली । लगभग आधे घंटे के बाद ये दस नवयुवक खजाना लेकर चले गये । यह घटना ककौरी काण्ड के नाम से जानी जाती है । उस डकैती में बहुत धन प्राप्त हुआ , सारा कर्जा चुका दिया तथा हथियार भी मोल ले लिए , काम अब अति तीव्र गति से चलने लगा । 25 दिसंबर को गिरफ्तारियाँ प्रारम्भ हो गयी । चन्द्रशेखर आजाद को छोड़कर सभी संलिप्त क्रांतिकारी पकड़े गए । एक दिन जिला कलेक्टर जेल में बिस्मिल जी से मिले । कहने लगे , फाँसी होगी, बचना है तो बयान दे दो । आगे कहने लगे कि तुम्हें थोड़ी सी सजा कर देंगे तथा 15000 रूपये पारितौषिक दिया जावेगा । परंतु कुछ न बताया । इसी प्रकार बहुत बार आए परंतु परेशान होकर चले जाते थे । कारगिल हीरो शहीद विक्रम बत्रा, दूसरों की मदद को रहते थे आगे: जानिए उनके किस्‍से...

अंत में 19 दिसंबर 1927 ई० को फाँसी देने की तिथि निश्चित हुई । इनके साथ रोशन सिंह , अशफाक़उल्ला और राजेंद्र लाहिड़ी को भी फाँसी की सजा सुनाई गई । जेल के अंदर पहरेदार व अन्य कर्मचारी बिस्मिल जी (Ram Prasad Bismil) के व्यवहार से अत्यधिक प्रभावित थे । उन्होने जेल से भागने की योजना बनाई परंतु फिर सोचा कि पहरेदार के साथ विश्वासघात होगा और बेचारा वह फंस जाएगा । वे धोखेबाज़ी व बेईमानी के खिलाफ थे । बिस्मिल जी नित्य जेल में हवन करते थे । उनके चेहरे पर प्रसन्नता व संतोष देखकर जेलर ने पूछा की तुम्हारा गुरु कौन है ? बिस्मिल जी ने कहा कि जिस दिन उसे फाँसी दी जाएगी , उस दिन वह अपने गुरु का नाम बताएगा और हुआ भी ऐसा ही । फाँसी देते समय जेलर ने जब अपनी बात याद दिलाई तो बिस्मिल जी ने कहा कि उनके गुरु है स्वामी दयानन्द । 10 Sexiest (18+Adult) Web Series
राम प्रसाद बिस्मिल ( ram prasad bismil )

19 दिसंबर, 1927 को फाँसी वाले दिन Ram Prasad Bismil जी प्रात: 3 बजे है । शौच , स्नान आदि नित्य कर्म करके यज्ञ करते है । फिर ईश्वर स्तुति करके वन्देमातरम् तथा भारत माता की जय कहते हुए वे फाँसी के तख्ते के निकट गए । तत्पश्चात्  उन्होने कहा – “मै ब्रिटिश साम्राज्य का विनाश चाहता हूँ।” फिर पं० रामप्रसाद बिस्मिल जी तख्ते पर चढ़े और ‘विश्वानिदेव सवितर्दुरितानि’ मंत्र का जाप करते हुए फंदे से झूल गए । ऐसी शानदार मौत लाखों में दो-चार को ही प्राप्त हो सकती है । स्वातंत्र्य वीर पं० रामप्रसाद बिस्मिल जी के इस महान बलिदान ने भारत की आजादी की क्रांति को और तेज़ कर दिया । बाद में चन्द्रशेखर आजाद , भगतसिंह , राजगुरु व सुखदेव जैसे हजारों देशभक्तों ने उनकी लिखी अमर रचना ‘सरफ़रोशी की तमन्ना’ गाते हुए अपने बलिदान दिये । पं रामप्रसाद बिस्मिल आदर्श राष्ट्रभक्त तथा क्रांतिकारी साहित्यकार के रूप में हमेशा अमर रहेंगे । Mutual Fund क्या है, इसमें कैसे करें निवेश?

“क्या ही लज्जत है कि रग-रग से यह आती है सदा 
दम न ले तलवार जब तक जान बिस्मिल में रहे॥ ” – Ram Prasad Bismil  -Alok Prabhat

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