भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने समलैंगिक जोड़ों के बीच शादी को कानूनी मान्यता दिए जाने के लिए दाखिल की गई जनहित याचिका पर अपना पक्ष रखते हुए दिल्ली हाई कोर्ट से कहा कि भारतीय समाज, कानून व मूल्य इसकी इजाजत नहीं देते हैं। उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2018 में नवतेज सिंह जौहर मामले में समलैंगिक जोड़ों के बीच रिश्तों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था। इससे पहले तक समलैंगिक रिश्ते भारतीय कानून के तहत एक आपराधिक कृत्य थे। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ से आए इस फैसले के लगभग दो साल बाद समलैंगिकों के बीच शादी को कानूनी दर्जा दिए जाने की अपील दिल्ली हाई कोर्ट पहुंची है। भारत की उभरती वैश्विक छवि से बेचैन चालबाज चीन
दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस प्रतीक जालान की बेंच ने हाल ही में इस जनहित याचिका की सुनवाई की। इस याचिका में हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन-5 का जिक्र किया गया है जो कहता है कि शादी दो हिंदुओं के बीच होनी चाहिए। यह याचिका कहती है कि हिंदू मैरिज एक्ट का सेक्शन-5 होमोसेक्सुअल और हेट्रोसेक्सुअल जोड़ों के बीच भेदभाव नहीं करता है। ऐसे में समलैंगिक जोड़ों को उनके अधिकार मिलने चाहिए। आयुष की चार दवाएं कोरोना को हराएंगी, सात दिन में बढ़ जाएगी प्रतिरोधक क्षमता
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दिल्ली हाई कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए कहा है कि उन्हें अभी इस मुद्दे पर केंद्र सरकार से निर्देश लेने हैं, लेकिन उनका कानूनी रुख यह है कि इसकी इजाजत नहीं है। उन्होंने कहा कि हमारे कानून, हमारी न्याय प्रणाली, हमारा समाज और हमारे मूल्य समलैंगिक जोड़े के बीच विवाह को मान्यता नहीं देते हैं। हमारे यहां विवाह को पवित्र बंधन माना जाता है। इस मामले के कानूनी पहलुओं के बारे में संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ डॉक्टर सूरत सिंह कहते हैं कि अभी हमें यह समझने की जरूरत है कि समलैंगिक रिश्तों को अपराध के रूप में नहीं देखा जाना और समलैंगिक विवाह को हिंदू मैरिज एक्ट के तहत कानूनी दर्जा दिया जाना अलग-अलग चीजें हैं। कानूनी प्रावधानों को किसानों तक पहुंचाना भी अहम…
वह कहते हैं, सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में समलैंगिकों के बीच संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर किया है। लेकिन अगर कोई कहता है कि हिंदू मैरिज एक्ट के तहत उसकी शादी पंजीकृत कर दी जाए, तो ऐसा नहीं हो सकता है, क्योंकि हिंदू मैरिज समलैंगिक विवाह की अनुमति नहीं देता है। इसके लिए स्पेशल मैरिज एक्ट अलग बनाना पड़ेगा। उदाहरण के लिए, गैर हिंदुओं की शादियां हिंदू मैरिज एक्ट में पंजीकृत नहीं होती हैं, बल्कि स्पेशल मैरिज एक्ट में होती हैं। हर तीन वर्षों में क्यों आता है मलमास, क्या होता है महत्व और क्या करने से मिलता पुण्य लाभ
इसी तरह एक विकल्प यह है कि इसके लिए एक कानून बनाया जाए, जिसमें इस सवाल का जवाब हो कि जब समलैंगिक रिश्ते जायज हैं तो उनकी शादी को किस कानून के तहत जायज ठहराया जाएगा, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक रिश्तों को अपराध की परिधि से बाहर किया है। लेकिन समलैंगिक जोड़ों की शादी को लेकर कुछ नहीं कहा है। सवाल यह है कि संविधान इसकी इजाजत देता है या नहीं? इस पर अलग-अलग लोगों के अलग-अलग मत हो सकते हैं। 2020 के 17 यंग लीडर्स की घोषणा संयुक्त राष्ट्र ने की , भारत के उदित सिंघल भी हैं इसमें शामिल
अमेरिका में आर्टकिल 14 की तर्ज पर भेदभाव रोकने के लिए एक नया शब्द जोड़ा गया है- जेंडर ओरिएंटेशन। यह शब्द समलैंगिकों को किसी तरह के भेदभाव से बचाने के लिए है। लेकिन अब तक भारतीय समाज और भारतीय संविधान में यह शब्द नहीं जोड़ा गया है। सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक रिश्तों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर एक चरण तो पूरा कर लिया है, पर समलैंगिक समाज को सहज स्वीकार्यता मिल जाए, इस पर भारतीय समाज को आगे बढ़ना है। साभार -Alok Prabhat आइआइटी की 'गाथा' में बच्चे फिर सुनेंगे दादा-दादी और नाना-नानी की कहानियां, बनेंगे संस्कारवान
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