पैरंट्स देते हैं साथ तो बच्चे चढ़ते जाते हैं जीवन में तरक्की की सीढ़ियां, बनाते रिकॉर्ड

माता-पिता ही बच्चों के पहले शिक्षक, गुरु, दोस्त यानी सब कुछ होते हैं। 

बच्चों की परवरिश एवं उनके सर्वांगीण विकास में अभिभावकों की जो भूमिका होती है, उसे कतई नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उनके दिलों में अपने बच्चों के प्रति प्यार-लाड़ या परवाह कभी कम नहीं होती। आइए जानते हैं कुछ युवाओं से कि कैसे पैरेंट्स ने दिया उनका साथ और वे जीवन में लगातार चढ़ते रहे तरक्‍की की सीढ़ियां… हम सब जानते हैं कि मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर अपने पैरेंट्स के कितने करीब रहे हैं। उनसे मिले संस्कारों और छोटी-बड़ी सीख ने ही उन्हें मेहनत से आगे बढ़ते रहने के लिए प्रेरित किया। क्रिकेट के मैदान में सचिन ने जब भी कोई कीर्तिमान स्थापित किया, तो वे आकाश की ओर बल्ला घुमाकर अपने स्वर्गीय पिता को शुक्रिया अदा करना नहीं भूलते। बेटे सचिन का मैच देखने उनकी मां कई बार स्टेडियम भी आया करती थीं। DCW चीफ स्वाति मालीवाल 5 साल तक महिलाओं के हक के लिए लड़ती रहीं… अपनी ऑटोबायोग्राफी ‘प्लेइंग इट माई वे’ में सचिन ने अपने पैरेंट्स से जुड़े बहुत से संस्मरणों का बखूबी उल्लेख किया है।

संस्कारों ने गढ़ा व्यक्तित्व 24 साल की यामिनी गुप्ता एक मल्टीनेशनल में सॉफ्टवेयर डेवलपर हैं। हैदराबाद में एक अच्छी लाइफ जी रही हैं। लेकिन कभी किसी को बताने में संकोच नहीं करतीं कि वह एक छोटे शहर की मिडिल क्लास फैमिली से हैं, जिनके पैरेंट्स सिर्फ यही चाहते थे कि बच्चों को सर्वोत्तम शिक्षा मिले। बताती हैं यामिनी, ‘मैं नहीं भूल सकती वह समय जब बिजली जाने पर कैसे कैंडल लाइट में पढ़ा करती थी।

आइआइटी में पढ़ने का सपना था, जो पूरा नहीं हो सका। यहां तक कि दिल्ली यूनिवर्सिटी में दाखिले के लिए भी पैसे नहीं थे। स्थानीय कॉलेज से स्कॉलरशिप के साथ बीटेक किया। कॉलेज में ही कोडिंग सीखी। अपनी स्किल को जितना बेहतर कर सकती थी, वह किया। यहां तक कि पढ़ने के साथ दूसरों को ट्यूशन भी पढ़ाया, ताकि पॉकेट मनी के लिए पैरेंट्स को परेशान न करूं।’ आज यामिनी पर न सिर्फ उनके पैरेंट्स को गर्व है, बल्कि वह खुद को भी खुशनसीब मानती हैं कि माता-पिता ने यथासंभव उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्हें ऐसे संस्कार दिए, जिससे वे हर मुश्किल का सामना दृढ़ता से कर पायीं। वह अपने संघर्षों से खुश हैं, जिसने उन्हें एक मजबूत शख्सियत को गढ़ने में मदद की।न्यायकारी राजा और किसान King and Farmer Story

उद्यमी बनने में रहे सहयोगी पैरेंट यानी अभिभावक शब्द अपने आपमें ही बेहद खूबसूरत है, जिससे वात्‍सल्‍य का भाव सहज झलकता है। वे लोग किस्मत वाले होते हैं, जिन्हें पैरेंट्स का ठोस एवं सुरक्षित आश्रय मिलता है। जो बच्चों की नींव को मजबूत बनाते हैं। उन्हें अच्छे-बुरे की पहचान करना सिखाते हैं। सही रास्ता दिखाते हैं। कई बार तो बच्चों को एहसास तक नहीं होता कि उनके माता-पिता ने क्या-क्या बलिदान दिए होते हैं जीवन में। वे कोशिश करते रहते हैं कि उनके सपनों को पंख दें। उन्हें आगे बढ़ते रहने के लिए मोटिवेट करें। जैसे कि मुंबई के किशोर उद्यमी तिलक मेहता को उनके पैरेंट्स का भरपूर सहयोग मिला, जब उन्होंने पेपर ऐंड पार्सल नाम से कंपनी शुरू करने के साथ ही डब्बा वालों के लिए एक प्रोजेक्ट करने का फैसला लिया। तिलक के अनुसार, ‘पिता ने जहां उन्हें काम करने के तरीके के बारे में सहयोग दिया, वहीं मां ने सिखाया कि कैसे समय का प्रबंधन करते हैं। उसी से वह बिजनेस के साथ अपनी पढ़ाई, खेलकूद आदि पर ध्यान दे पाते हैं।’ राफेल-पर पप्पू (राहुल)-क्यों-फेल-राफेल-तो-आ-गए…

बचपन में सीख लिया निर्णय लेना वाराणसी के विपुल सिंह के पिता जी शहर में एक छोटा-सा टाइपिंग स्कूल चलाते थे। उसी से पूरे परिवार का भरण-पोषण होता था। किसी तरह बच्चों के स्कूल की फीस निकल जाती थी। खान-पान भी सामान्य था। उस पर से विपुल को पढ़ाई में खास मन नहीं लगता था, जिसके लिए अक्सर डांट पड़ती थी। लेकिन उन्होंने पैरेंट्स की मजबूरी का कभी फायदा नहीं उठाया।जीवन में सादगी क्यों जरूरी है जानिए क्या हैं इसके फायदे...

नोएडा से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग करने के बाद रिसर्च एसोसिएट के तौर पर आइआइटी कानपुर ज्वाइन किया। वहीं, ड्रोन पर काम करने का अवसर मिला और फिर वह दिन आया, जब विपुल ने अपनी खुद की कंपनी लॉन्च कर दी। विपुल बताते हैं, ‘किसी भी बिजनेस में निर्णय का बहुत महत्व होता है। फैसला लेने का यह आत्मविश्वास मुझे बचपन से अपने पैरेंट्स से मिला। उन्होंने कभी मेरे फैसलों पर सवाल नहीं उठाए। खुद से गिरने व उठ खड़ा होने का मनोबल दिया। वह सीख आज तक काम आ रही है।’

आशीर्वाद के साथ सहमति है जरूरी वोकलिस्ट एवं गिटारिस्ट शुभम कहते हैं कि किसी के पैरेंट नहीं चाहते हैं कि उनके बच्चे किसी अनिश्चित से लक्ष्य का पीछा करें। चाहे वह म्यूजिक इंडस्ट्री हो या कोई और। कहीं टैलेंट की कमी नहीं होती। प्रतिस्पर्धा भी उतनी ही होती है। लेकिन जब हम अपने हुनर से पैरेंट्स का भरोसा जीतते हैं, तो वे कभी बाधक नहीं बनते। शुभम के सामने सबसे पहले पैरेंट्स को कनविंस करने की चुनौती आई थी कि वह म्यूजिक में करियर बनाना चाहते हैं। माता-पिता इसके लिए राजी नहीं हो रहे थे। लेकिन बेटे ने भी हार नहीं मानी और एक दिन अपने पैरेंट्स को मनाने में सफल हो ही गए। शुभम कहते हैं, ‘जब हम बड़ों की सहमति एवं आशीर्वाद से कोई शुरुआत करते हैं, तो सफलता-असफलता से कहीं ऊपर उठकर अपनी लाइफ की धुन बनाते हैं।‘

पैरेंट्स के सपोर्ट से मिली सफलता श्‍वेता शाही (रग्‍बी प्लेयर) बताती हैं कि मैं छोटे से गांव से निकलकर आज जहां तक पहुंची हूं, वह पैरेंट्स के सहयोग एवं प्रोत्साहन के बिना संभव नहीं था। गांव में रग्‍बी खेलने वाली अकेली लड़की थी। प्रैक्टिस के लिए जाती थी, तो लोग ताने मारते थे। तब पिता मेरे साथ जाते और लोगों का मुंह बंद हो जाता। इसी तरह, मैं बाहर जहां भी खेलने गई, पापा साथ रहे। उन्होंने अपने काम की परवाह भी नहीं की। हमेशा मुझे अपने परफॉर्मेंस पर ध्यान देने के लिए प्रेरित किया। एक समय ऐसा भी आया था कि उन्हें अपनी जमीन तक गिरवी रखनी पड़ी थी। तब मां और पापा एक पिलर की तरह मेरे साथ रहे। आज जब उनके चेहरे पर गर्व के निशान देखती हूं, तो खुशी मिलती है। PM मोदी और प्रवीण जगन्नाथ मॉरीशस के नए सुप्रीम कोर्ट भवन का 30 जुलाई को करेंगे उद्घाटन

दिल की बात सुन लेते हैं पैरेंट्स मधुसूदन (संस्थापक, जंगल बूट्स) कहते हैं कि मैं एक होनहार स्टूडेंट था। लेकिन जीवन में घटी कुछ घटनाओं ने कुछ समय के लिए थोड़े अवसाद से घेर लिया था। तभी एक दिन पापा ने इनफील्ड मोटरसाइकिल भेंट की, तो मैंने घूमने का फैसला लिया। इससे लोगों से मिलना हुआ, उनकी समस्याओं को जाना, सीमित संसाधनों के बीच भी उन्हें खुश देखा, तो फिर से जीने की इच्छा जाग गई। मैं मानता हूं कि आपको पैरेंट्स को कुछ बताने की जरूरत नहीं पड़ती है। वे खुद ही आपके मन की आवाज सुन लेते हैं।Mutual Fund क्या है, इसमें कैसे करें निवेश?

पिता से मिली है काफी सीख सत्या नडेला (सीईओ, माइक्रोसॉफ्ट) बताते हैं कि मेरे पिता जिस तरीके से काम के साथ अपने पैशन को जीते थे, उसने मुझे अपनी जिंदगी एवं काम को लेकर एक अलग नजरिया विकसित करने के लिए प्रेरित किया। मेरे पिता जी कहते थे कि आप जिन लोगों को मेंटर और एंपावर करते हैं, जिस संस्कृति का निर्माण करते हैं, उसका दीर्घकालीक प्रभाव होना चाहिए। मेरे पिता एक प्रशासनिक अधिकारी थे, जबकि मां संस्कृत की स्कॉलर। मैंने अपने पिता से बहुत कुछ सीखा है, लेकिन हमेशा अपनी मां का बेटा रहा हूं। ब्याज दर, मैच्योरिटी टाइम और आवेदन करने का तरीका जानिए क्या है

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बिल क्लिंटन ने की थी ‘पैरेंट्स डे’ की शुरुआत बच्चों की परवरिश एवं उनके सर्वांगीण विकास में पैरेंट्स की भूमिका को मान्यता देने के उद्देश्य से अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने 1994 में अमेरिकी कांग्रेस में एक प्रस्ताव पारित कर जुलाई के आखिरी रविवार को ‘नेशनल पैरेंट्स डे’ के रूप में मनाने की घोषणा की थी। एक-दूसरे से बातें करना और सुनना उतना ही जरूरी है जितना जीने के लिए हवा-पानी... -Sabhar  Alok Prabhat

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